गुरु मूरति गति चन्द्रमा सेवक नैन चकोर मीनिंग
गुरु मूरति गति चन्द्रमा, सेवक नैन चकोर।
आठ पहर निरखत रहे, गुरु मूरति की ओर॥
Guru Murati Gati Chandrama Sevak Nain Chakor,
Aath Pahar Nirkhat Rahe, Guru Murti Ki Aur.
कबीर के दोहे का हिंदी अर्थ
साधना और भक्ति मार्ग में वह व्यक्ति सूरवीर है जो अपना कदम पीछे नहीं लौटाता है। जो इस राह में आगे चल कर पीछे मुड़ जाता है उसे कभी भी नहीं देखना चाहिये। जो साधक भक्ति में अग्रसर हो जाता है उसे कभी पुनः गृहस्थ की तरफ लौटना चाहिए। इस दोहे में कबीर साहेब गुरु की महत्ता और उनके प्रति भक्ति की भावना को व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि गुरु की मूरति चन्द्रमा के समान है, जो सदैव प्रकाशमान रहती है। सेवक के नेत्र चकोर के समान हैं, जो चन्द्रमा की ओर आकर्षित होते हैं। इसी प्रकार, सेवक को भी गुरु की मूरत को सदैव अपने सामने रखना चाहिए। कबीर साहेब कहते हैं कि गुरु हमें जीवन का सही मार्ग दिखाते हैं। वे हमें ज्ञान और विवेक प्रदान करते हैं। गुरु के मार्गदर्शन के बिना हम जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
कबीर साहेब सेवक को गुरु की मूरत को सदैव अपने सामने देखने के लिए कहते हैं। इससे सेवक गुरु की शिक्षाओं को ग्रहण कर सकेगा और उसका अनुसरण कर सकेगा।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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