विशेष : यह लेख मीडिया से प्राप्त जानकारी पर आधारित है। आयुष मंत्रालय के द्वारा जारी दिशा निर्देशों को ही प्रमाणिक माना जाय। इस दवा का केवल क्लिनिकल ट्रायल किया गया है लेकिन अभी आयुष मंत्रालय ने इसे कोरोना की दवा घोषित नहीं किया है। इस ओषधि में घटक के रूप में जिन हर्ब का उपयोग किया गया है उनके आधार पर इस लेख को लिखा गया है। ओषधि की उपलब्धता के उपरान्त इस लेख में परिवर्तन किया जाएगा। इस लेख में इस दवा की कोई पुष्टि नहीं की जा रही है।
Corona Kit (Coronil Teblets ) कोरोना किट क्या है
कोरोनिल किट में तीन दवाओं का उपयोग किया गया है, कोरोनिल, श्वासारी वटी और अणु तेल। तीन ओषधियों के मेल से बनी यह ओषधि ही कोरोना किट है। इस ओषधि में जो भी घटक इस्तेमाल किये गए हैं वे सभी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करती हैं।पतंजली आयुर्वेद (दिव्य फार्मेसी, हरिद्वार) ने मंगलवार दिनांक २३ जुलाई २०२० को, बाबा रामदेव जी और बालकृष्ण जी करोनिल टेबलेट और कोरोना किट को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया है जिसके माध्यम से कोरोना वायरस कोविड-19 का उपचार किया जाना संभव है। गौरतलब है की वर्तमान में यह एकमात्र आयुर्वेदिक दवा है जो यह दावा करती है की वह कोरोना का इलाज कर सकती है। इस ओषधि का शोध संयुक्त रूप से पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट (PRI), हरिद्वार एंड नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस जयपुर के द्वारा किया गया है। कोरोनिल ओषधि का निर्माण निर्माण दिव्य फार्मेसी, हरिद्वार और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड, हरिद्वार द्वारा किया जा रहा है। वर्तमान में इस कोरोना महामारी को देखते हुए एक एप का निर्माण किया जाएगा जिसके माध्यम से शीघ्रता से इस ओषधि को लोगों तक पंहुचाया जा सके। आचार्य श्री बालकृष्ण जी ने बताया की अश्वगंधा कोविड-19 के आरबीडी को मानव शरीर के ए सी ई से मिलने नहीं देता है।
कोरोना संक्रमित व्यक्ति के शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाता है और वहीं गिलोय के गुण भी संक्रमण को रोकते हैं। तुलसी का कंपाउंड कोविड-19 के आरएनए-पॉलीमरीज पर अटैक कर उसके गुणांक में वृद्धि करने की दर को न सिर्फ रोक देता है, बल्कि इसका लगातार सेवन उसे खत्म करने में भी मदद करता है। वहीं श्वसारि (यह एक आयुर्वेदिक वटी है जिसमे विभिन्न प्रकार कीओषधिय गुणों वाली हर्ब का इस्तेमाल किया जाता है। ) कफ्फ को दूर करता है और कफ्फ को गाढ़ा होने से रोकता है और शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है।
Baba Ramdev ने Corona Virus की दवा Coronil पेश की, मरीज़ों के ठीक होने के दावा (BBC HINDI)
बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद ने कोरोना वायरस की दवा बनाने का दावा किया है. इस हर्बल दवा का नाम कोरोनिल है. और इसे जड़ी-बूटियों से बनाने का दावा किया गया है. बाबा रामदेव का दावा है कि दवा को 280 लोगों पर आज़माया गया. हालांकि, अब तक इस दवा के असर को लेकर स्वतंत्र पुष्टि नहीं की गई है.
बाबा राम देव जी ने बताया की यह दवा पूर्ण रूप से वैज्ञानिक शोध के उपरान्त बनाई गई है। लेकिन उन्होंने इस बात पर व्यंग्य भी किया की लोग शायद इस बात पर विश्वास नहीं करें और सोचेंगे की कैसे एक सन्यासी ने कोरोना महामारी का इलाज संभव कर दिखाया। बाबा रामदेव जी ने बताया की यह आयुर्वेदिक ओषधि पूर्ण शोध के उपरान्त तैयार की गई है और इसे पेटेंट के लिए विश्व पटल पर वे रखेंगे। इस दवा के परिक्षण के सबंध में बाबा राम देव जी ने बताया की इस ओषधि को २८० लोगों पर टेस्ट किया गया और उनमें से ६९ फीसदी लोगों ने कोरोना को मात दी है। बाबा राम देव जी ने आगे बताया की इस ओषधि से 3 दिन में 69% मरीज ठीक होने और मृत्यु दर 0% है।
राम देव जी ने आगे बताया की कोरोनिल (कोरोना किट) में अश्वगंधा और कई अन्य हर्ब (श्वासरी वटी), गिलोय, अणु तेल आदि का एक्सट्रेक्ट प्राप्त करके बनाई गई है। निश्चित रूप से यह एक बहुत ही बड़ी सफलता है। बाबा रामदेव जी ने आगे बताया की मात्र सात दिवस में इस ओषधि के सेवन से कोरोना जैसी महामारी से निजाद मिल जाती है। इस दवा के रिसर्च में कुल ५०० आयुर्वेदिक विशेषज्ञों ने इस दवा के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया है।आयुष मंत्रालय के समक्ष भी बाबा राम देव जी अपनी इस दवा को रखेंगे।
Composition of Coronil (Corona Treatment Kit) कोरोना वाइरस (काविड-19) की ओषधि के घटक
कोरोनिल ओषधि में किट के रूप में निम्न ओषधियों का उपयोग किया गया है। निचे श्वासारी क्वाथ में प्रयोग में लाइ गई हर्ब का परिचय दिया गया है।
- अश्वगंधा,
- गिलोय,
- तुलसी,
- श्वासारी (अधिक जानने के लिए पढ़ें -श्वासरी क्वाथ के लाभ और उपयोग, श्वासरी प्रवाहि के लाभ और उपयोग )
- काकडा सिंघी
- दाल चीनी
- मुलेठी
- त्रिकटु : यह एक चूर्ण है जिसमे पिप्पली, काली मिर्च और सौंठ का उपयोग किया जाता है।
- गोदंती
- कपार्दक
- १०० से ज्यादा फिटो केमिकाल्स
- अकरकरा
- कई प्रकार की पिष्टी
- १६ से ज्यादा अन्य जड़ी बूटियाँ
कोरोनिल की कीमत Price of Coronil (Patanjali Corona Virus Treatment Kit )
पतंजलि आयुर्वेद (दिव्य फार्मेसी ) की तरफ से इस दवा की कीमत रुपये 545 रखी गई है, इस सबंध में आप पतंजलि आयुर्वेद की अधिकृत वेबसाईट को विजिट करें, जहाँ पर इसकी नवीनतम कीमत की जानकारी उपलब्ध है।https://www.patanjaliayurved.net/
कोरोनिल टेबलेट के लाभ/फायदे Benefits of Coronil Teblets
कोरोनिल टेबलेट्स के अभी वैज्ञानिक और प्रमाणिक नतीजे आयुष मंत्रालय के द्वारा जारी नहीं किये गए हैं लेकिन इसमें प्रयोग में लिए गए घटक के अनुसार यह कहा जा सकता है की यह दवा फेफड़ों के संक्रमण को दूर करने में असरकारक ओषधि हो सकती हैं क्यों की सभी घटकों का मूल कार्य फेफड़ों की कार्यप्रणाली को दुरुस्त करना, बेहतर ओक्सिजन की आपूर्ति करना और ज्वर को दूर करना है। इसके घटक कफ्फ को दूर करने में असर दायक हैं। वर्तमान में आयुष मंत्रालय के द्वारा यह प्रमाणिक नहीं किया गया है की यह कोरोना किट कोरोना वायरस का इलाज कर सकती है।Ingrediants of Coronil (Covid-19 Treatment Kit) कोरोनिल में उपयोग में ली गई कुछ जड़ी बूटियों का परिचय :
अश्वगंधा : अश्वगंधा एक ऐसी जड़ी बूटी है जिसका नाम अक्सर हमें सुनाई देता हैं, क्योंकि यह अत्यंत गुणों से भरपूर एक हर्ब होती है जिसका उपयोग अनेकों आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है, साथ ही ऐसा माना जाता है की यह आयुर्वेद में सबसे प्राचीन समय से उपयोग में ली जा रही जड़ी बूटी है। यह एक पौधा होता है जो द्विबीज पत्रिय होता है।
अश्वगंधा वात और कफ का शमन करती है। अश्वगंधा प्रधान रूप से बल्यकारक, रसायन, बाजीकरण ,नाड़ी-बलकारक, दीपन, पुष्टिकारक और धातुवर्धक होता है। प्राचीन समय से ही मस्तिष्क को बलशाली बनाने में इस दवा का उपयोग किया जाता रहा है और यह आयुर्वेद में मानसिक विकार, चिंता, तनाव और उन्माद के लिए उपयोग में आती है। वर्तमान समय में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा भी अश्वगंधा के कैप्सूल और अन्य उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं जो इसके प्रभावों के बारे में और इसके महत्त्व को दर्शाता है। इस हर्ब को राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र में पदलसिंह, पदलसि कहा जाता है और ऐसी मान्यता है की इसमें घोड़े के मूत्र के तुल्य गंध आने के कारन इसे अश्वगंधा कहा जाता है।
इस पौधे के जड़े महत्वपूर्ण होती हैं जिन्हे शुक्राणु वर्धन के लिए उपयोग में लिया जाता है। अश्वगंधा के निम्न औषधीय गुण होते हैं। इसे कई अन्य नामो से भी पहचाना जाता है यथा असगन्ध, अश्वगन्धा, पुनीर, नागोरी असगन्ध आदि। इसके पत्ते, जड़, फल और फूल का उपयोग विभिन्न ओषधियों के निर्माण में किया जाता है। अश्वगंधा का मनमानी और बगैर डॉक्टर की सलाह से सेवन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव भी डाल सकता है।
इसे पुरुषों के लिए ऊर्जा और शुक्राणु वृद्धि के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
यह तंत्रिका तंत्र सबंधी विकारों में भी उत्तम परिणाम देती है।
महिलाओं के रोग, यथा स्वेत प्रदर में भी यह एक उत्तम दवा है।
जोड़ों के दर्द और गठिया जैसे रोग जो वात इकठ्ठा होने से होती हैं, अस्वगंधा के उत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं।
त्वचा सबंधी विकारों में भी अस्वगंधा का उपयोग किया जाता है।
बालों से सबंधित विकारों में भी अश्वगंधा का उपयोग किया जाता है।
खांसी, गले के रोग, टीवी आदि रोगों में भी इसकी ओषधि का निर्माण किया जाता है।
कब्ज, इन्द्रियों की कमजोरी के लिए भी इस हर्ब से बनी दवा का उपयोग किया जाता है।
शारीरिक कमजोरी और रक्त विकार को भी अश्वगंधा के सेवन से ठीक किया जाता है।
Akarkara (अकरकरा) Anacyclus pyretheum : आकारकरभ, आकल्लक; अकरकरा का वानास्पतिक नाम Anacyclus pyrethrum (L.) Lag. (ऐनासाइक्लस पाइरेथम) Syn-Anacyclus officinarum Hayne होता है। अकरकरा Asteraceae (ऐस्टरेसी) कुल का होता है। अकरकरा को अंग्रेजी में Pellitory Root (पेल्लीटोरी रूट) कहते हैं। इसका उपयोग आयुर्वेद में मुख्य रूप से दांतों से सबंधित विकार यथा दांतों के दर्द, दांतों से खून का आना आदि विकारों के इलाज के लिए किया जाता है। अकरकरा को पाउडर और चूर्ण रूप में प्रयोग में लाया जाता है। अकरकरा रस में कड़वा; गर्म; रूखा, वात पित्त को कम करने वाला, लालास्राववर्धक, उत्तेजक, कफ कम करने वाला, पाचक, पेट दर्द तथा ज्वरनाशक होती है। इसका फूल कड़वा, शरीर की गर्मी कम करने में सहायक और वेदना हरने वाला होता है। दाँतों के लिए अक्सर इसकी मूल को चबाया जाता है।
लवंग (लौंग ) Lavang (Syzgium aromaticum) :लवंग या लौंग भी हमारी रसोई में उपलब्ध होती है और इसे खड़े मसालों के अलावा चाय आदि में प्रयोग किया जाता है। लवंग का अंग्रेजी में नाम क्लोवस (Cloves), जंजिबर रैड हेड (Zanzibar red head), क्लोव ट्री (Clove tree), Clove (क्लोव) होता है और लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum (Linn.) Merr & L. M. Perry (सिजीयम एरोमैटिकम) Syn-Eugenia caryophyllata Thunb., Caryophyllus aromaticus Linn. है। भारत में तमिलनाडु और केरल में लौंग बहुतयात से पैदा किया जाता है। लौंग के भी शीत रोगों में महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। गले का बैठना, गले की खरांस, कफ्फ खांसी आदि विकारों में लौंग का उपयोग हितकर होता है। शीत रोगों के अलावा लौंग के सेवन से भूख की वृद्धि, पाचन को दुरुस्त करना, पेट के कीड़ों को समाप्त करना आदि लाभ भी प्राप्त होते हैं। लौंग की तासीर बहुत गर्म होती है इसलिए इसका सेवन अधिक नहीं किया जाना चाहिए। लौंग के अन्य लाभ निम्न हैं।
लौंग के तेल से दांत के कीड़ों को दूर किया जाता है और साथ ही मसूड़ों की सूजन को कम करने में सहायक होता है।
लौंग के चूर्ण को पानी के साथ लेने से कफ्फ बाहर निकलता है और फेफड़ों में कफ के जमा होने के कारण आने वाली खांसी में आराम मिलता है।
लौंग के चूर्ण की गोली को मुंह में रखने से सांसों के बदबू दूर होती है और गले की खरांस भी ठीक होती है।
कुक्कर खांसी में भी लौंग के सेवन से लाभ मिलता है।
छाती से सबंधित रोगों में भी लौंग का सेवन लाभदायी होता है।
दालचीनी Dalchini (Cinnamomum zeylanicum) : दालचीनी (Cinnamomum verum, या C. zeylanicum) एक छोटा सदाबहार पेड़ है, जो कि 10–15 मी (32.8–49.2 फीट) ऊंचा होता है, यह लौरेसिई (Lauraceae) परिवार का है। यह श्रीलंका एवं दक्षिण भारत में बहुतायत में मिलता है। इसकी छाल मसाले की तरह प्रयोग होती है। इसमें एक अलग ही सुगन्ध होती है, जो कि इसे गरम मसालों की श्रेणी में रखती है। दाल चीनी को अक्सर हम खड़े मसालों में उपयोग में लाते हैं। दालचीनी के कई औषधीय गुण भी होते हैं। दाल चीनी एक वृक्ष की छाल होती है जो तीखी महक छोड़ती है। दाल चीनी को अंग्रेजी में True Cinnamonसीलोन सिनामोन (Ceylon Cinnamon) के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो दाल चीनी के कई लाभ होते हैं लेकिन खांसी और कफ्फ को शांत करने, सर्दी जुकाम के लिए यह उत्तम मानी जाती है।
तुलसी देसी Tulsi Desi (Ocimum sanctum) : देसी तुलसी प्रायः हमारे घरों में मिल ही जाती है जिसके पत्तों को सर्दियों में चाय में डालना लाभकारी माना जाता है। तुलसी को वैसे भी पवित्र माना जाता है और इसकी पूजा का भी प्रावधान है। इसे तुलसी के अलावा सुरसा, देवदुन्दुभि, अपेतराक्षसी, सुलभा, बहुमञ्जरी, गौरी आदि नामों से भी जाना जाता है। इसके पत्तों और बीजों के कई आयुर्वेदिक लाभ होते हैं जो वात और कफ को शांत करने में सहयोगी होते हैं। गले में खरांस को कम करने के लिए भी तुलसी का श्रेष्ठ लाभ होता है। तुलसी का वानस्पतिक नाम Ocimum sanctum Linn. (ओसीमम् सेंक्टम्) और कुल का नाम Lamiaceae है। गले की खरांस, सुखी खांसी, गले का बैठना, छाती में कफ्फ का जमा होना, आदि विकारों में इसका उपयोग लाभकारी होता है और साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास करती है।
सोंठ (Zingiber officinale Roscoe, Zingiberacae)
अदरक ( जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale ) को पूर्णतया पकने के बाद इसे सुखाकर सोंठ बनायी जाती है। ताजा अदरक को सुखाकर सौंठ बनायी जाती है जिसका पाउडर करके उपयोग में लिया जाता है। अदरक मूल रूप से इलायची और हल्दी के परिवार का ही सदस्य है। अदरक संस्कृत के एक शब्द " सृन्ग्वेरम" से आया है जिसका शाब्दिक अर्थ सींगों वाली जड़ है (Sanskrit word srngaveram, meaning “horn root,”) ऐसा माना जाता रहा है की अदरक का उपयोग आयुर्वेद और चीनी चिकित्सा पद्धति में 5000 साल से अधिक समय तक एक टॉनिक रूट के रूप में किया जाता रहा है। सौंठ का स्वाद तीखा होता है और यह महकदार होती है। अदरक गुण सौंठ के रूप में अधिक बढ़ जाते हैं। अदरक जिंजीबरेसी कुल का पौधा है। अदरक का उपयोग सामान्य रूप से हमारे रसोई में मसाले के रूप में किया जाता है। चाय और सब्जी में इसका उपयोग सर्दियों ज्यादा किया जाता है। अदरक के यदि औषधीय गुणों की बात की जाय तो यह शरीर से गैस को कम करने में सहायता करता है, इसीलिए सौंठ का पानी पिने से गठिया आदि रोगों में लाभ मिलता है। सामान्य रूप से सौंठ का उपयोग करने से सर्दी खांसी में आराम मिलता है। अन्य ओषधियों के साथ इसका उपयोग करने से कई अन्य बिमारियों में भी लाभ मिलता है। नवीनतम शोध के अनुसार अदरक में एंटीऑक्सीडेंट्स के गुण पाए जाते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थ को बाहर निकालने में हमारी मदद करते हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में कैंसर जैसे रोग से भी लड़ने में सहयोगी हो सकते हैं। पाचन तंत्र के विकार, जोड़ों के दर्द, पसलियों के दर्द, मांपेशियों में दर्द, सर्दी झुकाम आदि में सौंठ का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है। सौंठ के पानी के सेवन से वजन नियंत्रण होता है और साथ ही यूरिन इन्फेक्शन में भी राहत मिलती है। सौंठ से हाइपरटेंशन दूर होती है और हृदय सबंधी विकारों में भी लाभदायी होती है। करक्यूमिन और कैप्साइसिन जैसे एंटीऑक्सिडेंट के कारन सौंठ अधिक उपयोगी होता है। सौंठ गुण धर्म में उष्णवीर्य, कटु, तीक्ष्ण, अग्निदीपक, रुचिवर्द्धक पाचक, कब्जनिवारक तथा हृदय के लिए हितकारी होती है। सौंठ वातविकार, उदरवात, संधिशूल (जोड़ों का दर्द), सूजन आदि आदि विकारों में हितकारी होती है। सौंठ की तासीर कुछ गर्म होती है इसलिए विशेष रूप से सर्दियों में इसका सेवन लाभकारी होता हैसौंठ के प्रमुख फायदे :
- सर्दी जुकाम में सौंठ का उपयोग बहुत ही लाभकारी होता है। सर्दियों में अक्सर नाक बहना, छींके आना आदि विकारों में सौंठ का उपयोग करने से तुरंत लाभ मिलता है। शोध के अनुसार बुखार, मलेरिया के बुखार आदि में सौंठ चूर्ण का उपयोग लाभ देता है (1)
- सौंठ / अदरक में लिपिड लेवल को कम करने की क्षमता पाई गई है जिससे यह वजन कम करने में भी सहयोगी होती है। एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में भी सौंठ को पाया गया है। अदरक में लसिका स्तर को रोकने के बिना या बिलीरुबिन सांद्रता को प्रभावित किए बिना शरीर के वजन को कम करने की एक शानदार क्षमता है, जिससे पेरोक्सिसोमल कटैलस लेवल और एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। (2)
- सौंठ के सेवन से पेट में पैदा होने वाली जलन को भी दूर करने में मदद मिलती है। पेट में गैस का बनाना, अफारा, कब्ज, अजीर्ण, खट्टी डकारों जैसे विकारों को दूर करने में भी सौंठ बहुत ही लाभकारी होती है। (3) मतली और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों में भी अदरक का चूर्ण लाभ पहुचाता है।
- कई शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है की अदरक में एंटी ट्यूमर के गुण होते हैं और साथ ही यह एक प्रबल एंटीओक्सिडेंट भी होता है।
- Premenstrual syndrome (PMS) मतली आना और सर में दर्द रहने जैसे विकारों में भी सौंठ का उपयोग लाभ पंहुचाता है। माइग्रेन में भी सौंठ का उपयोग हितकर सिद्ध हुआ है (4)
- सौंठ का उपयोग छाती के दर्द में भी हितकर होता है। सौंठ जैसे मसाले एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं, और वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि वे ऊतक क्षति और रक्त शर्करा के उच्च स्तर और परिसंचारी लिपिड के कारण सूजन के प्रबल अवरोधक भी हैं। अदरक (Zingiber officinale Roscoe, Zingiberacae) एक औषधीय पौधा है जिसका व्यापक रूप से प्राचीन काल से ही चीनी, आयुर्वेदिक और तिब्बत-यूनानी हर्बल दवाओं में उपयोग किया जाता रहा है और यह गठिया, मोच शामिल हैं आदि विकारों में भी उपयोग में लिया जाता रहा है। अदरक में विभिन्न औषधीय गुण हैं। अदरक एक ऐसा यौगिक जो रक्त वाहिकाओं को आराम देन, रक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करने और शरीर दर्द से राहत देने के लिए उपयोगी है। (5)
- सौंठ में एंटीइन्फ्लामेंटरीप्रॉपर्टीज होती हैं जो शरीर के विभिन्न भागों की सुजन को कम करती हैं और सुजन के कारण उत्पन्न दर्दों को दूर करती हैं। गठिया जैसे विकारों में भी सोंठ बहुत उपयोगी होती है। (6)
- चयापचय संबंधी विकारों में भी अदरक बहुत ही उपयोगी होती है। (७)
- क्रोनिक सरदर्द, माइग्रेन जैसे विकारों में भी सोंठ का उपयोग लाभकारी रहता है। शोध के अनुसार अदरक / सौंठ का सेवन करने से माइग्रेन जैसे विकारों में बहुत ही लाभ पंहुचता है। (८)
- सौंठ में एंटी ओक्सिडेंट होते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थों / मुक्त कणों को बाहर निकालने में मदद करता है। सौंठ के सेवन से फेफड़े, यकृत, स्तन, पेट, कोलोरेक्टम, गर्भाशय ग्रीवा और प्रोस्टेट कैंसर आदि विकारों की रोकथाम की जा सकती है। (9)
- पाचन सबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी सौंठ बहुत ही लाभकारी होती है। अजीर्ण, खट्टी डकारें, मतली आना आदि विकारों में भी सौंठ लाभकारी होती है। क्रोनिक कब्ज को दूर करने के लिए भी सौंठ का उपयोग हितकारी होता है। (10)
- अदरक से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए भी यह बेहतर होती है।अदरक में प्रयाप्त एंटी ओक्सिदेंट्स, एंटी इन्फ्लामेंटरी प्रोपर्टीज होती हैं।
- अदरक में अपक्षयी विकारों (गठिया ), पाचन स्वास्थ्य (अपच, कब्ज और अल्सर), हृदय संबंधी विकार (एथेरोस्क्लेरोसिस और उच्च रक्तचाप), उल्टी, मधुमेह मेलेटस और कैंसर सहित कई बीमारियों के इलाज की अद्भुद क्षमता है। (11)
- अदरक में पाए जाने वाले एंटी इन्फ्लामेंटरी गुणों के कारण यह दांत दर्द में भी बहुत ही उपयोगी हो सकती है। (12)
पीपली
पिप्पली पीपलामूल या बड़ी पेपर को Piper longum(पाइपर लोंगम)के नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत में इसे कई नाम दिए गए हैं यथा पिप्पली, मागधी, कृष्णा, वैदही, चपला, कणा, ऊषण, शौण्डी, कोला, तीक्ष्णतण्डुला, चञ्चला, कोल्या, उष्णा, तिक्त, तण्डुला, मगधा, ऊषणा आदि। बारिस की ऋतू में इसके पुष्प लगते हैं और शरद ऋतु में इसके फल लगते हैं। इसके फल बाहर से खुरदुरे होते हैं और स्वाद में तीखे होते हैं। आयुर्वेद में इसको अनेकों रोगों के उपचार हेतु प्रयोग में लिया जाता है। अनिंद्रा, चोट दर्द, दांत दर्द, मोटापा कम करने के लिए, पेट की समस्याओं के लिए इसका उपयोग होता है। पिप्पली की तासीर गर्म होती है, इसलिए गर्मियों में इसका उपयोग ज्यादा नहीं करना चाहिए।
वचा या वच
वच का वर्णन और प्रयोग चरक और सुश्रुता के समय से ही किया जा रहा है। वच को कैलमस रूट, स्वीट फ्लैग, उग्रगंध आदि नामों से भी जाना जाता है। इस हर्ब को अंग्रेजी में कैलामस (Acorus Calamus) और इसका लेटिन नाम इसका लैटिन नाम एकोरस कैलमस Acorus calamus होता है। वच का उपयोग विभिन्न ओषधियों के निर्माण में किया जाता है।
इसको मुख्यतया त्वचा विकारों को दूर करने के लिए, मानसिक विकारों के इलाज करने, तनाव दूर ,याददास्त बढ़ाने, तनाव को दूर करने में, घाव के उपचार, और पेट सबंधी विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। वाच / वच का शाब्दिक अर्थ होता है बोलना/ध्वनि निकालना, इसीलिए यह गले के विकारों के लिए भी एक श्रेष्ठ ओषधि होती है। वच मस्तिष्क और न्यूरोलॉजिकल गतिविधियों पर गहरा असर डालती है इसलिए तंत्रिका तंत्र के अतिरिक्त हृदय विकारों में भी इसका उपयोग किया जाता है। वस रस में कटु, तिक्त, काषाय होती है। वच का वीर्य उष्ण, विपाक-कटु, और साथ ही वच दीपन, पाचन, लेखन, प्रमाथि, कृमिनाशक, उन्मादनाशक, अपस्मारघ्न, और विरेचक होता है
मुलेठी मुलेठी क्वाथ के विषय में जानने से पहले जाहिर सी बात है की हमें मुलेठी को जान लेना चाहिए। औशधिय गुणों से भरपूर मुलेठी एक झाड़ीनुमा पौधा होता है जिसका वानस्पतिक नाम Glycyrrhiza glabra Linn ग्लीसीर्रहीजा ग्लाब्र, और इसका कुल - Fabaceae होता है जिसे प्राचीन समय से ही उपयोग में लिया जाता रहा है। इसको कई नामो से जाना जाता है यथा यष्टीमधु, यष्टीमधुक, मधुयष्टि, जलयष्टि, क्लीतिका, मधुक, स्थल्यष्टी आदि। पंजाब के इलाकों में इसे मीठी जड़ के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा भारत के अलावा अरब, ईरान, तुर्कीस्तान, अफगानिस्तान, ईराक, ग्रीक, चीन, मिस्र दक्षिणी रूस में अधिकता से पाया जाता है। पहले यह खाड़ी देशों से आयात किया जाता था लेकिन अब इसकी खेती भारत में भी की जाने लगी है। इसको पहचाने के लिए बताये तो इसके गुलाबी और जामुनी रंग के फूल होते हैं और इसके पत्ते एक दुसरे के पास (संयुक्त) और अंडाकार होते हैं।
मुलेठी मुलेठी क्वाथ के विषय में जानने से पहले जाहिर सी बात है की हमें मुलेठी को जान लेना चाहिए। औशधिय गुणों से भरपूर मुलेठी एक झाड़ीनुमा पौधा होता है जिसका वानस्पतिक नाम Glycyrrhiza glabra Linn ग्लीसीर्रहीजा ग्लाब्र, और इसका कुल - Fabaceae होता है जिसे प्राचीन समय से ही उपयोग में लिया जाता रहा है। इसको कई नामो से जाना जाता है यथा यष्टीमधु, यष्टीमधुक, मधुयष्टि, जलयष्टि, क्लीतिका, मधुक, स्थल्यष्टी आदि। पंजाब के इलाकों में इसे मीठी जड़ के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा भारत के अलावा अरब, ईरान, तुर्कीस्तान, अफगानिस्तान, ईराक, ग्रीक, चीन, मिस्र दक्षिणी रूस में अधिकता से पाया जाता है। पहले यह खाड़ी देशों से आयात किया जाता था लेकिन अब इसकी खेती भारत में भी की जाने लगी है। इसको पहचाने के लिए बताये तो इसके गुलाबी और जामुनी रंग के फूल होते हैं और इसके पत्ते एक दुसरे के पास (संयुक्त) और अंडाकार होते हैं।
मुलेठी या मुलहटी पहाड़ी क्षेत्रों की माध्यम ऊँचाई के क्षेत्रों में अधिकता से पायी जाती है। इसका पौधा लगभग 6 फूट तक लम्बाई ले सकता है। इस पौधे की जो जड़े होती/ भूमिगत तना ही ओषधिय गुणों से भरपूर होता हैं। मुलेठी से हमें मुलेठी कैल्शियम, ग्लिसराइजिक एसिड, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक, प्रोटीन और वसा आदि प्राप्त होते हैं। मुख्यतः मुलेठी जी जड़ों को ही उपयोग में लिया जाता है। इसकी मांग को देखते हुए पंजाब के कई इलाकों में इसकी खेती की जाने लगी है।
पतंजलि मुलेठी क्वाथ के लाभ /फायदे : मुलेठी का आप कई प्रकार से सेवन कर सकते हैं यथा मुंह के विकारों के लिए सीधे ही मुलेठी के एक तुकडे को मुंह में रख कर चूंस सकते हैं। इसका चूर्ण भी उपयोग में ले सकते हैं और इसका काढ़ा बनाकर उपयोग में ले सकते हैं। मुलेठी के निम्न ओषधिय लाभ प्राप्त होते हैं।
पतंजलि मुलेठी क्वाथ के लाभ /फायदे : मुलेठी का आप कई प्रकार से सेवन कर सकते हैं यथा मुंह के विकारों के लिए सीधे ही मुलेठी के एक तुकडे को मुंह में रख कर चूंस सकते हैं। इसका चूर्ण भी उपयोग में ले सकते हैं और इसका काढ़ा बनाकर उपयोग में ले सकते हैं। मुलेठी के निम्न ओषधिय लाभ प्राप्त होते हैं।
- गले की खरांस, सर्दी जुकाम और खांसी के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
- मुलेठी गले, दाँतों और मसूड़ों के लिए लाभदायक होती है।
- दमा रोगियों के लिए भी मुलेठी अत्यंत लाभदायी होती है।
- वात और पित्त रोगों के लिए मुलेठी सर्वोत्तम मानी जाती है।
- खून साफ़ करती है और त्वचा के संक्रमण को दूर करती है।
- मुलेठी चूर्ण को दूध और शहद में मिलाकर लेने से कमोत्त्जना की बढ़ोत्तरी होती है।
- मुलेठी की एक डंडी को मुंह में रखकर देर तक चूसते रहे इससे गले की खरांस और खांसी में लाभ मिलता है।
- स्वांस से सबंधित रोगों में भी मुलेठी क्वाथ से लाभ मिलता है।
- हल्दी के साथ मुलेठी चूर्ण को लेने से पेट के अल्सर में सुधार होता है।
- पेट दर्द के लिए भी आप मुलेठी चूर्ण की फाकी ले सकते हैं जिससे पेट दर्द और एंठन में लाभ मिलता है।
- स्वांस नली की सुजन के लिए भी यह श्रेष्ठ है।
- एंटी बेक्टेरिअल होने के कारन यह पेट के कर्मी को समाप्त करती है और त्वचा के संक्रमण के लिए भी लाभदायी होती है।
- खांसी या सुखी खांसी के लिए आप मुलेठी चूर्ण को शहद में मिलाकर दिन में दो बार चाटे तो लाभ मिलता है इसके साथ ही आप मुलेठी का एक टुकड़ा मुंह में भी रखे तो जल्दी आराम मिलता है।
- यदि मुंह में जलन हो / इन्फेक्शन हो / छाले हो तो आप मुलेठी को सुपारी जितने आकार के टुकड़ों में काट लें और इनपर शहद लगाकर मुंह में रखे और इसे चूसे इससे लाभ मिलता है।
- मुलेठी चूर्ण को नियमित रूप से दूध में लेने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
- पीलिया, अल्सर, ब्रोंकाइटिस आदि विकारों में भी मुलेठी लाभदायी होती है।
- अन्य दवाओं के योग से ये स्त्रियों के रोगों के लिए भी उत्तम होती है। इसके सेवन से सौन्दय भी बढ़ता है।
- अपच, अफरा, पेचिश, हाइपर एसिडिटी आदि विकारों में भी मुलेठी के सेवन से लाभ मिलता है।
- अल्सर के घावों को शीघ्र भरने वाले विभिन्न घटक ग्लाइकेसइड्स, लिक्विरीस्ट्रोसाइड्स, आइसोलिक्विरीस्ट्रोसाइड आदि तत्व भी मुलेठी में पाये जाते हैं।
- मुलेठी वमननाशक व पिपासानाशक होती है।
- मुलेठी अमाशय की अम्लता में कमी व क्षतिग्रस्त व्रणों में सुधार लाता है।
- अम्लोतेजक पदार्थ खाने पर होने वाली पेट की जलन, दर्द आदि को चमत्कारिक रूप से ठीक करता है
काला वासा (Justicia gendarussa) Gendarussa vulgaris Nees (जेन्डारुसा वल्गैरिस)
(श्वसारी में प्रयुक्त ) वासा एक आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर हर्ब (पौधा ) है जो मूल रूप से पित्त और कफ्फ को शांत करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। सुश्रुत-संहिता में हमें इस पौधे के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है। इसे संस्कृत में वासक, वासिका, वासा, सिंहास्य, भिषङ्माता और हिंदी में अडूसा, अडुस्, अरुस, बाकस आदि नामों से जाना जाता है। वासा की प्रजातिओं (स्वेत वासा, रक्त वासा क्षुद्र वासा और श्याम/काला वासा ) में काला (श्याम) वासा का उपयोग सर्दी खांसी, झुकाम और कफ को दूर करने के लिए किया जाता है। यह राजस्थान में प्रायः मरू भूमि में खाली खेतों में स्वतः ही उगता है। काला वासा का पौधा गहरा बैंगनी रंग लिए होता है जबकि स्वेत वासा का पुष्प सफेद होता है और यह कम बैंगनी होता है। काला वासा रस में कड़वा, तीखा तथा गर्म, वामक व रेचक होता है तथा बुखार, बलगम बीमारी में लाभकारी होता है। दमा, स्वांस जनित रोग,अस्थमा, खांसी और कफ्फ में बहुत ही प्रभावी हर्ब होती है। स्वांस जनित विकारों के अलावा वासा का प्रयोग मुखपाक, मुंह के संक्रमण, दमा, मूत्र सबंधी विकारों में भी किया जाता है।
The author of this blog, Saroj Jangir (Admin),
is a distinguished expert in the field of Ayurvedic Granths. She has a
diploma in Naturopathy and Yogic Sciences. This blog post, penned by me,
shares insights based on ancient Ayurvedic texts such as Charak
Samhita, Bhav Prakash Nighantu, and Ras Tantra Sar Samhita. Drawing from
an in-depth study and knowledge of these scriptures, Saroj Jangir has
presented Ayurvedic Knowledge and lifestyle recommendations in a simple
and effective manner. Her aim is to guide readers towards a healthy life
and to highlight the significance of natural remedies in Ayurveda.
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