हमको बैकुंठ बुला लो ओ कन्हैया बांसुरी वाले

हमको बैकुंठ बुला लो ओ कन्हैया बांसुरी वाले


हमको बैकुंठ बुला लो 
ओ कन्हैया बांसुरी वाले
रो रो के कहते हैं चंदा और सूरज, 
सालों में लगते हैं ग्रहणा के मूरत
आकर के कष्ट मिटा दो 
ओ कन्हैया बांसुरी वाले

रो रो के कहते हैं गंगा और जमुना, 
ऊपर से चलती है रेलों की पहिया
आकर के भार संभालो 
ओ कन्हैया बांसुरी वाले

रो रो के कहती हैं गौएं बेचारी है गर्दन
पे चलती हैं छुरी कटारी
आकर के प्राण बचा लो 
ओ कन्हैया बांसुरी वाले

रो रो के कहती हैं द्रोपदी बेचारी, 
सभा बीच खींची है साड़ी हमारी
आकर के लाज बचा लो 
ओ कन्हैया बांसुरी वाले
हमको बैकुंठ बुला लो 
ओ कन्हैया बांसुरी वाले 


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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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