माखन मिश्री को हांडा है चढ़ रहे शिखर

माखन मिश्री को हांडा है चढ़ रहे शिखर


माखन-मिश्री को हांडा है, चढ़ रहे शिखर पे झंडा है,
यहाँ आदि गौड़, अहिभाषी ब्राह्मण बलदाऊ के पंडा हैं।
सारे जग की जो मात रेवती, करती है रखवारी,
मेरे दाऊजी महाराज बिरज में हो गए हैं अवतारी।
मेरे ठाकुर दाऊ दयाल, जगत में हो गए हैं अवतारी।

थोड़ी पर हीरा-रजत है, एक गले में कटला सजत है,
सिर पर चीरा चमक रह्यो, द्वार पे नौबत बजत है।
श्यामल रंग, अंग अति शोभित — झांकी अजब तुम्हारी,
मेरे दाऊजी महाराज बिरज में हो गए हैं अवतारी।
मेरे ठाकुर दाऊ दयाल, जगत में हो गए हैं अवतारी।

सिर मोर मुकुट, लट घुंघराले, 40 गज में सजने वाले,
हल धर, हल मुसर कर धरे, पी रहे भांग के तू प्याले।
कर सिंगार रेवती मैया, खड़ी है तेरे अगाड़ी,
मेरे दाऊजी महाराज बिरज में हो गए हैं अवतारी।
मेरे ठाकुर दाऊ दयाल, जगत में हो गए हैं अवतारी।

लग रही भगतें 56 की, सज रहे 36 व्यंजन हैं,
हो गया धन्य जीवन भक्तों, मिले तुम्हारे दर्शन हैं।
नंदकिशोर छवि तेरी अनुपम, जाऊं मैं बलिहारी,
मेरे दाऊजी महाराज बिरज में हो गए हैं अवतारी।
मेरे ठाकुर दाऊ दयाल, जगत में हो गए हैं अवतारी।

माखन-मिश्री को हांडा है, चढ़ रहे शिखर पे झंडा है,
यहाँ आदि गौड़, अहिभाषी ब्राह्मण बलदाऊ के पंडा हैं।


दाऊजी महाराज भजन !माखन मिश्री को हन्डा है।by आचार्य मनोज कृष्ण जी।।

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