आछे दिन पाछे गये हरि सो किया ना हेत हिंदी मीनिंग Aache Din Pache Gaye Hari So Kiya Na Het Hindi Meaning
आछे दिन पाछे गये, हरि सो किया ना हेत।
अब पछितावा क्या करै, चिड़िया चुगि गयी खेत।।
अब पछितावा क्या करै, चिड़िया चुगि गयी खेत।।
Aachhe Din Pache Gaye, Hari So Kiya Na Het
Ab Pachitava Kya Kare, Chidiya Chugi Gai Khet
शब्दार्थ :
- अच्छे दिन-यौवन/Good Days (اچھے دن), हरि-ईश्वर/God,
- हेत-स्नेह,
- पछितावे-पछताने,
- चिड़िया चुग गई खेत-जीवन पूर्ण होना/काल का शिकार बनना।
Meaning in English : You didn't remember God when there was enough time. Now Time is up, What is going to happen with regret now. The bird/Kaal has destroyed tha farm. The human life has been gained after very hard journey through many yonis. We have to consider its importance. Human life does not get repeated. Therefore, the name of God should be chainted. God's name is the basis of salvation
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मुंड मुराये हरि मिले, सब कोई लेहि मुराये।
बार बार के मुंडने, भेर ना बैकुंठ जाये।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : यदि सर के बाल कटवाने मात्र से ही हरी की प्राप्ति होती हो तो सर्प्रथम भेड़ को ईश्वर की प्राप्ति होनी चाहिए क्योंकि वह तो कई बार नियमित रूप से मूंडी जाती है। भाव है की बाह्य आडम्बर, दिखावे को छोडकर जीव को हरी के नाम का सुमिरण करना चाहिए। नाना प्रकार के वस्त्र धारण करने, माला तिलक, आदि से कोई लाभ नही होने वाला है। हृदय से सद्मार्ग पर चलते हुए हरी के नाम का सुमिरण करने पर ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।
मीठे बोल जु बोलिये, तेते साधु ना जान।
पहिले स्वांग दिखाय के, पिछे दीशै आन।
मीठे बोल जु बोलिये, तेते साधु ना जान।
पहिले स्वांग दिखाय के, पिछे दीशै आन।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : साधु के वेश में बनावटी लोग मीठे वचन बोलते हैं और फिर अपने असली रंग में आ जाते हैं, ऐसे लोगों से बचकर रहना चाहिए, पहले वे स्वांग दिखाते हैं और पीछे अपने वास्तविक स्वरुप में आते हैं। भाव है की ज्ञान का महत्त्व है, स्वांग का नहीं। किसी भी साधू/गुरु को उसके बाह्य रूप के बजाय उसके ज्ञान के आधार पर मूल्यांकन करके उसे गुरु की पदवी देनी चाहिए। वर्तमान समय में उल्लेखनीय है की बहरूपिये गुरुओं की भरमार है।
माला पहिरै कौन गुन, मन दुबिधा नहि जाये।
मन माला करि राखिये, गुरु चरणन चित लाये।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ :
माला पहिरै कौन गुन, मन दुबिधा नहि जाये।
मन माला करि राखिये, गुरु चरणन चित लाये।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ :
माला पहनने से कोई लाभ नहीं होने वाला है, माला से मन की दुविधा दूर नहीं होती है। हमें कर की माला के स्थान पर मन की माला को फेरना चाहिए और गुरु के चरणों में चित्त को लगाना चाहिए। भाव है की बाह्य कार्यों के स्थान पर ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है वह तो हृदय से हरी के सुमिरण और सद्मार्ग पर चलने से संभव है।
साधु भया तो क्या हुआ, माला पहिरि चार।
बाहर भेश बनायिया, भीतर भरि भंगार।।
साधु भया तो क्या हुआ, माला पहिरि चार।
बाहर भेश बनायिया, भीतर भरि भंगार।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : बाहर से माला धारण करके साधू बन जाने से क्या लाभ यदि मन में भंगार भरा हुआ है, भाव है की बाह्य आडम्बर से कुछ लाभ होने वाला नहीं है जब तक हृदय साफ़ नहीं कर लिया जाता है। हृदय में यदि पाप कपट, काम, क्रोध रूपी भंगार हैं तो साधू रूप धारण कर लेने मात्र से कुछ लाभ नहीं होगा।
हम तो जोगी मनहि के, तन के हैं ते और।
मन को जोग लगाबतों, दशा भयि कछु और।।
हम तो जोगी मनहि के, तन के हैं ते और।
मन को जोग लगाबतों, दशा भयि कछु और।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : हम तो मन के जोगी हैं तन के नहीं, जो मन से जोगी बन जाएं तो जीव की दशा और दिशा सुधर जाती है, भाव ही की तन से जोग ग्रहण करने से कुछ लाभ नहीं होने वाला है, मन से जब तक योग ग्रहण नहीं कर लिया जाता है तब तक कुछ लाभ प्राप्त हैं होगा।
उदर समाता मांगि लै, ताको नाहि दोश।
कहि कबीर अधिका गहै, ताको गति ना मोश।।
उदर समाता मांगि लै, ताको नाहि दोश।
कहि कबीर अधिका गहै, ताको गति ना मोश।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : साधु वही है जो उतना ही मांगता है, जो व्यक्ति अपनी आवश्यकता से अधिक संग्रह करने के लिए आवश्यकता से अधिक मांगता है तो उसकी गति और मोक्ष की प्राप्त नहीं होने वाली है। भाव है की साधु जन संतोषी प्रवृति के होते हैं जो संग्रह करने के लिए कुछ भी नहीं मांगते हैं।
अर्घ कपाले झूलता, सो दिन करले याद।
जठरा सेती राखिया, नाहि पुरुष कर बाद।।
अर्घ कपाले झूलता, सो दिन करले याद।
जठरा सेती राखिया, नाहि पुरुष कर बाद।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : मनुष्य को वह दिन याद रखना चाहिए जब वह गर्भ में उल्टा झूलता है, इसलिए हरी को भूलना नहीं चाहिए।
अहिरन की चोरी करै, करै सुई की दान।
उॅचे चढ़ि कर देखता, केतिक दूर बिमान।।
अहिरन की चोरी करै, करै सुई की दान।
उॅचे चढ़ि कर देखता, केतिक दूर बिमान।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : दिखावटी दान पुन्य पर व्यंग्य है की तुम एरन की चोरी करते हो और सुई का दान करते हो, क्या यह दान है? नहीं। भाव है की ऐसे दान पुन्य करने के उपरांत ईश्वर का विमान तुम्हे लेने कैसे आएगा। यदि भक्ति के मार्ग पे आगे बढ़ना है तो अनैतिक कार्यों से दूर रहकर हरी का सुमिरण करना है।
आठ पहर यू ही गया, माया मोह जंजाल।
राम नाम हृदय नहीं, जीत लिया जम काल।।
आठ पहर यू ही गया, माया मोह जंजाल।
राम नाम हृदय नहीं, जीत लिया जम काल।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : माया और मोह के जंजाल में फँसकर जीव ने अपने जीवन का अमूल्य समय नष्ट कर दिया और दिवस के आठों पहर उसे ईश्वर की खबर नहीं रही। राम के नाम को उसने हृदय में नहीं बसाया और एक रोज जम ने उसे जीत लिया/काल का शिकार हो गया। काल का शिकार होने से आशय है की जीवन का आवागमन नहीं मिटा और पुनः जीवन मरण का चक्र शुरू हो गया।
हरि रस पीया जानिये, कबहू न जाए खुमार ।
मैमता घूमत फिरे, नाही तन की सार ॥
हरि रस पीया जानिये, कबहू न जाए खुमार ।
मैमता घूमत फिरे, नाही तन की सार ॥
दोहे का हिंदी में भावार्थ : जिस व्यक्ति ने हरी के नाम का रस पी लिया है उसका नशा कभी दूर नहीं होता है, उसकी खुमारी सदा बनी रहती है। हरी नाम रस पिया हुआ व्यक्ति नशे में झूमता फिरता है और उसे अपने तन की भी सुध नहीं रहती है। भाव है की जिसने हरी नाम के महत्त्व को समझ कर अपने जीवन में धारण कर लिया है वह नशे में रहता है, उसका सांसारिक कार्यों और गतिविधियों में मन नहीं लगता है, वह हर वक़्त हरी की ही धुन में रमता है।
जबही नाम हिरदे घरा, भया पाप का नाश।
मानो चिंगरी आग की, परी पुरानी घास॥
जबही नाम हिरदे घरा, भया पाप का नाश।
मानो चिंगरी आग की, परी पुरानी घास॥
दोहे का हिंदी में भावार्थ : इश्वर के नाम को हृदय में रखने से पाप का नाश हो गया है जैसे की पुरानी घास/फूंस पर आग की चिंगारी लग गई हो। भाव है की ईश्वर के नाम के सुमिरण मात्र से ही समस्त पापों का नाश हो जाता है। हरी का वास जिस हृदय में होता है वहां पर स्वंय ही पापों का नाश होना शुरू हो जाता है। जब हम ईश्वर के नाम का सुमिरण करते हैं तो हृदय में पवित्र विचारों का संचार होता है और हम सद्मार्ग के और स्वत ही अग्रसर होने लगते हैं।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : किताबी ज्ञान से किसी का भला नहीं होने वाला है, व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति के अभाव में किताबी ज्ञान व्यर्थ है। यदि ढाई अक्षर भी प्रेम के पढ़ लिए जाए तो यही पांडित्य है।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : व्यक्ति को ऐसी वाणी का उपयोग करना चाहिए जिससे मन में शान्ति हो, अहंकार दूर हो जो दूसरों को शीतल करे और स्वंय को भी शीतलता मिले। वाणी में शीतलता होनी आवश्यक है अहम् का त्याग करके मीठी वाणी का उपयोग करना ही स्वंय की शान्ति और जग कल्याण का माध्यम है ।
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।।
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : जो लोग गुरु से विमुख होते हैं वे अंधे के समान ही हैं, यदि हरी रूठ जाए तो गुरु की शरण में जा सकते हैं, वहां पर प्रश्रय मिल सकता है लेकिन यदि गुरु से ही कोई विमुख हो जाए तो उसका ठिकाना कहीं पर नहीं है वह भटकता ही रहता है।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : यदि हम स्वंय का विश्लेषन कर ले तो हमें ज्ञान होगा की कोई हमसे बुरा है ही नहीं, भाव है की स्वंय के दिल की खोज करें, तो अवश्य ही अन्वेषण का मौका मिलता है। भाव है की दूसरों के अवगुणों को छोड़कर स्वंय के गुण / अवगुण का विश्लेषण करना चाहिए यही स्वंय के कल्याण का माध्यम है। इसके विपरीत व्यक्ति दूसरों के गुणों और अवगुणों के चक्कर में ही फंसा रहता है और अपना समय ऐसे ही व्यर्थ में गंवाता है।
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जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
दोहे का हिंदी में भावार्थ : यदि हम स्वंय का विश्लेषन कर ले तो हमें ज्ञान होगा की कोई हमसे बुरा है ही नहीं, भाव है की स्वंय के दिल की खोज करें, तो अवश्य ही अन्वेषण का मौका मिलता है। भाव है की दूसरों के अवगुणों को छोड़कर स्वंय के गुण / अवगुण का विश्लेषण करना चाहिए यही स्वंय के कल्याण का माध्यम है। इसके विपरीत व्यक्ति दूसरों के गुणों और अवगुणों के चक्कर में ही फंसा रहता है और अपना समय ऐसे ही व्यर्थ में गंवाता है।
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