गुर्जिएफ के 30 प्रमुख शिक्षाएं

गुर्जिएफ के 30 प्रमुख शिक्षाएं

हमारी दुनिया में कई दार्शनिक, रहस्यवादी और आध्यात्मिक शिक्षक हुए हैं, जिन्होंने जीवन की गहरी सच्चाइयों को खोजने और उन्हें समझाने का प्रयास किया है। ऐसे ही एक अद्वितीय और प्रभावशाली व्यक्तित्व थे जॉर्ज इवानोविच गुरजिएफ/George Gurdjieff Teachings। उनका जीवन और शिक्षाएँ मानव चेतना के गहरे आयामों और हमारे अस्तित्व के उद्देश्य को समझने के लिए प्रेरित करती हैं।
 
Georges_Gurdjieff

जॉर्ज इवानोविच गुरजिएफ (1867-1949) एक ग्रीक-अर्मेनियाई दार्शनिक, रहस्यवादी और आध्यात्मिक गुरु थे। उनका मानना था कि अधिकांश लोग अपनी असली चेतना से अनजान रहते हैं और एक "सचेत निद्रा" में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। उन्होंने इस स्थिति से जागरूक होने और उच्च चेतना की स्थिति प्राप्त करने का एक अनूठा मार्ग प्रस्तुत किया, जिसे "चौथा मार्ग" कहा जाता है। यह मार्ग योगियों, फकीरों और साधुओं के पारंपरिक मार्गों से अलग था। उनके शिष्य पी.डी. उस्पेंस्की ने इसे "स्वयं पर कार्य करने" का मार्ग बताया। गुरजिएफ का यह दर्शन आत्म-चेतना विकसित करने और मानव जीवन के उद्देश्य को समझने का प्रयास करता है। 

सत्य का खोजी बनें: गुर्जिएफ ने सिखाया कि सत्य को खोजना हर व्यक्ति का मूल उद्देश्य होना चाहिए। यह बाहरी धर्म से नहीं, बल्कि आंतरिक खोज से प्राप्त होता है।

तीन केंद्रों का विकास: मनुष्य के भीतर तीन केंद्र (मस्तिष्क, हृदय और शरीर) होते हैं। इनका सामंजस्य बनाना आध्यात्मिक विकास का प्रमुख हिस्सा है।

आत्म-निरीक्षण: अपने विचारों, भावनाओं और कार्यों का नियमित निरीक्षण करें। यह स्वयं को समझने और अपने भीतर की गहराई तक जाने का पहला कदम है।

नींद से जागना: गुर्जिएफ के अनुसार, अधिकांश लोग "सोई हुई" अवस्था में जीवन जीते हैं। जागरूक होना सच्चा आत्म-विकास है।

आत्म-नियंत्रण और महत्त्व: अपनी भावनाओं और इच्छाओं पर नियंत्रण रखना सीखें। यह सच्चे स्वतंत्रता की ओर पहला कदम है।

चौथे मार्ग का अनुसरण: गुर्जिएफ ने चौथे मार्ग की अवधारणा दी, जो साधारण जीवन में आत्म-विकास का तरीका है, न कि जंगल या मठ में जाकर।

अंतर्निहित धर्म को समझें: धर्म केवल बाहरी अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। इसके भीतर गहन मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक अर्थ छिपे होते हैं, धर्म के गूढ़ अर्थ को समझना चाहिए।

बहुलता का अनुभव: हमारे भीतर एक नहीं, बल्कि हजारों छोटे-छोटे "मैं" होते हैं। इन्हें पहचानना और एकता में बदलना ही सच्चा विकास है।

गृह की उपमा: मनुष्य को एक असंगठित घर की तरह बताया गया, जहाँ नौकर तो हैं, पर मालिक नहीं। आंतरिक अनुशासन ही घर को व्यवस्थित कर सकता है।

तीनों मस्तिष्कों का संतुलन: मन, हृदय और शरीर के तीन मस्तिष्क अलग-अलग भाषा में बात करते हैं। इनका तालमेल जरूरी है।

ध्यान और अवलोकन: खुद को जानने के लिए ध्यान और स्वयं का अवलोकन जरूरी है।

भावनात्मक प्रभुत्व: नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित करना आंतरिक शांति का आधार है।

शारीरिक अनुशासन: शरीर को मजबूत और अनुशासित बनाए रखना भी आत्म-विकास का हिस्सा है।

प्रारंभिक शिक्षाओं का सम्मान: हर धर्म के बाहरी पहलुओं के पीछे छिपे गहरे संदेशों को समझें।

तीनों मस्तिष्कों की परिभाषा: मस्तिष्क सोचता है, हृदय महसूस करता है और शरीर कार्य करता है। इन तीनों का तालमेल जरूरी है।

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स्वतंत्रता का अर्थ: सच्ची स्वतंत्रता आंतरिक अनुशासन और आत्म-ज्ञान से आती है।

धर्म और मनोविज्ञान का संबंध: धर्म की आंतरिक शिक्षा मनोविज्ञान से संबंधित होती है।

प्राचीन ज्ञान की पुन: खोज: गुर्जिएफ की शिक्षाएं प्राचीन और सिद्धांत आधारित थीं।

प्रेम और करुणा का महत्व: प्रेम और करुणा आत्मा को विकसित करने के लिए आवश्यक हैं।

अहंकार का त्याग: अहंकार को पहचानना और उसे नियंत्रित करना आंतरिक विकास की कुंजी है।

समूह कार्य: आत्म-विकास के लिए समूह के साथ मिलकर कार्य करना प्रभावी होता है।

आंतरिक गुरु का विकास: हर व्यक्ति के भीतर एक गुरु होता है। उसे पहचानें और उसका अनुसरण करें।

सपनों से बाहर आएं: कल्पनाओं और भ्रम से बाहर निकलें। सच्चाई को स्वीकारें।

जीवन एक स्कूल है: हर अनुभव से कुछ न कुछ सीखें। यह जीवन का प्रमुख उद्देश्य है।

धैर्य और प्रयास: आत्म-विकास के लिए निरंतर प्रयास और धैर्य जरूरी हैं।

आत्म-यथार्थता: खुद को स्वीकार करें और अपने अंदर छिपी कमजोरियों को पहचानें।

सार और व्यक्तित्व का विकास: व्यक्तित्व से परे जाकर अपने "सार" को विकसित करना चाहिए।

प्रेरणा के स्रोत खोजें: जीवन में सच्ची प्रेरणा पाने के लिए गहराई में जाएं।

मनोवैज्ञानिक जेल से बाहर निकलें: हम मानसिक कैद में जीते हैं। इसे पहचानना और बाहर निकलना जरूरी है।

सर्वोच्च चेतना: आत्मा को जाग्रत कर अपने भीतर सर्वोच्च चेतना का अनुभव करें।

George Gurdjieff

  • 1867: जन्म अलेक्जेंड्रोपोल, येरेवन गवर्नरेट, रूसी साम्राज्य (अब ग्युमरी, आर्मेनिया) में हुआ।
  • 1912: रूस में अपने शिक्षण की शुरुआत की, जहाँ उन्होंने अपने विचारों और शिक्षाओं को फैलाना शुरू किया।
  • 1917: रूसी क्रांति के दौरान, उन्होंने और उनके शिष्यों ने तिफ़्लिस (अब त्बिलिसी, जॉर्जिया) में शरण ली।
  • 1919: इस्तांबुल (तब कांस्टेंटिनोपल) में स्थानांतरित हुए, जहाँ उन्होंने अपने शिक्षण को जारी रखा।
  • 1922: फ्रांस के फॉनटेनब्लो के पास एवॉन में "मनुष्य के सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए संस्थान" की स्थापना की।
  • 1924: संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा की, जहाँ उन्होंने अपने शिक्षण का प्रचार किया और नए शिष्यों को आकर्षित किया।
  • 1935: फ्रांस लौटे और पेरिस में अपने शिक्षण को जारी रखा।
  • 1940-1944: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, पेरिस में रहे और अपने शिष्यों के साथ काम जारी रखा।
  • 29 अक्टूबर 1949: न्यूली-सुर-सीन, फ्रांस में निधन हुआ।
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गुरजिएफ की शिक्षाओं का प्रभाव इतना व्यापक था कि उनकी मृत्यु के बाद भी उनके अनुयायियों ने उनके कार्य को आगे बढ़ाया। 1949 में उनकी मृत्यु के बाद, पेरिस में गुरजिएफ फाउंडेशन की स्थापना की गई, जिसे उनकी शिष्या जीन डी साल्ज़मैन ने संचालित किया। इस फाउंडेशन ने दुनियाभर में गुरजिएफ की शिक्षाओं को फैलाने का कार्य किया। वर्तमान में, गुरजिएफ फाउंडेशन के कई संगठन फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन और वेनेजुएला में सक्रिय हैं। उनकी शिक्षाएँ न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए बल्कि मानवीय चेतना के विस्तार के लिए भी एक गहरा मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। आशा है की आपको ये लेख अवश्य ही पसंद आएगा.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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