पतंजली श्वासारी रस के फायदे Benefits of Patanjali Swasari Ras Divy Swasari Ras

पतंजलि श्वासरि रस क्या है What is Patanjali Swasari Ras

पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) बारीक चूर्ण रूप में एक औशधि है जिसका उपयोग कफ्फ, अस्थमा, फेफड़ों के संक्रमण, गले के संक्रमण, खाँसी, आदि विकारों के उपचार के लिए किया जाता है। हम पहले के लेख में जान चुके हैं की पतंजली श्वासरि क्वाथ और पतंजली श्वासरि प्रवाहि के लाभ क्या होते हैं। यदि आप इनके विषय में अधिक जानकारी चाहते हैं तो निचे दिए गए लिंक पर विजिट करें। इस लेख में हम पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे। 

पतंजली श्वासारी रस के फायदे Benefits of Patanjali Swasari Ras Divy Swasari Ras

Patanjali Swasari Ras Ingredients पतंजलि श्वासारि रस के घटक

पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) में श्वसारी क्वाथ/श्वसारी प्रवाहि की भाँती ही उन घटकों का उपयोग किया जाता है जो मूल रूप से श्वसन तंत्र के विकारों को दूर करने वाली हैं और कफ्फ को शांत कर संक्रमण को दूर करती है। पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) में निम्न घटकों का उपयोग होता है। इन घटकों के बारे में सक्षिप्त परिचय आप लेख के निचे देख सकते हैं।

  • मुलेठी / यष्टि मधु (Mulethi) ग्‍लीसीर्रहीजा ग्लाब्र (Glycyrrhiza glabra)
  • लवंग /Cloves लौंग Syzygium aromaticum (loung)
  • दाल चीनी (Dal Chini) (Cinnamomum verum, या C. zeylanicum)
  • काकड़ा श्रृंगी Kakad Shringi)
  • रुदंती /रुद्रवंती (Rudanti)
  • सौंठ (Sounth) जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale)
  • मरीच / काली मिर्च -Piper nigrum (Marich)
  • पिप्पल छोटी (Pippl Choti)
  • अरकरा (Arkara) Spilanthes acmella var. oleracea C.B. Clarke, Syn-Acmellaoleracea (L.) R.K. Jansen (भारतीय अकरकरा)
  • अभ्रक भष्म (Abhrak Bhashm)
  • मुक्ताशुक्ति भस्म (Muktashukti Bhashma)
  • गोदंती भष्म (Godanti Bhashma)
  • कपर्दक भष्म (kapardak Bhashma)

Patanjali Swasari Ras Usages पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) उपयोग

पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) का सेवन निम्न विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है -
  • अस्थमा/दमा
  • खाँसी/कुक्कर खाँसी
  • गले में खरांश/गले का संक्रमण
  • स्वर भंग होने पर
  • फेफड़ों में कफ्फ जमा होने पर
  • धुम्रपान के कारण कफ्फ जमा होने पर फेफड़ों में दर्द
  • आम सर्दी झुकाम और बंद नाक में

श्वसन तंत्र के विकार

Patanjali Swasari Ras Effects (Gun Karma) पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) के गुण कर्म
पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) के निम्न प्रभाव होते हैं -
  • पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) के सेवन से सर्दी झुकाम, सर्दी झुकाम के कारण होने वाले सरदर्द और बंद नाक में लाभ मिलता है।
  • फेफड़ों की सुजन को दूर करता है और बेहतर स्वांस की आपूर्ति में सहायता करता है।
  • फेफड़ों में संचित पुराने कफ्फ को ढीला कर बाहर निकालने में मदद करता है। फेफड़ों में कफ्फ को जमने से रोकता है।
  • गले की खरांश को दूर करता है और गले की सुजन को दूर करता है।
  • स्वर भंग में भी इसका उपयोग श्रेष्ठ होता है।
  • अस्थमा के रोगियों के लिए भी यह दवा श्रेष्ठ रहती है।
  • निमोनिया रोग में भी यह दवा इस्तेमाल की जाती है।
  • स्वांस की नली में आई रुकावट को दूर कर सुजन को हटाता है।

पतंजलि पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) के कर्म (Roots of Swasaari RAS )

  • कफहर- यह कफ दूर करना
  • छेदन:-पुराने संचित/जमे हुए कफ को दूर करना
  • दीपन-भूख बढ़ाना
  • पित्तकर-पित्त बढ़ाना
  • रुचिकारक-स्वाद बढ़ाना
  • वातहर-वात दोष को दूर करना
  • श्लेष्महर-कफ को दूर करना

Patanjali Swasari Ras Benefits पतंजलि श्वासरि रसके फायदे /लाभ

यद्यपि पतंजली पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) का उपयोग अनेकों ओषधियों के योग के साथ कई विकारों के लिए किया जाता है लेकिन मूल रूप से इसका उपयोग श्वसन तंत्र के विकारों, कफ दोष को दूर करने में होता है। इसके घटकों की तासीर गर्म होती है और मूल रूप से कफ को दूर कर स्वशन तंत्र को दुरुस्त करते हैं।

Patanjali Swasari Ras Doses पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) का सेवन कैसे करें 

पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) का उपयोग करने से पूर्व आपको इस सबंध में वैद्य की राय अवश्य लेनी चाहिए। पतंजलि चिकित्सालय / पतंजली आयुर्वेदा स्टोर पर मौजूद वैद्य से आप इस सबंध में आवश्यक सलाह ले सकते हैं जो की निशुल्क है। यद्यपि यह एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसमे प्राकृतिक जड़ी बूटियों का उपयोग होता है लेकिन फिर भी अपनी मर्जी से इसका सेवन नहीं करना चाहिए। रोग के प्रकार, रोग की जटिलता, आयु, शरीर की तासीर अन्य दवाओं के योग आदि के कारण इसकी मात्रा और सेवन विधि एक जैसी नहीं होती है।

पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) को कहाँ से खरीदें

पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) को आप वैद्य की सलाह के उपरान्त पतंजली आयुर्वेद स्टोर्स से खरीद सकते हैं और आप इसे पतंजलि आयुर्वेद की अधिकृत वेब साईट से ऑनलाइन भी क्रय कर सकते हैं। वर्तमान में इसकी कीमत १० ग्राम रुपये १५ है। पतंजली आयुर्वेद की वेब साईट का लिंक निचे दिया गया है -

Patanjali Swasari Ras Precautions पतंजलि श्वासारि रस के सेवन में सावधानियां

  • गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इसके सेवन से पूर्व वैद्य की सलाह लेनी चाहिए।
  • छोटे बच्चों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • यदि पहले से किसी अन्य विकार की ओषधि चल रही हों तो भी इसका सेवन करने से पूर्व वैद्य की सलाह अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिए।
  • वैद्य की बताई गई निश्चित मात्रा से अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
पतंजलि आयुर्वेदा से प्राप्त पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) के विषय में कथन

Divya Swasari Ras is a time-tested remedy for common cold, chronic cough and phlegm accumulated in your chest. Divya Swasari Ras soothes throat irritation thus curing cough. It heals the cold by eliminating viruses and dislodges the accumulated phlegm thus curing the ailment from its roots. Prepared from natural extracts with a lot of care Divya Swasari Ras is Divya Pharmacy's offering to provide you lasting relief from common cold to serious asthmatic attack. Divya Swasari Ras heals and nourishes your respiratory system back to health. Discover the wholesome healing of Ayurveda with Divya Swasari Ras.

Patanjali Swasari Ras Ingredients benefits पतंजलि श्वासारि रस (Patanjali Shvasari Ras) के घटकों की सामान्य जानकारी

मुलेठी / यष्टि मधु (Mulethi) ग्‍लीसीर्रहीजा ग्लाब्र (Glycyrrhiza glabra)

मुलेठी क्या है ? मुलेठी क्वाथ के विषय में जानने से पहले जाहिर सी बात है की हमें मुलेठी को जान लेना चाहिए। औशधिय गुणों से भरपूर मुलेठी एक झाड़ीनुमा पौधा होता है जिसका वानस्पतिक नाम Glycyrrhiza glabra Linn ग्‍लीसीर्रहीजा ग्लाब्र, और इसका कुल - Fabaceae होता है जिसे प्राचीन समय से ही उपयोग में लिया जाता रहा है। इसको कई नामो से जाना जाता है यथा यष्टीमधु, यष्टीमधुक, मधुयष्टि, जलयष्टि, क्लीतिका, मधुक, स्थल्यष्टी आदि। अंग्रेजी में मुलेठी को लीकोरिस (Licorice) के नाम से भी पहचाना जाता है। पंजाब के इलाकों में इसे मीठी जड़ के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा भारत के अलावा अरब, ईरान, तुर्कीस्तान, अफगानिस्तान, ईराक, ग्रीक, चीन, मिस्र दक्षिणी रूस में अधिकता से पाया जाता है। 
 
पहले यह खाड़ी देशों से आयात किया जाता था लेकिन अब इसकी खेती भारत में भी की जाने लगी है। इसको पहचाने के लिए बताये तो इसके गुलाबी और जामुनी रंग के फूल होते हैं और इसके पत्ते एक दुसरे के पास (संयुक्त) और अंडाकार होते हैं। मुलेठी या मुलहटी पहाड़ी क्षेत्रों की माध्यम ऊँचाई के क्षेत्रों में अधिकता से पायी जाती है। इसका पौधा लगभग 6 फूट तक लम्बाई ले सकता है। इस पौधे की जो जड़े होती/ भूमिगत तना ही ओषधिय गुणों से भरपूर होता हैं। मुलेठी से हमें मुलेठी कैल्शियम, ग्लिसराइजिक एसिड, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक, प्रोटीन और वसा आदि प्राप्त होते हैं। मुख्यतः मुलेठी जी जड़ों को ही उपयोग में लिया जाता है। इसकी मांग को देखते हुए पंजाब के कई इलाकों में इसकी खेती की जाने लगी है।

पतंजलि मुलेठी क्वाथ के लाभ /फायदे : मुलेठी का आप कई प्रकार से सेवन कर सकते हैं यथा मुंह के विकारों के लिए सीधे ही मुलेठी के एक तुकडे को मुंह में रख कर चूंस सकते हैं। इसका चूर्ण भी उपयोग में ले सकते हैं और इसका काढ़ा बनाकर उपयोग में ले सकते हैं। मुलेठी के निम्न ओषधिय लाभ प्राप्त होते हैं।
  • गले की खरांस, सर्दी जुकाम और खांसी के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
  • मुलेठी गले, दाँतों और मसूड़ों के लिए लाभदायक होती है।
  • दमा रोगियों के लिए भी मुलेठी अत्यंत लाभदायी होती है।
  • वात और पित्त रोगों के लिए मुलेठी सर्वोत्तम मानी जाती है।
  • खून साफ़ करती है और त्वचा के संक्रमण को दूर करती है।
  • मुलेठी चूर्ण को दूध और शहद में मिलाकर लेने से कमोत्त्जना की बढ़ोत्तरी होती है।
  • मुलेठी की एक डंडी को मुंह में रखकर देर तक चूसते रहे इससे गले की खरांस और खांसी में लाभ मिलता है।
  • स्वांस से सबंधित रोगों में भी मुलेठी क्वाथ से लाभ मिलता है।
  • हल्दी के साथ मुलेठी चूर्ण को लेने से पेट के अल्सर में सुधार होता है।
  • पेट दर्द के लिए भी आप मुलेठी चूर्ण की फाकी ले सकते हैं जिससे पेट दर्द और एंठन में लाभ मिलता है।
  • स्वांस नली की सुजन के लिए भी यह श्रेष्ठ है।
  • एंटी बेक्टेरिअल होने के कारन यह पेट के कर्मी को समाप्त करती है और त्वचा के संक्रमण के लिए भी लाभदायी होती है।
  • खांसी या सुखी खांसी के लिए आप मुलेठी चूर्ण को शहद में मिलाकर दिन में दो बार चाटे तो लाभ मिलता है इसके साथ ही आप मुलेठी का एक टुकड़ा मुंह में भी रखे तो जल्दी आराम मिलता है।
  • यदि मुंह में जलन हो / इन्फेक्शन हो / छाले हो तो आप मुलेठी को सुपारी जितने आकार के टुकड़ों में काट लें और इनपर शहद लगाकर मुंह में रखे और इसे चूसे इससे लाभ मिलता है।
  • मुलेठी चूर्ण को नियमित रूप से दूध में लेने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
  • पीलिया, अल्सर, ब्रोंकाइटिस आदि विकारों में भी मुलेठी लाभदायी होती है।
  • अन्य दवाओं के योग से ये स्त्रियों के रोगों के लिए भी उत्तम होती है। इसके सेवन से सौन्दय भी बढ़ता है।
  • अपच, अफरा, पेचिश, हाइपर एसिडिटी आदि विकारों में भी मुलेठी के सेवन से लाभ मिलता है।
  • अल्सर के घावों को शीघ्र भरने वाले विभिन्न घटक ग्लाइकेसइड्स, लिक्विरीस्ट्रोसाइड्स, आइसोलिक्विरीस्ट्रोसाइड आदि तत्व भी मुलेठी में पाये जाते हैं।
  • मुलेठी वमननाशक व पिपासानाशक होती है।
  • मुलेठी अमाशय की अम्लता में कमी व क्षतिग्रस्त व्रणों में सुधार लाता है।
  • अम्लोतेजक पदार्थ खाने पर होने वाली पेट की जलन, दर्द आदि को चमत्कारिक रूप से ठीक करता है
  • मुलेठी के सेवन से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल दुरुस्त होता है। (सन्दर्भ)
  • कैंसर जैसी गंभीर बिमारियों में भी मुलेठी का सेवन लाभप्रद होता है (सन्दर्भ)
  • मधुमेह में मुलेठी का इस्तेमाल लाभकारी होता है। (सन्दर्भ)
  • लीवर को स्वस्थ रखने में भी मुलेठी का सेवन लाभकारी होता है। (सन्दर्भ)

लवंग /Cloves लौंग Syzygium aromaticum (loung)

लवंग (लौंग ) Lavang (Syzgium aromaticum) :लवंग या लौंग भी हमारी रसोई में उपलब्ध होती है और इसे खड़े मसालों के अलावा चाय आदि में प्रयोग किया जाता है। लवंग का अंग्रेजी में नाम क्लोवस (Cloves), जंजिबर रैड हेड (Zanzibar red head), क्लोव ट्री (Clove tree), Clove (क्लोव) होता है और लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum (Linn.) Merr & L. M. Perry (सिजीयम एरोमैटिकम) Syn-Eugenia caryophyllata Thunb., Caryophyllus aromaticus Linn. है। भारत में तमिलनाडु और केरल में लौंग बहुतयात से पैदा किया जाता है। लौंग के भी शीत रोगों में महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। गले का बैठना, गले की खरांस, कफ्फ खांसी आदि विकारों में लौंग का उपयोग हितकर होता है। शीत रोगों के अलावा लौंग के सेवन से भूख की वृद्धि, पाचन को दुरुस्त करना, पेट के कीड़ों को समाप्त करना आदि लाभ भी प्राप्त होते हैं। लौंग की तासीर बहुत गर्म होती है इसलिए इसका सेवन अधिक नहीं किया जाना चाहिए। लौंग के अन्य लाभ निम्न हैं।
  • लौंग के तेल से दांत के कीड़ों को दूर किया जाता है और साथ ही मसूड़ों की सूजन को कम करने में सहायक होता है।
  • लौंग के चूर्ण को पानी के साथ लेने से कफ्फ बाहर निकलता है और फेफड़ों में कफ के जमा होने के कारण आने वाली खांसी में आराम मिलता है।
  • लौंग के चूर्ण की गोली को मुंह में रखने से सांसों के बदबू दूर होती है और गले की खरांस भी ठीक होती है।
  • कुक्कर खांसी में भी लौंग के सेवन से लाभ मिलता है।
  • छाती से सबंधित रोगों में भी लौंग का सेवन लाभदायी होता है।
  • दाल चीनी (Dal Chini) (Cinnamomum verum, या C. zeylanicum)
  • दालचीनी Dalchini (Cinnamomum zeylanicum) : दालचीनी (Cinnamomum verum, या C. zeylanicum) एक छोटा सदाबहार पेड़ है, जो कि 10–15 मी (32.8–49.2 फीट) ऊंचा होता है, यह लौरेसिई (Lauraceae) परिवार का है। यह श्रीलंका एवं दक्षिण भारत में बहुतायत में मिलता है। इसकी छाल मसाले की तरह प्रयोग होती है। इसमें एक अलग ही सुगन्ध होती है, जो कि इसे गरम मसालों की श्रेणी में रखती है। दाल चीनी को अक्सर हम खड़े मसालों में उपयोग में लाते हैं। दालचीनी के कई औषधीय गुण भी होते हैं। दाल चीनी एक वृक्ष की छाल होती है जो तीखी महक छोड़ती है। दाल चीनी को अंग्रेजी में True Cinnamonसीलोन सिनामोन (Ceylon Cinnamon) के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो दाल चीनी के कई लाभ होते हैं लेकिन खांसी और कफ्फ को शांत करने, सर्दी जुकाम के लिए यह उत्तम मानी जाती है।

काकड़ा श्रृंगी Kakad Shringi)

कर्कटशृंगी या काकड़ श्रृंगी के गुणों के विषय में चरक, सुश्रुत आदि से वर्णन प्राप्त होता है। इसका वानस्पतिक नाम Pistacia chinensis subsp. integerrima (Stewart ex Brandis) Rech.f. (पिस्टेशिया चाइनेन्सिस उपजाति इंटेग्रिमा) Syn-Pistacia integerrima J.L. Stew. ex Brandis है। अंग्रेजी में इसको अंग्रेजी में Gall plant (गॉल प्लान्ट) के नाम से जाना जाता है। काकड़ा सिंगी स्वाद में कड़वा, तासीर में गर्म, गुरु, रूखा, कफ और वात को कम करने वाला, सर्दी-खांसी को दूर करने वाला होता है। काकडसिंगी कफ्फ को दूर करता है और फेफड़ों के संक्रमण को भी दुरुस्त करने में मदद करता है। अस्थमा विकार में भी इसका सेवन लाभकारी होता है।

रुदंती /रुद्रवंती (Rudanti)

रुदंती या रुद्रवंती रसायन और क्षयकृमिनाशक होता है। जहां यह शरीर को शक्ति देता है वहीँ अस्थमा/दमा को दूर करने में भी सहायक होता है। बलवर्धक के अतिरिक्त इसका मूल प्रभाव फेफड़ों पर होता है। श्वसन प्रणाली के संक्रमण को दूर करने में इसके प्रभाव अत्यंत ही लाभकारी होते हैं। रुदंती के सेवन से राजयक्ष्मा के जीवाणुओं पर रोक लगती है। रुदंती क्षयकृमिनाशक, रक्तपित्तघ्न. रसायन, कफहर, श्वासहर होती हैं। दमा अस्थमा, पुराना ज्वर, फेफड़ों के संक्रमण को दूर करने में इसका लाभ मिलता है। रुदंती के चूर्ण के सेवन से सामन्य सर्दी झुकाम में लाभ मिलता है। बार बार आने वाली छींके, बंद नाक, नजला आदि विकारों में इसके लाभ मिलते हैं। बलगम को दूर करने के लिए रुदंती बहुत ही उपयोगी ओषधि है, इसके चूर्ण के सेवन से कफ्फ बाहर निकलता है। श्वांस नली के संक्रमण को रुदंती चूर्ण के जरिये आसानी से दुरुस्त किया जा सकता है।

सौंठ (Sounth) जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale)

अदरक ( जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale ) को पूर्णतया पकने के बाद इसे सुखाकर सोंठ बनायी जाती है। ताजा अदरक को सुखाकर सौंठ बनायी जाती है जिसका पाउडर करके उपयोग में लिया जाता है। अदरक मूल रूप से इलायची और हल्दी के परिवार का ही सदस्य है। अदरक संस्कृत के एक शब्द " सृन्ग्वेरम" से आया है जिसका शाब्दिक अर्थ सींगों वाली जड़ है (Sanskrit word srngaveram, meaning “horn root,”) ऐसा माना जाता रहा है की अदरक का उपयोग आयुर्वेद और चीनी चिकित्सा पद्धति में 5000 साल से अधिक समय तक एक टॉनिक रूट के रूप में किया जाता रहा है। सौंठ का स्वाद तीखा होता है और यह महकदार होती है। अदरक गुण सौंठ के रूप में अधिक बढ़ जाते हैं। अदरक जिंजीबरेसी कुल का पौधा है। अदरक का उपयोग सामान्य रूप से हमारे रसोई में मसाले के रूप में किया जाता है।

चाय और सब्जी में इसका उपयोग सर्दियों ज्यादा किया जाता है। अदरक के यदि औषधीय गुणों की बात की जाय तो यह शरीर से गैस को कम करने में सहायता करता है, इसीलिए सौंठ का पानी पिने से गठिया आदि रोगों में लाभ मिलता है। सामान्य रूप से सौंठ का उपयोग करने से सर्दी खांसी में आराम मिलता है। अन्य ओषधियों के साथ इसका उपयोग करने से कई अन्य बिमारियों में भी लाभ मिलता है। नवीनतम शोध के अनुसार अदरक में एंटीऑक्सीडेंट्स के गुण पाए जाते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थ को बाहर निकालने में हमारी मदद करते हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में कैंसर जैसे रोग से भी लड़ने में सहयोगी हो सकते हैं।

पाचन तंत्र के विकार, जोड़ों के दर्द, पसलियों के दर्द, मांपेशियों में दर्द, सर्दी झुकाम आदि में सौंठ का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है। सौंठ के पानी के सेवन से वजन नियंत्रण होता है और साथ ही यूरिन इन्फेक्शन में भी राहत मिलती है। सौंठ से हाइपरटेंशन दूर होती है और हृदय सबंधी विकारों में भी लाभदायी होती है। करक्यूमिन और कैप्साइसिन जैसे एंटीऑक्सिडेंट के कारन सौंठ अधिक उपयोगी होता है। सौंठ गुण धर्म में उष्णवीर्य, कटु, तीक्ष्ण, अग्निदीपक, रुचिवर्द्धक पाचक, कब्जनिवारक तथा हृदय के लिए हितकारी होती है। सौंठ वातविकार, उदरवात, संधिशूल (जोड़ों का दर्द), सूजन आदि आदि विकारों में हितकारी होती है। सौंठ की तासीर कुछ गर्म होती है इसलिए विशेष रूप से सर्दियों में इसका सेवन लाभकारी होता है
सौंठ के प्रमुख फायदे :
  • सर्दी जुकाम में सौंठ का उपयोग बहुत ही लाभकारी होता है। सर्दियों में अक्सर नाक बहना, छींके आना आदि विकारों में सौंठ का उपयोग करने से तुरंत लाभ मिलता है। शोध के अनुसार बुखार, मलेरिया के बुखार आदि में सौंठ चूर्ण का उपयोग लाभ देता है (1)
  • सौंठ / अदरक में लिपिड लेवल को कम करने की क्षमता पाई गई है जिससे यह वजन कम करने में भी सहयोगी होती है। एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में भी सौंठ को पाया गया है। अदरक में लसिका स्तर को रोकने के बिना या बिलीरुबिन सांद्रता को प्रभावित किए बिना शरीर के वजन को कम करने की एक शानदार क्षमता है, जिससे पेरोक्सिसोमल कटैलस लेवल और एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। (2)
  • सौंठ के सेवन से पेट में पैदा होने वाली जलन को भी दूर करने में मदद मिलती है। पेट में गैस का बनाना, अफारा, कब्ज, अजीर्ण, खट्टी डकारों जैसे विकारों को दूर करने में भी सौंठ बहुत ही लाभकारी होती है। (3) मतली और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों में भी अदरक का चूर्ण लाभ पहुचाता है।
  • कई शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है की अदरक में एंटी ट्यूमर के गुण होते हैं और साथ ही यह एक प्रबल एंटीओक्सिडेंट भी होता है।
  • Premenstrual syndrome (PMS) मतली आना और सर में दर्द रहने जैसे विकारों में भी सौंठ का उपयोग लाभ पंहुचाता है। माइग्रेन में भी सौंठ का उपयोग हितकर सिद्ध हुआ है (4)
  • सौंठ का उपयोग छाती के दर्द में भी हितकर होता है। सौंठ जैसे मसाले एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं, और वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि वे ऊतक क्षति और रक्त शर्करा के उच्च स्तर और परिसंचारी लिपिड के कारण सूजन के प्रबल अवरोधक भी हैं। अदरक (Zingiber officinale Roscoe, Zingiberacae) एक औषधीय पौधा है जिसका व्यापक रूप से प्राचीन काल से ही चीनी, आयुर्वेदिक और तिब्बत-यूनानी हर्बल दवाओं में उपयोग किया जाता रहा है और यह गठिया, मोच शामिल हैं आदि विकारों में भी उपयोग में लिया जाता रहा है। अदरक में विभिन्न औषधीय गुण हैं। अदरक एक ऐसा यौगिक जो रक्त वाहिकाओं को आराम देन, रक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करने और शरीर दर्द से राहत देने के लिए उपयोगी है। (5)
  • सौंठ में एंटीइन्फ्लामेंटरीप्रॉपर्टीज होती हैं जो शरीर के विभिन्न भागों की सुजन को कम करती हैं और सुजन के कारण उत्पन्न दर्दों को दूर करती हैं। गठिया जैसे विकारों में भी सोंठ बहुत उपयोगी होती है। (6)
  • चयापचय संबंधी विकारों में भी अदरक बहुत ही उपयोगी होती है। (७)
  • क्रोनिक सरदर्द, माइग्रेन जैसे विकारों में भी सोंठ का उपयोग लाभकारी रहता है। शोध के अनुसार अदरक / सौंठ का सेवन करने से माइग्रेन जैसे विकारों में बहुत ही लाभ पंहुचता है। (८)
  • सौंठ में एंटी ओक्सिडेंट होते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थों / मुक्त कणों को बाहर निकालने में मदद करता है। सौंठ के सेवन से फेफड़े, यकृत, स्तन, पेट, कोलोरेक्टम, गर्भाशय ग्रीवा और प्रोस्टेट कैंसर आदि विकारों की रोकथाम की जा सकती है। (9)
  • पाचन सबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी सौंठ बहुत ही लाभकारी होती है। अजीर्ण, खट्टी डकारें, मतली आना आदि विकारों में भी सौंठ लाभकारी होती है। क्रोनिक कब्ज को दूर करने के लिए भी सौंठ का उपयोग हितकारी होता है। (10)
  • अदरक से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए भी यह बेहतर होती है।अदरक में प्रयाप्त एंटी ओक्सिदेंट्स, एंटी इन्फ्लामेंटरी प्रोपर्टीज होती हैं।
  • अदरक में अपक्षयी विकारों (गठिया ), पाचन स्वास्थ्य (अपच, कब्ज और अल्सर), हृदय संबंधी विकार (एथेरोस्क्लेरोसिस और उच्च रक्तचाप), उल्टी, मधुमेह मेलेटस और कैंसर सहित कई बीमारियों के इलाज की अद्भुद क्षमता है। (11)
  • अदरक में पाए जाने वाले एंटी इन्फ्लामेंटरी गुणों के कारण यह दांत दर्द में भी बहुत ही उपयोगी हो सकती है। (12)

मरीच / काली मिर्च -Piper nigrum (Marich) 

काली मिर्च : कालीमिर्च का वानस्पतिक नाम पाइपर निग्राम (Piper nigrum) है। काली मिर्च के कई औषधीय गुण हैं। काली मिर्च मैंगनीज, लोहा, जस्‍ता, कैल्शियम, पोटेशियम, विटामिन ए, विटामिन के, विटामिन सी, फाइबर और कई अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं । इसका प्रमुख गुण जो गैस हर चूर्ण में इस्तेमाल किया जाता है वह है की काली मिर्च गैस और एसिडिटी को समाप्त करती है और पाचन तंत्र सुधरता है। कालीमिर्च के सेवन से हमारे शरीर में हाइड्रोक्‍लोरिक एसिड का स्राव बढ़ जाता है और पाचन में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त ये पेशाब के साथ विषाक्त प्रदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में सहयोगी होती है। कालीमिर्च में विटामिन सी, विटामिन ए, फ्लेवोनॉयड्स, कारोटेन्स और अन्य एंटी -ऑक्सीडेंट होता है, जिससे महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है।

काली मिर्च के प्रमुख फायदे :-
  • काली मिर्च शरीर में पोषण को बढ़ावा देती है। काली मिर्च में निहित पिपेरीने, विटामिन ए और विटामिन सी, सेलेनियम, बीटा कैरोटीन जैसे पोषक तत्व होते हैं।
  • काली मिर्च पाचन तंत्र के सुधार में सहायता करता है।
  • काली मिर्च के सेवन से भूख जाग्रत होती है।
  • सर्दी खांसी में काली मिर्च उपयोगी है।
  • शरीर में जोड़ों के दर्द में काली मिर्च लाभदाई होती है।
  • काली मिर्च गर्म तासीर की होती है जो कफ्फ निसारक होती है।
  • काली मिर्च शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के लिए बेहतर विकल्प है। यह शरीर से विषाक्त कणों को बाहर निकालने में मदद करती है।

पिप्पल छोटी (Pippl Choti) छोटी पिप्पल Chhoti pipal (Piper longum)

छोटी पिप्पल अक्सर खड़े मासालों में हम उपयोग में लाते हैं, जिसके कई चिकित्सीय लाभ भी होते हैं। यह भी एक आयुर्वेदिक हर्ब है जिसकी लता नुमा पौधा धरती पर फैलता है और सुगन्धित भी होता है। यह दो प्रकार का होता है छोटी पिप्पल और बड़ी पिप्पल। छोटी पिप्पल का उपयोग सर्दी खांसी, जुकाम और कफ को दूर करने के लिए किया जाता है। गले की खरांस, गले का बैठना आदि रोगों में भी पिप्पल लाभदायी होती है। अक्सर ही घर पर इसके चूर्ण को सर्दिओं में शहद के साथ दिया जाता है जिससे शीत रोगों में लाभ मिलता है।  
 
अरकरा (Arkara) Spilanthes acmella var. oleracea C.B. Clarke, Syn-Acmellaoleracea (L.) R.K. Jansen (भारतीय अकरकरा) Akarkara
आकारकरभ, आकल्लक; अकरकरा का वानास्पतिक नाम Anacyclus pyrethrum (L.) Lag. (ऐनासाइक्लस पाइरेथम) Syn-Anacyclus officinarum Hayne होता है। अकरकरा Asteraceae (ऐस्टरेसी) कुल का होता है। अकरकरा को अंग्रेजी में Pellitory Root (पेल्लीटोरी रूट) कहते हैं। इसका उपयोग आयुर्वेद में मुख्य रूप से दांतों से सबंधित विकार यथा दांतों के दर्द, दांतों से खून का आना आदि विकारों के इलाज के लिए किया जाता है। अकरकरा को पाउडर और चूर्ण रूप में प्रयोग में लाया जाता है। अकरकरा रस में कड़वा; गर्म; रूखा, वात पित्त को कम करने वाला, लालास्राववर्धक, उत्तेजक, कफ कम करने वाला, पाचक, पेट दर्द तथा ज्वरनाशक होती है। इसका फूल कड़वा, शरीर की गर्मी कम करने में सहायक और वेदना हरने वाला होता है। दाँतों के लिए अक्सर इसकी मूल को चबाया जाता है।  
References/सन्दर्भ
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
+

1 टिप्पणी

  1. Ye bahut hee upyogi hai swasari pravahi tanik ko peene se hum sabhi corona positive the isse bahut labh mila....