लोका मति के भोरा रे हिंदी मीनिंग

लोका मति के भोरा रे हिंदी मीनिंग Loka Mati Ke Bhora Re Meaning : Kabir Ke Pad Hindi Arth Sahit

 
लोका मति के भोरा रे हिंदी मीनिंग Loka Mati Ke Bhora Re Meaning : Kabir Ke Pad Hindi Arth Sahit

लोका मति के भोरा रे।
जौ कासी तन तजै कबीरा, तौ रामहि कहाँ निहोरा रे॥
तब हम वैसे अब हम ऐसे, इहै जनम का लाहा।
ज्यूं जल में जल पैसि न निकसै, यूँ ढूरि मिल्या जुलाहा॥
राम भगति परि जाकौ हित चित, ताकौ अचरज काहा।
गुर प्रसाद साध की संगति, जग जीतें जाइ जुलाहा॥
कहै कबीर सुनहुं रे संतौ, भ्रंमि परे जिनी कोई।
जस कासी तस मगहर ऊसर, हिरदै राम सति होई॥

इस पद में कबीर साहेब का कथन है की लोग व्यर्थ ही भ्रमित होते हैं। काशी में मरने से कैसे ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। आशय है की काशी में मृत्यु होने पर ईश्वर की प्राप्ति/ राम की कृपा नहीं होती है। हम/आत्मा जो जैसी पहले थी वैसी ही अब है हम ही इसे जन्म का नाम दे देते हैं। जैसे जल में जल मिल जाता है, पुनः उसे पृथक करना सम्भव नहीं है। ऐसे ही जुलाहा (कबीर/आत्मा) एक बार जब पंचतत्व में विलीन हो जाती है तो उसे अलग कर पाना भी सम्भव नहीं है। साधू की संगत और गुरु की कृपा से ही एक जुलाहा (सामान्य आदमी) भी जगत को जीतकर के जाता है। कबीर साहेब कहते हैं की सुनों साधो, कैसा भरम है जैसी काशी है ऐसे ही मगहर ही जिनके हृदय में राम का वास होता है वे सभी जगह पर ईश्वर होता है। 

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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