स्वागत है मेरी पोस्ट में, इस पोस्ट में हम जानेंगे एक बहुत पुरानी और प्रेरणादायक कहानी के बारे में जिसका नाम है, "ऊंट और गीदड़ की कहानी।" यह कहानी हमें सिखाती है कि अपने लाभ के लिए चालाकी करना दूसरों के साथ-साथ हमें भी मुश्किल में डाल देता है। आइए इस कहानी को पढ़ें और सीखें कि ईमानदारी और निष्ठा का रास्ता ही सबसे बेहतर है।
ऊंट और गीदड़ की कहानी
बहुत समय पहले, एक घने जंगल में दो अच्छे दोस्त रहते थे, एक चालाक गीदड़ और एक सीधा-साधा ऊंट। वे दोनों रोजाना नदी के किनारे मिलते और एक दूसरे के साथ अपने सुख दुख साझा करते। उनकी दोस्ती दिन-ब-दिन गहरी होती गई।
एक दिन, गीदड़ को पता चला कि नदी के उस पार के खेत में मीठे तरबूज़ पक चुके हैं। गीदड़ का मन उन तरबूजों को खाने का हुआ, पर उसके लिए नदी पार करना मुश्किल था। उसे एक तरकीब सूझी, और वो अपने दोस्त ऊंट के पास गया।
ऊंट ने आश्चर्य से पूछा, “मित्र, तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए? हमें तो शाम को मिलना था।” गीदड़ ने चतुराई से कहा, “दोस्त, पास के खेत में मीठे तरबूज पके हुए हैं। अगर तुम वहां चलो, तो हम दोनों उन्हें खा सकते हैं।” ऊंट को तरबूज बहुत पसंद थे, इसलिए उसने तुरंत हां कर दी।
गीदड़ ने ऊंट से कहा, “मुझे तैरना नहीं आता, इसलिए मैं नदी पार नहीं कर सकता। क्या तुम मुझे अपनी पीठ पर बिठा सकते हो?” ऊंट ने खुशी खुशी गीदड़ को अपनी पीठ पर बिठा लिया और नदी पार करवाई।
खेत में पहुंचते ही गीदड़ ने तरबूजों पर टूटकर दावत उड़ाई और खुशी में जोर जोर से चिल्लाने लगा। ऊंट ने उसे चेतावनी दी कि शोर मत मचाओ, पर गीदड़ नहीं माना। गीदड़ की आवाज़ सुनकर किसान वहां आ गए और ऊंट को देखकर गुस्से में उसे मारने लगे। गीदड़ चालाकी से पेड़ों के पीछे छुप गया, जबकि किसानों ने ऊंट को बुरी तरह पीटा।
जब किसान चले गए, तो ऊंट ने गीदड़ से पूछा, “तुमने शोर क्यों मचाया?” गीदड़ ने बहाना बनाते हुए कहा, “मुझे खाने के बाद शोर करने की आदत है, तभी मेरा खाना पचता है।”
ऊंट को गीदड़ की इस बात से बहुत गुस्सा आया, लेकिन वह चुपचाप गीदड़ को नदी के पास ले गया। नदी में पहुंचकर उसने गीदड़ को फिर से अपनी पीठ पर बैठा लिया। लेकिन इस बार नदी के बीच में पहुंचकर ऊंट ने अचानक डुबकी लगानी शुरू कर दी। गीदड़ घबरा गया और चीखकर बोला, “यह तुम क्या कर रहे हो?”
ऊंट ने शांतिपूर्वक कहा, “मुझे खाना पचाने के लिए डुबकी लगानी पड़ती है।” गीदड़ समझ गया कि ऊंट ने उसे उसकी चालाकी का जवाब दिया है। उसने किसी तरह किनारे तक पहुंचकर अपनी जान बचाई। उस दिन के बाद गीदड़ ने कभी ऊंट के साथ चालाकी करने की हिम्मत नहीं की। इस प्रकार ऊंट ने गीदड़ को सबक सिखाया की कभी भी अपने आनंद के लिए दूसरे को मुसीबत में नहीं डालना चाहिए।
कहानी से शिक्षा
ऊंट और गीदड़ की इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दूसरों के साथ चालाकी नहीं करनी चाहिए। जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है। हमें हमेशा ईमानदारी और सच्चाई का रास्ता अपनाना चाहिए।
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