ग्रहणी रोग लक्षण कारण घरेलु समाधान

ग्रहणी/संग्रहणी रोग लक्षण कारण घरेलु समाधान Irritable Bowel Syndrome (IBS) Hindi,

ग्रहणी/संग्रहणी रोग किसे कहते हैं What is Grahani/ Sangrahani in Hindi

आयुर्वेदा के मतानुसार ग्रहणी/संग्रहणी रोग एक पाचन तंत्र से सबंधित रोग/विकार है जो मंदाग्निता के कारण से होता होता है। इसे अंग्रेजी में इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम Irritable Bowel Syndrome (IBS) कहते हैं। इस विकार में व्यक्ति रसक्षय और रक्तक्षय होने के कारण शारीरिक दुर्बलता का शिकार हो जाता है।  इस विकार में खाने के बाद पेट में ऐंठन शुरू हो जाती है और पेट में मरोड़ उठने लगते हैं। भोजन के पचने से पूर्व ही यह शरीर से बाहर निकलता है जिससे शरीर में पोषण की कमी हो जाती है। 
 
ग्रहणी रोग लक्षण कारण घरेलु समाधान Irritable Bowel Syndrome (IBS) Hindi

यह कब्ज और अतिसार के रूप में प्रकट होती है।  इस विकार में प्रधान रूप से बड़ी आंत प्रभावित होती है।  इस विकार से पीड़ित व्यक्ति कुछ भी खा ले यथा यदि वह नाश्ता भी करता है तो उसे शौच जाने के संकेत पेट में मरोड़ उठने के रूप में प्राप्त होते हैं। ऐसी अवस्था में विकारग्रस्त व्यक्ति भोजन को पूर्ण रूप से पचा नहीं पाता है।  यदि ग्रहणी विकार का इलाज नहीं किया जाए तो इससे शरीर में कमजोरी का आना,  रोग प्रतिरोध क्षमता का कम हो जाना, जोड़ो मे दर्द, आर्थ्राइटिस, गाठिया, डायबिटीज, थाइराइड आदि विकार उतपन्न हो सकते हैं। यदि आप इस विकार से पीड़ित हैं तो अवश्य ही वैद्य की सलाह लेवें और इसके उपरान्त सलाह के मुताबिक़ घरेलु तरीकों को आजमाएं। 

ग्रहणी रोग क्या होता है What is Grahani/Sangrahani

आचार्य चरक के मुताबिक़

ग्रहणी अपक्व को ग्रहण करता है और पक्व को शरीर से बाहर निकाल देता है। यदि अतिसार की उपेक्षा की जाए तो यह विकार पैदा होता है। अतिसार का रोगी आहार विहार का ध्यान नहीं रखता है तो उसकी पाचन अग्नि का नाश हो जाता है जिससे ग्रहणी रोग पैदा होता है।  

ग्रहणी का स्थान और कर्म Grahani Ka Sthan aur Karma

पित्त का धारण करने वाली छठी कला ग्रहणी कहलाती है जो अमाशय और पक्वाशय के मध्य में स्थित होती है। यहीं पर ग्रहणी विकार उत्पन्न होता है। ग्रहणी पक्व अन्न को की और भेजता है।
ग्रहणी/संग्रहणी, पित्तधरा, कला, पाचक और पित्त मिलकर भोजन को अमाशय से प्राप्त करना, भोजन का पाचन करना, भोजन का रस ग्रहण करना और मल को आगे धकेलना। मानव शरीर में सात कलाएं बताई गई हैं और उनमें से छठी कला का नाम पित्त धरा कला है।
आचार्य चक्रपाणि के अनुसार गृहणी में यदि अग्नि दोष उतपन्न हो जाए तो वही ग्रहणी/संग्रहणी दोष बन जाता है। 

ग्रहणी दोष क्यों होता है Grahani/Sangrahani Dosh Kyo Hota Hai

वात, पित्त और कफ या इन तीनों के कारण ख़राब पाचन तंत्र से ग्रहणी विकार होता है। आयुर्वेदा के मतानुसार ग्रहणी विकार के निम्न कारण होते हैं।
  • अनियमित खान पान : आयुर्वेदा में यह स्पष्ट है की क्या खाना है, कैसे खाना है और कितनी मात्रा में उसका सेवन करना है। यह व्यक्ति और देशकाल के अनुसार होता है।  यदि इनका पालन नहीं किया जाए तो जठराग्नि मंद हो जाती है। विरुद्ध आहार विहार से आपको अवश्य ही बचना चाहिए।
  • गरिष्ठ भोजन : आवश्यकता से अधिक गरिष्ठ भोजन ग्रहणी का कारण बनता है।
  • प्राकृतिक क्रियाओं को रोकना : मूत्र, शौच, मल मूत्र आदि को रोकने के कारण जठराग्नि मंद हो जाती है।
  • अति मैथुन : अधिक मात्रा में मैथुन क्रिया से पेट खराब हो जाता है।
  • व्यायाम की कमी : यदि आपकी जीवन शैली अधिक सुस्त है तो अवश्य ही जठराग्नि मंद हो जाती है।
  • मानसिक तनाव : अधिक चिंता, अवसाद आदि से पाचन क्रिया प्रभावित होती है। मानसिक तनाव से स्वंय को दूर रखें। 

ग्रहणी/संग्रहणी रोग के लक्षण Symptoms of Grahani/Sangrahani Dosha Hindi

  • मल का अनियमित रूप से लगना, कभी बंधा हुआ तो कभी पतला लगाना।
  • कभी कभी मल द्रव रूप में भी आता है। 
  • भोजन के उपरान्त उरोविदाह का उत्पन्न होना।  
  • ग्रहणी विकार से ग्रस्त व्यक्ति को घी, मीठा और दूध पचने में दिक्क्त होती है।
  • भोजन में अरुचि, का होना। 
  • मुंह में किसी स्वाद का नहीं आना। 
  • कुछ खाते ही शौच के लिए जाने का संकेत मिलना। 
  • कानों में एक तरह की गूँज का सुनाई देना। 
  • आँतों में गुड़गुड़ाहट का होना। 
  • अम्ल द्रव्य का उबकाई के साथ मुंह तक आना। 
  • अंगसाद, तृष्णा, आलस्य क्लम, बलक्षय आदि। 
  • पेट का फूलना और गैस का बनना। 
  • मल के साथ आंव आना (चिकना कफ जैसा प्रदार्थ आना )
  • लगातार पेट में ऐंठन का बने रहना। 
  • मुंह का फीका रहना, लगातार तृष्णा का बने रहना।
  • पेट में मरोड़ का उठना, पेट का ऐंठना।
  • कमजोरी का रहना और आखों के समक्ष अँधेरे का बने रहना।
  • हाथ पांवों में दर्द और शोथ।
  • हड्डियों में दर्द का होना।
  • भोजन में अरुचि होना, खाने की इच्छा नहीं होना।
  • दूषित मल का आना और बार बार शौच के लिए जाना।
  • पेट में जलन का होना। 
  • लालास्राव, हाथ पैरों में सूजन का आना, संधियों में पीड़ा महशूस होना, आमगंध युक्त खट्टी डकारों का आना, वमन आदि।  
  • आध्मान, अग्निमांद्य एवं मुखशोख इस विकार के लक्षण हैं।

ग्रहणी/संग्रहणी IBS ( Irritable Bowel Syndrome ) के कुछ सामान्य कारण Grahani/Sangrahani Dosh Ke Karan

ग्रहणी/संग्रहणी एक जटिल रोग होता है जिसके कई कारण होते हैं, कोई एक विशेष कारन नहीं कहा जा सकता है, फिर भी कुछ सामान्य कारण निम्न प्रकार से हैं। 

  • किसी खाद्य प्रदार्थ विशेष से एलर्जी होना यथा गेंहू, डेरी प्रोडक्ट्स, शराब आदि। 
  • अनियमित दिनचर्या, अधिक तनाव आदि। अधिक तनाव में कार्य करना संग्रहणी/संग्रहणी विकार का एक प्रमुख कारण है।
  • सेहत के प्रति लापरवाह हो जाना। 
  • नशीले प्रदार्थों का सेवन करना। 
  • रात्रि में अधिक समय तक जागना और दिन में अधिक सोना। 
  • आहार विहार के प्रति लापरवाही का होना इस रोग का एक प्रमुख कारण होता है। 
  • कुछ विशेष परिस्थितियों में यह विकार आनुवंशिक रूप से भी पैदा हो जाता है। 
  • बांसी खाने का सेवन, ठंडा भोजन करना, अधिक गरिष्ठ भोजन का सेवन करना।

ग्रहणी/संग्रहणी के निम्न भेद होते हैं  Types of Grahani/Sangrahani Hindi

  • वतिक ग्रहणी/संग्रहणी-वातज ग्रहणी
  • पैत्तिक ग्रहणी/संग्रहणी-पित्तज ग्रहणी
  • कफ़ज ग्रहणी/संग्रहणी-कफज ग्रहणी
  • सन्निपात ग्रहणी/संग्रहणी-त्रिदोषज ग्रहणी-सभी दोषों के मिश्रित आहार विहार के कारण उत्पन्न

त्रिदोष ग्रहणी Tridosh Grahani

यदि वात, पित्त और कफ तीनों का संतुलन बिगड़ जाए तो इनसे उत्पन्न दोष को त्रिदोषज ग्रहणी कहा जाता है। इसमें वात कफ और पित्त का मिला जुला प्रभाव देखने को मिलता है।
  • पेट साफ़ नहीं होना।
  • अतिसार का हो जाना।
  • गैस का अधिक बनना।
  • मल का स्टिकी/चिपचिपा बनना।
  • अधिक आलस्य का रहना।
  • शारीरिक कमजोरी का बने रहना।

ग्रहणी/संग्रहणी विकार में निम्न आयुर्वेदिक ओषधियाँ कारगर होती हैं। स्पष्ट है की आप इनका उपयोग वैद्य की सलाह के उपरान्त ही करें। 

ग्रहणी / संग्रहणी दोष में काम में ली जाने वाली आयुर्वेदिक ओषधियाँ Ayurvedic Medicines for Grahani/Sangrahani Dosha

ग्रहणी विकार हेतु निम्न आयुर्वेदिक का उपयोग किया जाता है। इनकी मात्रा और सेवन विधि के लिए आप वैद्य से संपर्क करें।
चूर्ण : ग्रहणी/संग्रहणी विकार में निम्न चूर्ण लाभकारी होते हैं।
  • बिल्व मज्जा चूर्ण Bilva Majja Churna
  • इसबगोल चूर्ण Isabgol Bhunsi
  • पिप्पलाद्य चूर्ण Pipplaaghya Churna
  • कुटजादि विशेष योग चूर्ण Kutujadi Vishesh Yog Churna
  • सर्जरस चूर्ण : Sarjrs Churna
  • नागराद्य चूर्ण Nagragya Churna
  • रास्नादि चूर्ण Rasnadi Churna
  • भूनिनिम्बादि चूर्ण Bhuni Nimbadi Churna
  • शुण्ठादि चूर्ण Shunthadi Churna
  • हिंग्वास्टक चूर्ण Hingvashtaka Churna
  • बिल्वादि चूर्ण Bilvadi Churna
  • जाति फलादि चूर्ण Jaati Faladi Churna
  • पंचामृत पर्पटी चूर्ण Panchamrit Parpati Churna
  • त्रिफला चूर्ण  Trifala Churna
  • अग्नि संदीपन चूर्ण Agni Sandipan Churna
  • अविपत्तिकर चूर्ण Avipattikar Churna
  • लवण भाष्कर चूर्ण  Lavana Bhaskar Churna
अन्य लाभकारी चूर्ण : - वृहत गंगाधर चूर्ण, लघु गंगाधर चूर्ण, जातिफलादि चूर्ण,कपित्थाष्टक चूर्ण, दाडिमाष्टक चूर्ण, हिंग्वाष्टक चूर्ण, वृहल्लवंगाद्य चूर्ण, हिंग्वादि चूर्ण,नागराज चूर्ण
वटी (टेबलेट्स) Vati
  • हिंग्वादि वटी,
  • रसोनादि वटी,
  • गंधक वटी,
  • शंख वटी,
  • सौवर्चल पाक वटी,
  • दुग्ध वटी,
  • क्षार गुटिका
  • आरोग्य वर्धिनी वटी,
  • कुटज घनवटी : कुटज घनवटी/कुटजारिष्ट आँतों के जख्म को दूर करते हैं।
  • चित्रकादि वटी
  • कुबेराक्षादि वटी 
  • दुग्ध वटी 
  • अग्नितुंडी वटी 
  • तक्र वटी 
घृत : Ghrita
  • दशमूलाद्य घृत,
  • त्र्यूषणाद्य घृत,
  • पिप्पली मूल घृत
  • पंचमूलाद्य घृत 
  • बिल्वाद्य घृत 
  • शुंठी घृत
क्षार : Kshar
  • यवक्षार,
  • भूनिम्बादि क्षार,
  • पिप्पलीमूलाद्य क्षार
  • भल्लातक क्षार
  • त्रिफलादि क्षार 
आसव अरिष्ट : Aasav Arishta
  • बिल्वासव-बिल्वासव एक ऐसी ओषधि है जो आँतों को पुष्ट करती है। लम्बे समय तक उपयोगी और आँतों को शक्ति देती है। बिलवासव संग्रहणी विकार में अधिक उपयोगी साबित होती है। यह सुपाच्य होती है। बिलवासव आँतों के जख्म को ठीक करते हैं।
  • द्राक्षासव,
  • कुमारी आसव,
  • चंदनासव,
  • दन्त्यारिष्ट ,
  • मध्वारिष्ट,
  • दशमूलारिष्ट,
  • पंचारिष्ट 
  • आसावरिष्ट  
  • तक्रारिष्ट 
  • कुटुजारिष्ट : आँतों को ठीक करने में सहायक।
पर्पटी : Parpati
  • रस पर्पटी,
  • पंचामृत पर्पटी,
  • स्वर्ण पर्पटी 
  • स्वर्ण पर्पटी
  • मंडूर पर्पटी 
  • विजय पर्पटी 
  • गगन पर्पटी 
  • ताम्र पर्पटी 
  • पंचामृत पर्पटी
अवलेह Avaleha
  • तक्र हरीतकी
  • कल्याणवलेह
रस Rasa
  • अग्निकुमार रस
  • ग्रहणी कपाट रस
  • पियूष बल्ली रस
  • ग्रहणी गज केसरी
  • कनक सुन्दर रस
  • आंत्रशोषांतक रस
  • नृपतिवल्ल्भ रस
  • महागंधक रस
  • अगस्तिसूतराज
अन्य उपयोगी रस : ग्रहणी कपाट रस, ग्रहणी शार्दूल रस, अगस्ति सूतराज रस, रसेंद्रचूर्ण, राजवल्लभ रस, हेमगर्भ पोट्टली रस।
क्वाथ / Kwath
  • नागरादि क्वाथ
  • तिक्तादिक्वाथ
  • शालिपादि क्वाथ

ग्रहणी/संग्रहणी दोष/रोग का इलाज Ayurvedic Treatment for Grahani/Sangrahani Dosha

आयुर्वेद में आँतों को बल देकर और आँतों के जख्मों को दुरुस्त करके ग्रहणी विकार को ठीक किया जाता है। इस हेतु आप वैद्य से संपर्क करें। आप अपने स्तर पर निम्न बातों का ध्यान रखें।
ग्रहणी/संग्रहणी के लिए वैद्य की सलाह के उपरान्त ओषधियों का सेवन करने से इस विकार में सुधार होता है। निचे आपको कुछ घरेलु तरीके बताये गए हैं जिनका आप पालन करें।
  • इसबगोल : इसबगोल की भूंसी मल से अतिरिक्त जल को सोखकर मल को आपस में जोड़ती है। इसके उपयोग से बार बार शौचालय नहीं जाना पड़ता है। इसबगोल के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करें।
  • सौंफ : भोजन के उपरान्त सौंफ का उपयोग करें जो भोजन के पाचन में लाभकारी होता है।
  • कद्दू का सूप : कद्दू का सूप अनियमित मलत्याग में उपयोगी होता है।
  • एलर्जी वाले भोजन का त्याग : अपने भोजन पर सूक्ष्म निगरानी करें और पता लगाएं की किस खाद्य प्रदार्थ से आपको एलर्जी होती है। उस प्रदार्थ का सेवन तुरंत रोक दें एंव वैद्य की सलाह अवश्य लेवें।
  • अधिक फाइबर युक्त भोजन करें : अपने भोजन में सुपाच्य और पेट के लिए गुणकारी हरी सब्जियों के साथ फाइबर युक्त भोजन को लें। यथा चोकर युक्त आटा, हरी सब्जियां और मौसमी फल आदि में फाइबर होता है जो आपके लिए लाभकारी होता है।
  • मिर्च मसालों का उपयोग ना करें : ज्यादा तली भुनी और मिर्च मसालेदार खाद्य प्रदार्थों का सेवन नहीं करें।
  • एक बार में ज्यादा भोजन नहीं करें : अपने भोजन करने के तरीके में सुधार करें। धीरे धीरे चबा कर खाएं और एक बार में ज्यादा भोजन नहीं करें। दिन में दो से तीन बार थोड़ा भोजन करें।
  • छाछ और दही का उपयोग करें : यदि छाछ और दही से आपको कोई परेशानी नहीं होती है तो इनका उपयोग अधिक मात्रा में करना चाहिए। 
  • हींग : आप छाछ में भुना हुआ जीरा पाउडर और हींग मिलकर सेवन करें तो अवश्य ही ग्रहणी विकार में लाभ मिलता है। 
  • प्रसन्न रहें : सुबह शाम हल्का फुल्का व्यायाम करें। भोजन के उपरान्त कुछ सैर अवश्य करें। अपने मन मस्तिष्क को प्रफुल्लित रखें, चिंता और अवसाद से दूर रहें। 
  • जीरे के पानी का सेवन भी ग्रहणी विकार में लाभकारी होता है। 
  • बेलपत्र आपके लिए अमृत होता है। इस फल का जूस बना कर अवश्य ही सेवन करें। यह खून की मात्रा बढ़ाता है और आँतों को बल प्रदान करता है। बेलपत्र यदि उपलब्ध ना हो तो आप इसका चूर्ण भी उपयोग में ले सकते हैं। 
  • नियत समय पर भोजन करने की आदत विकसित करें।  
  • किसी योगाचार्य से संपर्क करें और उसकी देख रेख में सबंधिक योग मुद्रा को सीखें।

आईबीएस बीमारी क्या होती है IBS Bimari Kya Hoti Hai in Hindi?

आयुर्वेदा के मतानुसार ग्रहणी/संग्रहणी विकार (बिमारी) जिसे अंग्रेजी में इर्रिटेबल बोवेल सिंड्रोम कहते हैं ख़राब पाचन क्रिया के कारण होती है। आयुर्वेद के मतानुसार अग्निमांद्य इसका प्रधान कारण होता है। इस विकार में जठराग्नि मंद हो जाती है। यह विकार वात कफ और पित्त के साथ तीनों के बिगड़ने से होता है जिसमें व्यक्ति को पेट में ऐंठन, मरोड़ उठना, कुछ खाते ही शौच के लिए जाना, गैस, सख्त मल, अत्यंत ढीला मल आदि पैदा हो जाते हैं।

IBS (इरिटेबल बाउल सिंड्रोम) में क्या नहीं खाना चाहिए?

ग्रहणी विकार में व्यक्ति को अपने भोजन में फाइबरयुक्त आहार को शामिल करना चाहिए। हरी सब्जियों और फलों का सेवन करना चाहिए। इरिटेबल बाउल सिंड्रोम में आपको निम्न आहार से परहेज करना चाहिए।
ग्लूटेन युक्त आहार से आपको बचना चाहिए।
चाय कॉफी से परहेज़ करना चाहिए।
शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।
अधिक फैट वाले आहार का सेवन नहीं करें।

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The author of this blog, Saroj Jangir (Admin), is a distinguished expert in the field of Ayurvedic Granths. She has a diploma in Naturopathy and Yogic Sciences. This blog post, penned by me, shares insights based on ancient Ayurvedic texts such as Charak Samhita, Bhav Prakash Nighantu, and Ras Tantra Sar Samhita. Drawing from an in-depth study and knowledge of these scriptures, Saroj Jangir has presented Ayurvedic Knowledge and lifestyle recommendations in a simple and effective manner. Her aim is to guide readers towards a healthy life and to highlight the significance of natural remedies in Ayurveda.

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