बाबा मेरी रक्षा करना साई मेरी रक्षा करना
बाबा मेरी रक्षा करना साई मेरी रक्षा करना
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
राह तुम्हारी देख-देख कर, मेरी अखियाँ भर-भर आईं,
अब तो दर्शन दे दो बाबा, ओ शिरडी के साईं।
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
बचों की कर देखभाल साईं,
बचों का कर ध्यान,
बचें आखिर बच्चे हैं तू, साईं दीन दयाल।
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
मैं तो हूँ मजबूर साईं, है तेरी क्या मज़बूरी,
हाथ पकड़ लो, शरण में ले लो, कर दो आशा पूरी।
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
हालत मेरी देख-देख कर हँसने लगा ज़माना,
लाखों-करोड़ों हाथों वाले, मेरी लाज बचाना।
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
मुझ सा कोई पापी तेरे द्वार पे आया न होगा,
और जो आया होगा, ख़ाली लौटाया न होगा।
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
साईं मेरी रक्षा करना।।
राह तुम्हारी देख-देख कर, मेरी अखियाँ भर-भर आईं,
अब तो दर्शन दे दो बाबा, ओ शिरडी के साईं।
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
बचों की कर देखभाल साईं,
बचों का कर ध्यान,
बचें आखिर बच्चे हैं तू, साईं दीन दयाल।
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
मैं तो हूँ मजबूर साईं, है तेरी क्या मज़बूरी,
हाथ पकड़ लो, शरण में ले लो, कर दो आशा पूरी।
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
हालत मेरी देख-देख कर हँसने लगा ज़माना,
लाखों-करोड़ों हाथों वाले, मेरी लाज बचाना।
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
मुझ सा कोई पापी तेरे द्वार पे आया न होगा,
और जो आया होगा, ख़ाली लौटाया न होगा।
बाबा मेरी रक्षा करना,
साईं मेरी रक्षा करना।।
Baba Meri Raksha Karna Shirdi Sai bhajan www saipedia com
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जब जीवन में कठिनाइयाँ और असहायता का अनुभव गहराता है, तो मनुष्य का मन स्वाभाविक रूप से किसी ऐसी शक्ति की शरण चाहता है, जो उसे सुरक्षा, संबल और सांत्वना दे सके। यह भाव केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि आत्मा की गहराई से निकली पुकार बन जाता है। जब मनुष्य अपने सामर्थ्य की सीमाओं को पहचान लेता है, तो वह पूरी विनम्रता और सच्चे समर्पण के साथ अपने ईश्वर से सहायता और रक्षा की प्रार्थना करता है। यह प्रार्थना केवल अपने लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार, बच्चों और समस्त प्रियजनों के लिए भी होती है, क्योंकि सच्चा भक्त सबके कल्याण की कामना करता है।
आध्यात्मिक जीवन में यह विश्वास अत्यंत महत्वपूर्ण है कि कोई भी दोष, पाप या कमजोरी इतनी बड़ी नहीं कि ईश्वर की करुणा और दया उसे न ढँक सके। जब साधक सच्चे हृदय से अपने आराध्य के आगे अपनी कमज़ोरियाँ, दुख और आशाएँ रखता है, तो उसे यह भरोसा होता है कि उसकी पुकार अनसुनी नहीं जाएगी। समाज चाहे जैसे भी देखे, परिस्थितियाँ जैसी भी हों, ईश्वर की शरण में जाने वाला कभी खाली नहीं लौटता। यही विश्वास, यही समर्पण मनुष्य को विपरीत परिस्थितियों में भी आशा, साहस और आंतरिक शांति से भर देता है।
आध्यात्मिक जीवन में यह विश्वास अत्यंत महत्वपूर्ण है कि कोई भी दोष, पाप या कमजोरी इतनी बड़ी नहीं कि ईश्वर की करुणा और दया उसे न ढँक सके। जब साधक सच्चे हृदय से अपने आराध्य के आगे अपनी कमज़ोरियाँ, दुख और आशाएँ रखता है, तो उसे यह भरोसा होता है कि उसकी पुकार अनसुनी नहीं जाएगी। समाज चाहे जैसे भी देखे, परिस्थितियाँ जैसी भी हों, ईश्वर की शरण में जाने वाला कभी खाली नहीं लौटता। यही विश्वास, यही समर्पण मनुष्य को विपरीत परिस्थितियों में भी आशा, साहस और आंतरिक शांति से भर देता है।
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Author - Saroj Jangir
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