मैंमंता मन मारि रे घटहीं माँहै घेरि हिंदी मीनिंग
मैंमंता मन मारि रे, घटहीं माँहै घेरि।
जबहीं चालै पीठि दै, अंकुस दे दे फेरि॥
Mamata Man Mari Re, Ghatahi Mahe Gheri,
Jabahi Chale Pithi De, Ankush De De Feri.
- मैंमंता : मद मस्त होकर, गाफिल होकर.
- मन : चित्त, हृदय.
- मारि रे : मन को मारकर, स्वंय पर नियंत्रण करके.
- घटहीं माँहै : चित्त में ही घेरकर.
- घेरि : घेरकर.
- जबहीं चालै : जब ही चले, जब अग्रसर हो.
- पीठि दै : विमुख होकर, पीठ देकर.
- अंकुस दे दे फेरि : उस पर अंकुश (नियंत्रण करो)
कबीर साहेब की वाणी है की यह मन जो विषय विकारों में पड़कर गाफिल हो गया है, यह चेतन अवस्था में नहीं है. इसे और इसकी वासनाओं को अन्दर ही घेरकर मार डालो, समाप्त कर दो. जब यह पुनः विषय वासनाओं, सांसारिक मायाजनित क्रियाओं की और चले और भक्ति से विमुख होने लगे तो इस पर भक्ति रूपी अंकुश को लगाओं और इसे नियंत्रित कर लो. जब भी यह इश्वर की तरफ पीठ करे, उनसे विमुख हो तो इस पर आत्मिक अनुशाशन करो. मन को नियंत्रित करने के लिए ज्ञान रूपी अंकुश को उपयोग में लेने की बात कही गई है. प्रस्तुत साखी में रूपक अलंकार की व्यंजना हुई है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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