लखदातार खाटू श्याम जी कथा Khatu Shyam Ji Story

लखदातार खाटू श्याम जी Khatu Shyam Ji Story  इसलिए कहते हैं बाबा को "हारे का सहारा" Khatu Shyam Ji Ke Baare Me

 
लखदातार खाटू श्याम जी कथा Khatu Shyam Ji Story in Hindi

श्री खाटू नगरी में श्याम बाबा का दरबार सजा है। दूर दूर ले भक्त श्री श्याम बाबा की शरण में आते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। महाभारत के युद्ध में हारने वाले पक्ष की और से लड़ने के निर्णय के कारन ही श्री श्याम बाबा को "हारे का सहारा" के नाम से जाना जाता है जो की पुरे विश्व में विख्यात है। कलयुग में बाबा श्याम धणी (तीन बाण धारी ) श्री कृष्ण जी के अवतार के रूप में पूजे जाते हैं जिनकी अत्यंत ही भारी महिमा है। बाबा श्याम के भक्त ना केवल राजस्थान बल्कि, हरियाणा, पंजाब और हिंदी भाषी क्षेत्रों में घर घर में हैं । सिद्ध है की जिसका कोई सहारा शेष नहीं बचता है, जिसे संसार ठुकरा देता है उसका सहारा बाबा श्याम ही बनते हैं। श्री खाटू श्याम जी का भव्य मंदिर श्री खाटू नगरी, रींगस जिला सीकर, राजस्थान में स्थापित हैं जहाँ पर पूरे भारत और विदेशों से बाबा के भक्त बाबा की शरण में आते हैं।

खाटू श्याम जी के बारे में About Shri Khatu Shyam Ji
  • श्री खाटू श्याम जी का पूर्व का नाम : बर्बरीक 
  • श्री खाटू श्याम जी के माता का नाम : मऊवती / मौरवी (दैत्य मूर की पुत्री )
  • पिता का नाम : घटोत्कच
  • बाबा का वाहन : नीलाघोड़ा 
बाबा खाटू श्याम जी का पूर्व में नाम बर्बरीक (बब्बर शेर की भाँती) था जो भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र थे। बर्बरीक की माता का नाम मौरवी/ मऊवती (कामकटंककटा "मोरवी") (माऊ की पुत्री, यादवों के राजा) था। बर्बरीक बचपन से ही युद्ध कला में निपुण थे और उनकी माता ने भी उनको यही शिक्षा दी की हमेशा हारने वालों का साथ देना चाहिए और कमजोर का हिमायती बनना चाहिए। माता मौरवी ने ही बाबा को युद्ध कला में निपुण बनाया था।
 
बाबा का जन्म Khatu Shyam Ji Avtaran
मान्यता के अनुसार लाक्षागृह से जान बचाकर पांडव वन वन भटकने लगे। पांडवों की मुलाक़ात इसी दौरान हिडिम्बा से हुई। हिडिम्बा बलशाली गदा धारी भीम को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती है। माता कुंती की आज्ञा के उपरान्त भीम का विवाह हिडिम्बा से हुआ। भीम और हिडिम्बा से घटोत्कच उत्पन्न हुए। घटोत्कच का विवाह मौरवी/ मऊवती (कामकटंककटा "मोरवी") से यादव कुल से थीं। इनसे ही बर्बरीक का जन्म हुआ जो अपने पिता से भी अधिक शक्तिशाली थे।

महाभारत का युद्ध और ऋषि बर्बरीक
महाभारत के युद्ध के समय बर्बरीक ने हारने वाले पक्ष का साथ देने की घोषणा की। महाभारत के युद्ध में रवाना होने के वक़्त बर्बरीक अपने लीले (नीले) घोड़े पर सवार होकर तीन बाण लेकर अकेले ही रवाना हो गए। सर्वज्ञानी श्री कृष्ण जी को जब यह पता चला की बर्बरीक युद्ध के लिए अग्रसर हो चुके हैं तो उन्होंने बर्बरीक को युद्ध में शामिल होने से रोकने के लिए साधू (ब्राह्मण )का रूप धारण किया क्योंकि श्री कृष्ण जानते थे की बर्बरीक युद्ध का परिणाम ही उलट करके रख देगा। रास्ते में बर्बरीक को रोककर श्री कृष्ण जी ने उनसे बातचीत की और बातों ही बातों में उनका मजाक उड़ाया की वह अकेले ही तीन बाण के साथ युद्ध के लिए निकल पड़ा है। श्री कृष्ण जी के तीन बाण के विषय में पूछने पर बर्बरीक ने कहा की उसका तो एक ही बाण काफी है जो समस्त सेना का विनाश करके पुनः उसी के पास लौट के आ जाएगा।

इस पर श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक को चुनौती दी की वह जहाँ पर खड़े हैं (पीपल का वृक्ष) उसके सभी पत्ते क्या तुम्हारा बाण छेद सकता है। इस पर बर्बरीक ने अपना बाण चलाया और वह सभी पत्तों को भेदता हुआ श्री कृष्ण जी के पैरों के पास मंडराने लगा क्योंकि एक पत्ता श्री कृष्ण जी ने अपने पैरों के निचे छिपा रखा था।

इसके उपरान्त ब्राह्मण के वेश में श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक से दान माँगा और कहा की उसे तो उसका शीश दान में चाहिए। इस पर बर्बरीक ने श्री कृष्ण जी को अपना वास्तविक रूप दिखाने को कहा तब श्री कृष्ण जी ने अपना विराट रूप बर्बरीक को दिखाया।
 
फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को बर्बरीक ने अपना शीश श्री कृष्ण जी को दान में दिया और श्री कृष्ण जी ने उनको वरदान दिया की कलयुग में उन्हें श्री श्याम जी के नाम से पूजा जाएगा। उल्लेखनीय है की बर्बरीक ने श्री कृष्ण से युद्ध देखने के लिए उनका शीश किसी ऊँची पहाड़ी पर रखने के लिए विनती की जिसके उपरान्त श्री कृष्ण जी ने उनका शीश एक पहाड़ी पर रखा था। युद्ध समाप्ति के उपरान्त पांडवों की आपसी बहस में की किसने युद्ध में सर्वश्रेष्ठ बहादुरी दिखाई, इस पर श्री कृष्ण जी के कहने पर वे बर्बरीक के पास आए जहाँ पर उनके बर्बरीक के शीश ने कहा की श्री कृष्ण जी ने ही युद्ध में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। उनका सुदर्शन चक्र ही शत्रुओं पर भारी पड़ रहा था और द्रौपदी महाकाली बन कर रक्तपान कर रही थी।

खाटू श्याम जी का मंदिर Khatu Shyam Ji Temple
श्री खाटू श्याम जी का मंदिर सीकर जिले के रींगस में स्थापित है। श्री खाटू श्याम जी का मंदिर महान ऋषि और पराक्रमी बर्बरीक को समर्पित है जो की भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र थे। बर्बरीक भगवान् आदि शक्ति (नव दुर्गा) के महान भक्त थे और उनके तप से प्रशन्न होकर आदि शक्ति ने उन्हें तीन बाण दिए थे जो तीनों लोकों को विजय करने की क्षमता रखते थे। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किये जो उन्हें तीनो लोको में विजय दिलाने में सक्षम था। महाभारत के युद्ध के समय जब भगवान् श्री कृष्ण को यह पता चला की बर्बरीक युद्ध में भाग लेने के लिए आ रहे हैं और वे उस पक्ष का साथ देंगे जो हारने वाला है तो भगवान् श्री कृष्ण जी ने उनसे उनका शीश दान स्वरुप ले लिया और उन्हें यह वरदान दिया की वे स्वंय उनका मंदिर बनवायेंगे और कलयुग में वे श्याम जी के नाम से पूजे जायेंगे। खाटू श्याम जी के मंदिर के निर्माण के विषय में मान्यता है की बर्बरीक का कटा हुआ शीश खाटू में दफनाया गया।

गायें उस स्थान पर आकर स्वतः ही दूध देनें लग जाती थी जिसके कारण उस स्थान की खुदाई करवाई गई और वहां पर बाबा श्याम की मूर्ति निकली। कार्तिक माह की एकादशी को को इसी स्थान पर बाबा की मूर्ति को स्थापित किया गया, जिसे हम वर्तमान में खाटू श्याम जी के मंदिर के रूप में जानते हैं। एक मान्यता यह भी है की बाबा ने लीला रचकर श्याम कुंड के समीप अपने शीश को स्वंय ही प्रकट किया था। मान्यता के अनुसार खाटू गाँव के तात्कालीन राजा रूपसिंह चौहान को स्वप्न में मंदिर निर्माण तथा बर्बरीक के शीश को मंदिर में सुशोभित करने की बनाने की बात सामने आई। तत्पश्चात राजा रूपसिंह चौहान एवं उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने १०२७ ई. में खाटू श्याम जी के मंदिर का निर्माण कराया तथा कार्तिक मॉस की एकादशी को मंदिर में शीश सुशोभित किया। यह दिवस खाटू श्याम के जन्मदिवस के रूप में बड़ी हर्षौल्लास से मनाया जाता है।

बाबा श्याम के मन्त्र

  • जय श्री श्याम देवाय नमः ।।
  • ॐ श्याम देवाय बर्बरीकाय हरये परमात्मने ।। प्रणतः क्लेशनाशाय सुह्र्दयाय नमो नमः।।
  • महा धनुर्धर वीर बर्बरीकाय नमः ।।
  • श्री मोर्वये नमः ।।
  • श्री मोर्वी नन्दनाय नमः ।।
  • ॐ सुह्र्दयाय नमो नमः ।।
  • श्री खाटूनाथाय नमः ।।
  • श्री मोर्वये नमः ।।
  • श्री शीशदानेश्वराय नमः ।।
  • ॐ श्री श्याम शरणम् मम: ।।
  • ॐ मोर्वी नन्दनाय विद् महे श्याम देवाय धीमहि तन्नो बर्बरीक प्रचोदयात्। 

श्याम कुंड : Shyam Kund

बाबा श्याम ने लीला रचकर स्वंय के शीश को वर्तमान में जहाँ श्याम कुंड है, वहां पर अवतरित किया।
श्याम कुंड के बारे में मान्यता है की जहां बाबा का शीश जिस धरा पर अवतरित हुआ था उस स्थान को श्याम कुंड के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है की श्याम कुंड में यदि कोई भक्त सच्चे मन से डुबकी लगाता है तो उसके सारे पाप कट जाते हैं और बाबा का आशीर्वाद उसे प्राप्त होता है। श्याम कुंड दो भागों में विभक्त है,  महिला और पुरुष। 
 
 
ऐसी मान्यता है की श्री श्याम कुंड प्राचीन समय में रेत का टीला हुआ करता था। उस टीले के आस पास इदा जाट की गायें चरने के लिए आया करती थी। टीले के ऊपर के आक का पौधा भी था। टीले के पास आते ही गायें स्वतः ही दूध देने लग जाती थी। इदा जाट रोज इस प्रक्रिया को देखता था। उसे इस बात का आश्चर्य हुआ की गायें उस स्थान पर जाते ही कैसे दूध देने लगती हैं। 
रात को इडा जाट को स्वप्न में दिखाई दिया की वहां दूध पीने वाला कोई और नहीं श्री श्याम ही हैं। श्री श्याम ने उससे कहा की राजा से कह कर उस स्थान की खुदाई करवाओ तुम्हे उस स्थान पर में मिलूंगा जो कलयुग में श्याम बाबा के नाम से पुकारे जाएंगे। अगले रोज राजा के कहने पर उस स्थान की मिटटी को हटाया गया और वहां पर श्री श्याम बाबा की मूर्ति टीले से निकाली गयी। आज  मूर्ति की पूजा होती है और वहां जो कुंड बनाया गया उस कुंड को श्याम कुंड के नाम से पुकारा जाता है।
 

श्री श्याम बगीची Shri Shyaam Bagichi (लखदातार खाटू श्याम जी Khatu Shyam Ji Story in Hindi)

श्री खाटू श्याम जी के मंदिर के बाई तरफ श्री श्याम बगीची है जहाँ पर बाबा के परम भक्त आलू सिंह जी बाबा के श्रृंगार के लिए पुष्प लगाते थे। शाम बगीची में ही आलू सिंह जी की मूर्ति भी स्थापित हैं जहाँ पर समस्त भक्त आलू सिंह जी को नमन करते हैं। आलू सिंहजी महाराज का जन्म 1916 ई. में बाबा श्याम की खाटू नगरी में हुआ था। ये राजपूत परिवार से थे। इनके पिता का नाम किशन सिंह था। आलू सिंह जी घंटों तक बैठकर बाबा का ध्यान लगाया करते थे। पहले तो लोगों को लगा की उनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है लेकिन बाद में जब लोगों ने बाबा श्याम के चमत्कार देखे तो सभी भक्त जन भी आलू सिंह जी को महान भक्त मानने लगे।

लखदातार खाटू श्याम जी Khatu Shyam Ji Story in Hindi बाबा का निशान Khatu Shyam Ji Nishaan
बाबा को धजा (ध्वजा) या निशान चढाने की रिवाज हैं। बाबा को मुख्य रूप से पंचरंगा धजा/निशान चढाने का रिवाज है जो की विजय का प्रतीक होने के साथ साथ ही पञ्च मूल भोत तत्वों की भी निशानी है। बाबा खाटू श्याम जी की निशान यात्रा रिंगस से पैदल ही हाथों में निशान उठाकर की जाती है इसके साथ ही कुछ लोग अपने घर से भी निशान साथ ही लेकर आते हैं । बाबा की यह निशान यात्रा पैदल ही पूर्ण की जाती है जो बाबा के विजय का प्रतीक है । इस निशान यात्रा में मुख्य रूप से पंचरंगा निशान होता है लेकिन लोग केसरिया, नीला और सफ़ेद निशान भी लाते हैं । वर्तमान समय में लोग सोने और चांदी के निशान भी लेकर आते हैं । श्याम कुंड- खाटू श्याम जी मंदिर के समीप ही श्याम कुंड भी जहाँ पर श्री श्याम जी की मूर्ति प्रकट हुई। इस कुंड में स्नान करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं। इस श्याम कुंड को दो भागों में विभाजित किया गया है एक तो महिलाओं के लिए और दुसरा पुरुषों के लिए।

खाटू श्याम जी हैं कुल देवता Khatu Shyam Ji Kuldevta -
कई परिवारों के खाटू श्याम जी कुल देवता के रूप में भी पूजे जाते हैं।

Morchadi Baba Khatu Shyam Ji खाटू श्याम जी हैं मोरछड़ी बाबा -
बाबा के श्रृंगार में हमेशा मोर के पंखों से बना हुआ एक झाड़ा दिखाई देता हैं, इसीलिए बाबा को मोरछड़ी बाबा कहते हैं।

श्री खाटू श्याम जी मेला Shri Khatu Shyam Ji Mela
श्री खाटू श्यामजी मंदिर में प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष में बड़े मेले का आयोजन होता है। हर वर्ष खाटू श्याम जी के मेले में काफ़ी संख्या में देश-विदेश से असंख्य श्रद्धालु आते हैं। श्री खाटू श्याम जी का मेला फागुन सुदी दशमी के आरंभ और द्वादशी के अंत में लगता है। इस मेले को लक्खी मेला भी कहा जाता है। इस मेले में स्थानीय लोग लंगर लगाते हैं और पैदल आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा करके बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। जयपुर और सीकर के राष्ट्रिय राजमार्ग और छोटी सड़कों पर लोग लंगर लगाते हैं। मेले का मुख्य द्वार रींगस में लगता है जहाँ से दस से बारह किलोमीटर पैदल चलकर श्रद्धालु बाबा के दरबार तक पहुँचते हैं। 

खाटू श्याम जी हैं शीश के दानी Khatu Shyam Ji "Sheesh Ke Daani"

भगवान् श्री कृष्ण जी के द्वारा महाभारत के युद्ध में बर्बरीक से शीश का दान माँगा गया था इसलिए बाबा को शीश का दानी कहते हैं। 
खाटू श्याम जी हैं लखदातार :
 
बाबा को लखदातार भी कहा जाता हैं क्योंकि वे अपने भक्तों की मुरादों को पूर्ण करते हैं। बाबा एक भिखारी को भी राजा बनाने का वरदान देते हैं।
बाबा श्याम जी पूजा कैसे करें Khatu Shyam Ji Puja Vidhi
 
सर्वप्रथम तो आप स्वंय शुद्ध हो जाएं और हमेशा शुद्ध होने के उपरान्त ही पूजन शुरू करें। बाबा खाटू श्याम जी की पूजा विधि बहुत ही आसान है। सर्वप्रथम तो आप बाबा की मूर्ति को उचित स्थान पर विराजित करें और फिर पंचामृत या दूध-दही से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से पुनः बाबा को स्नान करवाएं और फिर बाबा को धुप और अगरबत्ती जला कर ताजे पुष्पों की माला को बाबा को चढ़ाएं। बाबा की मूर्ति के समक्ष घी का दीपक जलाएं और फिर बाबा का ध्यान करें।

लखदातार खाटू श्याम जी Khatu Shyam Ji Story in Hindi बाबा खाटू श्याम जी के विविध नाम
जय श्री श्याम, जय खाटू वाले श्याम, जय हो शीश के दानी, जय हो कलियुग देव की, जय खाटू नरेश, जय मोर्वये, जय हो खाटू वाले नाथ की, जय मोर्विनंदन श्याम, लीले के अश्वार की जय, लखदातार की जय, हारे के सहारे की जय, मोरवीनंदन की जय, जय बाबा खाटू नरेश।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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1 टिप्पणी

  1. Jai ho khatu shaym ji baba ki jai ho jai ho