पतंजलि खदिरादि वटी के फायदे और उपयोग

पतंजलि खदिरादि वटी क्या है What is Patanjali Khadiradi Vati

मुख से सबंधिततमाम विकारों के लिए पतंजलि दिव्य आयुर्वेद की "पतंजलि खदिरादि वटी" से सामान्य रूप से सभी परिचित हैं। यह आयुर्वेदिक दवा "वटी" टेबलेट रूप में उपलब्ध होती है जिसे मुंह के विकारों को दूर करने के लिए मुंह में रखकर चूसा जाता है। आइये जान लेते हैं की पतंजलि खदिरादि वटी के घटक क्या होते हैं और उनके गुण क्या क्या होते हैं और साथ ही किन विकारों में इसका सेवन लाभकारी रहता है। खदिरादी वटी के सबंध में हमें भैस्य राज रत्नावली से विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।

पतंजलि खदिरादि वटी के फायदे और उपयोग Patanjali Khadiradi Vati Benefits and Usages Composition

पतंजलि खदिरादि वटी के घटक Composition of Patanjali Khadiradi Vati पतंजलि खदिरादि वटी में निम्न घटक होते हैं:-

  • जावित्री Myristica FRAGRANS (31.25 mg)
  • कांकोल मिर्च Pipercubeba (Sheetal Chini or Kabab Chini) – Cubeb (Tailed Pepper) – Piper Cubeba) (31.25 mg)
  • कर्पूर Cinnamomum Camphora (31.25 mg)
  • सुपारी Areca Catechu (31.25 mg)
  • खैर सार Acaciacatechu (Black catechu (heart wood extract) – Acacia catechu) (125 mg)
  • जल Q.S. मर्दनार्थ
  • निर्माताओं के द्वारा इसे विभिन्न तरीकों से बनाया जाता है लेकिन सभी खदिरादि वटी (गुटिका) में मुख्य रूप से खदिर-खैर सार (कत्था) उपस्थित रहता है।
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पतंजलि खदिरादि वटी के फायदे/लाभ Benefits of Patanjali Khadiradi Vati

खदिरादि वटी का उपयोग स्वर भंग, मुख पाक, मुंह के छाले (Oral Ulcers), मुंह की सड़न/दुर्गन्ध (Bad Breath), टोंसल, गले के संक्रमण जैसे विकारों में प्रधान रूप से किया जाता है। सर्दी में गले का बैठना, गले में खरांस का रहना (pharyngitis (sore throat) आदि विकारों में खदिरादि वटी का सेवन लाभकारी होता है। यदि मुंह का स्वाद कुछ बिगड़ जाए तो भी खदिरादि वटी के सेवन से लाभ मिलता है। मुंह का सूखना और दांतों में ठंडा / गरम महसूस होने (dental caries) पर भी खदिरादि वटी का सेवन लाभकारी रहता है। होठों, तालू और जीभ के छालों के लिए भी खदिरादि वटी का सेवन गुणकारी होता है और इन छालों को दूर करता है।

  • दन्त क्षय / दांतों में केविटी आदि विकारों में खदिरादी वटी का सेवन लाभदायक होता है।
  • मुंह पाक/ मुंह के छालों के लिए खादिरादिवटी बहुत ही लाभकारी होती है।
  • स्वर भंग होने पर खादिरादी वटी का सेवन गुणकारी होता है।
  • टॉन्सिल्स होने पर खादिरादी वटी का सेवन लाभ पंहुचाता है।
  • जीभ और तालू के विकारों में भी खादिरादी वटी गुणकारी ओषधि है।
  • यदि मसूड़ों से खून आता हो तो भी खादिरादी वटी लाभ देती है।
  • खदिरादि वटी के गुण धर्म Effects of Patanjali Khadiradi Vati
  • खदिरादि वटी एंटी इन्फ्लामेंटरी होती है।
  • खदिरादि वटी एंटी माइक्रोबियल (Anti-Microbial) प्रोपर्टीज की होती है।
  • यह एंटी ओक्सिडेंट (Antioxidant) होती है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करती है।
  • खदिरादि वटी में घाव भरने (Antiseptic (appears in oral cavity) की क्षमता होती है।
  • खदिरादि वटी संक्रमण (Emollient (Soothing Effect On Throat) रोधी होता है।
  • पतंजलि खदिरादि वटी का सेवन कैसे करें Usage and Doses of Patanjali Khadiradi Vati आप वैद्य की सलाह के उपरान्त खदिरादि वटी का सेवन कर सकते हैं। इसकी एक से दो टेबलेट्स को मुंह में रखकर चूंसना चाहिए। इसे सीधे निगलना नहीं चाहिए।
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पतंजलि आयुर्वेद का "खदिरादि वटी" के सबंध में कथन
Khadiradi Vati is a very effective Ayurvedic medicine that prevents bad breath, toothache, gum problems and oral ulcers. Bacterial build-up in the mouth leads to bad breath, dental decay and mild discomfort to acute pain in teeth and gums. Khadiradi Vati has antibacterial properties that eliminates the bacteria and gives you relief.

पतंजलि खदिरादि वटी की कीमत Price of Patanjali Khadiradi Vati

पतंजलि खदिरादि वटी 80 Tab (250mg) की कीमत रुपये MRP: Rs 42 इस सबंध में उल्लेखनीय है की आप खदिरादी वटी की नवीनतम कीमत के लिए पतंजलि आयुर्वेदा की अधिकृत वेब साइट पर विजिट करें जिसका लिंक निचे दिया गया है।

पतंजलि खदिरादि वटी को कहाँ से खरीदें Where Shuld Buy Patanjali Khadiradi Vati

पतंजलि खदिरादिवटी आपको सभी पतंजलि चिकित्सालय में / पतंजलि स्टोर्स पर आसानी से उपलब्ध हो जाती है। यदि आप इसे ऑनलाइन खरीदना चाहते हैं तो आप पतंजलि आयुर्वेदा की अधकृत वेब साईट पर विजिट करें जिसका लिंक निचे दिया गया है।
https://www.patanjaliayurved.net/product/ayurvedic-medicine/vati/khadiradi-vati/79
पतंजलि खदिरादि वटी के सेवन में सावधानियाँ Precaution of Patanjali Khadiradi Vati 

यद्यपि पतंजली खदिरादीवटी एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसके प्रतिकूल प्रभाव नहीं होते हैं फिर भी आप इस ओषधि के सेवन के लिए वैद्य से संपर्क करें और वैद्य के अनुसार दवा का सेवन करें।
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पतंजली खदिरादी वटी के घटकों की सामान्य जानकारी निम्न प्रकार से है।

जावित्री (Myristica FRAGRANS) -Khadiradi Vati Ke Ghatak
मायरिस्टिका फ्रैगरैंस (Myristica fragrans) एक पेड़ के जो फल लगते हैं उन्हें जायफल कहते हैं और जायफल (बीज) को ढकने वाली पतली रेशेदार परत को जावित्री कहा जाता है। दोनों (जावित्री और जायफल) एक ही पेड़ मायरिस्टिका फ्रैगरैंस से प्राप्त किये जाते हैं जहाँ इस पेड़ के बीज को जायफल कहते हैं वहीँ बीज के बाहरी आवरण के अन्दर बीज को ढकने वाली पतली परत को जावित्री कहा जाता है। जहाँ इसकी काफी अच्छी सुगंध होती है वहीँ यह ओषधिय गुणों से भी युक्त होती है। दोनों एक ही पेड़ से प्राप्त किये जाते हैं लेकिन दोनों के ही ओषधिय लाभ भिन्न होते हैं। जावित्री को अंग्रेजी में मेस (mace) कहते हैं। जावित्री में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन, मिनरल, प्रोटीन, फाइबर और अन्य कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं। मिरिस्टिका प्रजाति की लगभग 80 जातियाँ हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर के द्वीपों पाई जाती हैं। यूनानी और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में जावित्री का उपयोग अधिक प्रचलित है।
जावित्री के कई ओषधिय लाभ होते हैं जिन में कुछ विशेष निम्न प्रकार से हैं -
  • जावित्री में अंतरी इन्फ्लामेन्टरी प्रोपर्टीज होती हैं जिनके कारण से इसका सेवन सुजन को कम करता है और गठिया जैसे विकारों में लाभदाई होता है।
  • कब्ज और अन्य पाचन विकारों में भी जावित्री का सेवन लाभदाई होता है। जावित्री के सेवन से पाचन तंत्र को शक्ति मिलती है और अजीर्ण जनित विकारों में लाभ मिलता है। (1)
  • जावित्री के सेवन से भूख में वृद्धि होती है।
  • जावित्री के सेवन से रक्त परिसंचरण में लाभ मिलता है।
  • जावित्री तनाव को कम करता है।
  • दाँतों के स्वास्थ्य के लिए भी जावित्री लाभदाई होती है।
  • मधुमेह के खतरे को भी कम करती है जावित्री (२) इसलिए आप भी इसे अपनी डाइट में शामिल कीजिये।
  • जावित्री में कैंसर से लड़ने की भी क्षमता पाई जाती है (3)
  • जावित्री एक प्राकृतिक गुणों से युक्त मसाला है जो आपको किडनी विकारों से भी दूर रख सकता है (4)
  • जावित्री मेंमौजूद एंटी-एलर्जी, एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्मेटरी प्रोपर्टीज हमें सर्दी झुकाम और ऐसे ही संक्रामक रोगों से दूर रखती हैं (5)
  • जावित्री एंटी-इंफ्लेमेटरी के गुणों से युक्त होती है जो हमें हड्डियों के विकारों से दूर रखती है। गठिया, ऑर्थरिटीज जैसे विकारों में भी जावित्री लाभदायक होती है (6)
  • जावित्री के सेवन से अतिरिक्त वसा का दहन होता है और यह हमें बढ़ते वजन से दूर रखती है (7)(8)
  • एक अध्ययन के मुताबिक़ आप जावित्री के सेवन से अनिंद्रा जैसे विकारों में भी राहत पा सकते हैं। (9)
  • जावित्री एंटी इन्फ्लामेंटरी गुणों से भरपूर होती है जिससे शरीर के विभिन्न हिस्सों की सुजन दूर होती है (10)
कांकोल मिर्च Pipercubeba (Sheetal Chini or Kabab Chini) कंकोल मिर्च, कंकोल मिर्च या शीतल चीनी के नाम से प्रसिद्ध कबाब चीनी आपको काली मिर्च के सद्रश्य बजार में आसानी से प्राप्त हो जाती है। कांकोल मिर्च का स्वाद कटु-तिक्त होता है, लेकिन इसे चबाने से मनोरम तीक्ष्ण गंध आती है और जीभ को शीतल करती है। इसे कंकोल, सुगंधमरिच, शीतलचीनी और क्यूबेब (Cubeba) के नामों से भी पहचानते हैं। यह पाइपरेसिई (Piperaceae) कुल की पाइपर क्यूबेबा (Piper Cubeba) नामक लता का फल है जो जावा, सुमात्रा तथा बोर्नियो आदि इलाकों में उगती है। यह श्री लंका और दक्षिणभारत के कुछ इलाकों में भी पैदा होती है। भारत में मैंसूर राज्य में यह बहुलता से पैदा किया जाता है। इसमें एक प्राकृतिक रूप से तेल होता है जो बहुत ही गुणकारी होता है। आयुर्वेदा में इसे इसे कटु तिक्त, दीपक-पाचक, वृश्य तथा कफ, वात, तृषा एवं मुख की जड़ता और दुर्गंध दूर करनेवाली माना जाता है। इसमें कैरेमेटिव, मूत्रवर्धक, उत्तेजक, शामक और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं। कंकोल मिर्च में 5 से 20 प्रतिशत तेल होता है। खादिरादीवटी के अतिरिक्त इसका उपयोग अश्वगंधा पाक, कौंच पाक, मकरध्वज वटी, सालम पाक आदि ओषधियों में किया जाता है। शीतल चीनी के कई नाम हैं जैसे संस्कृत (Sanskrit) कंकोलं, हिन्दी (Hindi) शीतलचीनी, कबाबचीनी, मराठी (Marathi) कंकोल, गुजराती (Gujarati) तडमिरे, चणकबात, बंगला (Bengali) कोकला,शीतलचीनी, तेलगु (Telugu) टोकामिरियालू, कबाबचीनी, तामिल (Tamil) वलमिलाकू, लैटिन (Latin) पाइपर क्यूबेबा (Piper Cubeba) आदि।
शीतल चीनी स्वाद में चरपरी, तीक्ष्ण, कड़वी उत्तेजक, रुचिकर, मूत्रल, दीपन, पाचन, हलकी, वृष्य, उष्णवीर्य और हृदयरोग, कफ वात तथा अन्धत्व को दूर करने वाली होती है।

शीतल चीनी के प्रमुख फायदे Some Benefits of Sheetal Chini
  • दूध के साथ शीतल चीनी को लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।
  • कबाब चीनी के पाउडर को गुनगुने पानी के साथ लेने पर खाँसी में राहत मिलती है।
  • शीतल चीनी के सेवन से मूत्र विकारों में राहत मिलती है।
  • कबाब चीनी के सेवन से गठिया जैसे रोंगों में लाभ मिलता है क्योंकि यह सुजन को कम करती है।
  • मुंह से सबंधित विकारों के लिए शीतल चीनी बहुत ही उपयोगी होती है। इसे मुंह में रखकर चूसने से जहाँ मुंह की दुर्गन्ध दूर होती है वहीँ छालों में भी राहत मिलती है।
  • पुराने सुजाक रोग में शीतल चीनी के सेवन से लाभ मिलता है।
  • मूत्रदाह में कबाब चीनी के सेवन से लाभ मिलता है।
  • पुरानी खाँसी में शीतल चीनी के चूर्ण को लेने से लाभ प्राप्त होता है।
  • स्वर भंग में भी कबाब चीनी के सेवन से लाभ मिलता है।
  • कबाब चीनी के चूर्ण को मिश्री के साथ लेने पर पेशाब की जलन दूर होती है और पेशाब खुलकर लगते हैं।
  • शीतल चीनी के सेवन से पुरुष शक्ति का विकास होता है।
  • छोटी इलायची, वंशलोचन के साथ शीतल चीनी के चूर्ण को लेने से स्वप्न दोष दूर होता है।

कर्पूर Cinnamomum Camphoraकपूर Camphor (Cinnamomum camphora) को संस्कृत कर्पूर कहते हैं और यह एक उड़नशील वानस्पतिक द्रव्य है। यह सफेद रंग का मोम की तरह का पदार्थ है, लेकिन कुछ सख्त भी होता है। कपूर में एक तीखी गंध होती है। कपूर को संस्कृत में कर्पूर, फारसी में काफ़ूर और अंग्रेजी में कैंफ़र कहते हैं। कपूर का प्रयोग जहाँ हम घरेलु कार्यों में लेते हैं वहीँ पर कपूर का उपयोग क्रीम, ऑइंटमेंट और जेल आदि के निर्माण में भी किया जाता है। कपूर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, एक तो वे जो सीधे पेड़ से प्राप्त किये जाते हैं और दुसरे कृतिम रूप से तैयार। प्राकृतिक रूप से कपूर ताइवान, जापान, कोरिया, वियतनाम आदि देशों में बहुतयात से पाया जाता है वहीँ भारत के कुछ भागों यथा देहरादून, मैसूर, सहारनपुर, नीलगिरी में कपूर को प्राकृतिक रूप से पेड़ों से प्राप्त किया जाता है। भारत में कपूर को कपूर के पेड़ों की पत्तियों के आसवन से ही प्राप्त किया जाता है। कपूर का गुण है की कपूर वातहर, दीपक और पूतिहर होता है। कपूर त्वचा और फुफ्फुस के द्वारा उत्सर्जित होने के कारण यह स्वेदजनक और कफघ्न होता है। साधारण औषधीय मात्रा में इससे प्रारंभ में सर्वाधिक उत्तेजन, विशेषत: हृदय, श्वसन तथा मस्तिष्क, में अधिक होता है।मुख्य रूप से कपूर चीनी अथवा जापानी कपूर, भीमसेनी अथवा बरास कपूर, और भारतीय पत्रीकपूर। अधिक पराग वाले भीमसेनी कपूर को सबसे अच्छा माना जाता है । भीमसेनी या देसी कपूर की पहचान यही है की उसे पानी में डालने पर वह निचे बैठ जाता है।

कपूर का जहाँ धार्मिक महत्त्व रहा है वहीँ पर घरों में हम इसे ऊनि कपड़ों को कीट आदि से सुरक्षित रखने के लिए करते हैं। आइये जान लेते हैं की कपूर के प्रमुख फायदे क्या हैं।
  • आयुर्वेद के अनुसार कपूर कफ दोष नाशक और कोलेस्ट्रोल लेवल को कम करने वाला माना जाता है।
  • बालों में लगाने वाले तेल में कपूर मिला कर लगाने से रक्त संचरण में सुधार होता है और बालों के झड़ने सबंधी विकार दूर होते हैं।
  • मिश्री और कपूर के बारीक चूर्ण को मुंह के छालों पर लगाने से मुख पाक में राहत मिलती है। खदिरादी वटी में इसका उपयोग छालों को दूर करने हेतु किया जाता है।
  • शुण्ठी, लौंग, कर्पूर, अर्जुन की छाल और सफेद चंदन को समान मात्रा में पीस कर बालों में लगाने से सरदर्द शांत हो जाता है।
  • कर्पूर को गुलाब जल में मिलाकर पीस लेने के उपरान्त नाक में एक से दो बूंद डालने पर नकसीर रुक जाती है और नाक में ठंडक बनी रहती है।
  • सौंठ और कपूर के चूर्ण को दांतों पर लगाने से दांत दर्द में राहत मिलती है।
  • कपूर में सुजन कम करने की शक्ति होती है इसलिए यह गठिया जैसे विकारों में भी लाभदाई होता है।
  • बवाशीर विकार में भी कपूर का उपयोग श्रेष्ठ होता है। सुजन वाली जगह पर नारियल के तेल में कपूर को मिला कर लगाने से प्रभावित स्थान की सुजन और दर्द कम होता है और मलत्याग में आराम मिलता है। इसके अतिरिक्त कपूर को (छोटे चने के आकार जितना ) केले में रखकर खाने से बवासीर में भी राहत मिलती है ।
  • कपूर में शोथहर गुण होता है जिससे यह शरीर की सूजन को दूर करता है। आर्थराइटिस और मांसपेशियों के दर्द के लिए कपूर मिश्रित तेल की मालिश करने पर लाभ मिलता है।
  • कपूर के तेल से सर की मालिश करने पर दीमाग शांत होता है और बेहतर नींद आती हैं। कपूर के तेल में नारियल का तेल मिलाकर लगाने से शीघ्र लाभ मिलता है।
  • गर्म पानी में कपूर डालकर उसकी स्टीम लेने से बंद नाक खुल जाता है और सर्दियों में होने वाली सर्दी जुकाम से राहत मिलती है।
  • कीड़े मकोड़े, छिपकली और मच्छरों को दूर करने का एक तरीका है की आप कपूर को जला कर खिड़की में रखें तो डेंगू के मच्छर और छिपकली आदि कीट घर में प्रवेश नहीं करते हैं। कपूर को जलाने से वातावरण शुद्ध होता है।
  • त्वचा विकारों में भी कपूर लाभदाई होता है। खाज खुजली होने पर कपूर को लगाने से खाज दूर होती है।
  • मुख की दुर्गन्ध को दूर करने के लिए भी कपूर गुणकारी होता है।
  • सुपारी Areca Catechu
  • सुपारी को तो हम सभी जानते ही हैं क्योंकि इसे हम सीधे चबाने या पान में खाने के लिए उपयोग में लेते हैं। खाद्य प्रदार्थों के अतिरिक्त सुपारी का धार्मिक महत्त्व भी है, इसे हम पूजन सामग्री के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। सुपारी एरिकेसी (Arecaceae) कुल से संबंधित एक पेड़ का फल होता है। सुपारी का वैज्ञानिक नाम ऐरेका केटेचू (Areca catechu Linn, Syn-Areca hortensis Lour) है और अंग्रेजी में इसे बीटल नट (Betel Nut) कहते हैं। सुपारी को मुख्य रूप से हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं एक साधरण सुपारी और दूसरी लाल सुपारी। सुपारी का पेड़ नारियल और ताड़ के पेड़ के समान ऊंचाई लिए हुए होता है और इसका तना सीधा, और छलेदार होता है। इसके फल पक जाने पर सुपारी का सख्त रूप ले लेते हैं। इस फल के अंदर का भाग ही सुपारी कहलाता है।
  • सुपारी की तासीर गर्म और अम्लीय होती है। सुपारी (Areca nut) में प्रोटीन 4.9%, कार्बोहाइड्रेट 47.2%, वसा 4.4% और खनिज द्रव्य 1% होता साथ ही सुपारी में टैनिन, गैलिक एसिड, लिगनिन, एरिकोलिन और एरीकेन जैसे एल्केलायड भी पाए जाते हैं जो शरीर के लिए लाभदाई होते हैं।
  • आइये जान लेते हैं की सुपारी के मुख्य लाभ क्या हैं -
  • लाल सुपारी की पत्तियों में फ्लेवोनोइड, एल्कलॉइड, टेरपीनोइड, टैनिन, सायनोजेनिक, ग्लूकोसाइड, आइसोप्रेनॉइड, एमिनो एसिड और यूजेनॉल जैसे खास तत्व पाए जाते हैं जिनसे स्ट्रोक का खतरा कम हो जाता है। (1)
  • मुख पाक / मुंह के छालों के लिए भी सुपारी बहुत ही गुणकारी होती है। खदिरादी वटी में इसका उपयोग मुंह के छालों को दूर करने और मुंह के संक्रमण की रोकथाम के लिए किया जाता है।सुपारी और बड़ी इलायची की भस्म को छालों पर लगाने से छालों में राहत मिलती है।
  • सोंठ, सुपारी, अथवा मरिच, गोमूत्र, और नारियल के जल से बना क्वाथ भी मुंह के छालों में गुणकारी रहता है।
  • कई प्रकार के मानसिक विकारों में भी सुपारी का सेवन लाभकारी होता है। (2)
  • सुपारी के क्वाथ से पेट के कीड़े दूर होते हैं और पाचन विकारों में भी लाभ मिलता है।
  • सुपारी के सेवन से दांतों की केविटी दूर होती है लेकिन अधिक मात्रा में इसका सेवन गुणकारी नहीं होता है। (3)
  • सुपारी के चूर्ण को छाछ के साथ लेने से आँतों के विकारों में लाभ मिलता है।
  • एक शोध के मुताबिक सुपारी के सेवन से सूखे मुंह का विकार दूर होता है और मुंह में लार का निर्माण होता है। (4)
  • खदिर छाल के साथ सुपारी के चूर्ण को लेने से पेशाब के विकार दूर होते हैं और खुलकर पेशाब लगते हैं।
  • सुपारी के एंटी इन्फ्लामेंटरी प्रोपर्टीज के कारण घुटनों के दर्द और पीठ दर्द में लाभ मिलता है।सुपारी के पत्तों के रस को कमर और घुटनों पर लगाने से भी राहत मिलती है।
  • सुपारी के चूर्ण को पीस कर त्वचा पर लगाने से त्वचा विकार दूर हो जाते हैं।
  • सुपारी के सेवन से मुंह में अधिक लार बनती है और पाचन क्रिया में सुधार होता है (5)
  • सुपारी के सेवन से मांसपेशियां मजबूत होती हैं। सुपारी में पाया जाने वाला एंटी-मस्कैरेनिक मांशपेशियों को मजबूत बनाता है। (6)
  • एक शोध के मुताबिक़ सुपारी के सेवन से कब्ज दूर होता है और पाचन तंत्र सुधरता है। (7)
  • सुपारी मसूड़ों के संक्रमण को दूर रखता है और नियंत्रित मात्रा में लेने पर लाभ मिलता है। (8)

खैर सार Acaciacatechu (Black catechu (heart wood extract) –
Acacia catechu)-Khadiradi Vati Ke Ghatak
खैर बबूल के तरह से एक जंगली वृक्ष होता है। इसकी पत्तियाँ भी बबूल के समान ही दिखाई देती हैं। हमारे यहाँ इसका वृक्ष उत्तरप्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में अधिकतर पाया जाता है। खैर को ही संस्कृत में "खदिर" कहा जाता है जिसका मतलब होता है "रोगों को नष्ट करने वाला, खैर को स्थानीय भाषाओं में विविध नामों से जाना जाता है यथा commonly known as: black catechu, black cutch, cashoo, catechu, cutch tree, wadalee gum, Assamese: খৈৰ kher, Bengali: খয়ের khayer, Gujarati: ખેર kher, Hindi: दन्त धावन dant-dhavan, गायत्रिन् gayatrin, खैर khair, खयर khayar, मदन madan, पथिद्रुम pathi-drum, पयोर payor, प्रियसख priya-sakh, Kannada: ಕಾಚು kaachu, ಕದಿರ kadira, ಕಾದು kadu, ಕಗ್ಗಲಿ kaggali, Konkani: खैर khair, Malayalam: കരിണ്ടാലി karintaali, Marathi- खैर khair, खयर khayar, यज्ञवृक्ष yajnavrksa आदि आयुर्वेद के मतानुसार खैर वृक्ष के आयुर्वेद में भी इसकी छाल और निर्यास अर्थात गौंद उपयोगी होती है। खदिर या खैर की छाल से ही "कत्था" बनाया जाता है। इसके सारभाग में कैटेचिन 4% और कैटचुटैनिक एसिड 7% तक होते हैं।
खैर का रस तिक्त एवं कषाय होता है तथा खैर गुण में लघु और रुक्ष होता है। खैर शीत वीर्य होती है एवं विपाक में कटु होती है। इन्ही गुणों के कारण खैर सार कफ एवं पित्त का शमन करने वाला होता है। खैर सार तिक्त एवं कषाय होने के कारण कफ का एवं शीतवीर्य होने के कारण पित्त का शमन करता है। खैर के इन आयुर्वेदिक गुणों के कारण खैर से खदिरारिष्ट, खादिरादी क्वाथ, खादिराष्टक एवं खादिरादी वटी आदि ओषधियों का निर्माण किया जाता है। आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल डायरिया, पाइल्स जैसे रोग ठीक करने में भी होता है। खैर के निम्न लाभ होते हैं

  • खैर सार से बनी खादिरादीवटी के सेवन से मुख पाक, मुंह के संक्रमण, मुंह के छालों से सबंधित विकार दूर होते हैं।
  • मसूड़ों से खून का आना, मसूड़ों का ढीला होना, मुंह की दुर्गन्ध आदि विकारों में भी खैर सार के सेवन से लाभ मिलता है।
  • कैर की छाल को उबाल कर इससे नहाने से शरीर के संक्रमन दूर होते हैं और कुष्ठ रोग में भी लाभ मिलता है।
  • यदि कफ्फ की अधिकता हो गई हो तो भी "खैर सार" के सेवन से लाभ मिलता है।
  • खैर सार शीतवीर्य का होता है जिससे यह पित्त की वृद्धि को नियंत्रित करता है।
  • खैर सार को पानी के साथ पीने से अतिसार में लाभ मिलता है।
  • खैर सार के सेवन से चर्म रोग दूर होते हैं।
  • खैर की छाल को घीस कर फोड़े फुंसियों पर लगाने पर त्वचा विकार दूर होते हैं।
  • खैर सार के सेवन से पुराने कफ्फ और खाँसी में राहत मिलती है।
  • खैर सार के सेवन से प्रदर रोग और सफ़ेद दाग में आराम मिलता है।
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इस लेख हेतु उपयोग में लिए गए सन्दर्भ
References to this Article


विशेष - यद्यपि आयुर्वेद में किसी ओषधि का कोई घातक परिणाम नहीं होता है फिर भी आप उपरोक्त जानकारी को अमल में लाने / किसी ओषधि को बनाने/ ओषधि को उपयोग में लाने से पूर्व चिकित्सक की सलाह अवश्य लेवें। इस लेख का उद्देश्य आपको ओषधि की जानकारी देना मात्र है। रोग की जटिलता, शारीरिक तासीर, उम्र आदि को ध्यान में रखकर वैद्य आपको किसी दवा की राय देता है। पतंजली चिकित्सालय / पतंजली आयुर्वेद स्टोर्स पर उपलब्ध वैद्य से निशुल्क परामर्श प्राप्त करे और इसके उपरान्त ही किसी दवा का सेवन करें।
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1 टिप्पणी

  1. बहुत ही ज्ञानवर्धक और लाभदायक बातें आपने बताई है। बहुत बहुत आभार।