चल हंसा वा देस जहँ पिया बसै चितचोर मीनिंग

चल हंसा वा देस जहँ पिया बसै चितचोर मीनिंग

चल हंसा वा देस जहँ पिया बसै चितचोर।
सुरत सोहासिन है पनिहारेन, भरै टाढ़ बिन डारे॥
वहि देसवाँ बादर ना उमड़ै रिमझिम बरसै मेह।
चौबारे में बैठ रहो ना, जा भीजहु निर्देह॥
वहि देसवा में नित्त पूर्निमा, कबहुँ न होय अँधेर।
एक सुरज कै कवन बतावै, कोटिन सुरज ऊँजेर॥

 
कबीर इस पद में आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए हंस को प्रेरित कर रहे हैं। हंस का अर्थ है आत्मा। आत्मा को उस देश में जाना चाहिए जहाँ पर ईश्वर का वास है। उस देश में ईश्वर रूपी चित्तचोर रहता है। सुरत रूपी सुहागिन बिना डोर के पानी भर रही है। यह पानी आत्मज्ञान का प्रतीक है। कबीर कहते हैं कि उस देश में बादल नहीं घिरते हैं। अर्थात्, वहाँ पर सांसारिक विकार नहीं होते हैं। वहाँ पर हमेशा पूर्णिमा रहती है। अर्थात्, वहाँ पर हमेशा ज्ञान का प्रकाश रहता है। कबीर साहेब जीवात्मा को हंस कहकर सम्बोधित करते हुए वाणी देते हैं की हृदय को चुराने वाला प्रियतम/पिया जिस स्थान पर रहता है वहां चलो। उस स्थान पर गमन करो जहाँ पर चित्तचोर प्रिय रहता है। सूरत/आत्मा सुहागिन जहाँ पर खड़ी है और जो बिना रस्सी के ही पानी भर रही है। उस देस में बादल घिर कर नहीं आते हैं। जहाँ पर बिना बादल के ही बरसात होती रहती है। जीवात्मा तुम चौबारे पर मत बैठो और बाहर निकल कर पानी में भिगो। उस देस में नित्य ही पूर्णिमा होती है और अँधेरा कभी नहीं होता है। उस स्थान पर एक सूरज नहीं करोड़ों सूरज चमकते रहते हैं। 

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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