तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी साईं भजन
तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी साईं भजन
तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी,
इंतजार के आने के आए नहीं,
तेरी राहों में पलकें बिछी रह गईं,
तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी।
साईं तेरे बिना प्राण तन में रहे,
ऐसे पापी हैं कि अब तक ये निकले नहीं,
आया तूफान जो जो संभला नहीं,
राह मझधार में ही पड़ी रह गई,
तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी।
मैंने सोचा कि चिट्ठी लिखूँ साईं को,
ऐसा न पहुँचे पर कागज नहीं,
जब दिखा आँखों की शाही का दरिया भरा,
पर कलम मेरी फिर भी रुकी रह गई थी,
तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी।
प्रीत साईं की मन में वसे है मेरे,
थोड़ा हम को अकेले ना आए रहम,
जो कर्मों से शिर्डी से आए नहीं,
आग मन में लगी की लगी रह गई,
तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी।
इंतजार के आने के आए नहीं,
तेरी राहों में पलकें बिछी रह गईं,
तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी।
साईं तेरे बिना प्राण तन में रहे,
ऐसे पापी हैं कि अब तक ये निकले नहीं,
आया तूफान जो जो संभला नहीं,
राह मझधार में ही पड़ी रह गई,
तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी।
मैंने सोचा कि चिट्ठी लिखूँ साईं को,
ऐसा न पहुँचे पर कागज नहीं,
जब दिखा आँखों की शाही का दरिया भरा,
पर कलम मेरी फिर भी रुकी रह गई थी,
तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी।
प्रीत साईं की मन में वसे है मेरे,
थोड़ा हम को अकेले ना आए रहम,
जो कर्मों से शिर्डी से आए नहीं,
आग मन में लगी की लगी रह गई,
तेरे कारण मैं साईं जोगन बनी।
Tere Karan Mai Sai Jogan Bani | साई बाब स्पेशल भजन | Brij Mohan Naagar | Devotional #JMD
ऐसे ही अन्य भजनों के लिए आप होम पेज / गायक कलाकार के अनुसार भजनों को ढूंढें.
पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।
About Bhajan -
ऐसे ही अन्य भजनों के लिए आप होम पेज / गायक कलाकार के अनुसार भजनों को ढूंढें.
पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Album Name: Sai Sandesa
Song Name: Tere Karan Mai Sai Jogan Bani
Singer Name: Brij Mohan Naagar
Song Name: Tere Karan Mai Sai Jogan Bani
Singer Name: Brij Mohan Naagar
जब किसी के हृदय में अपने आराध्य के प्रति गहरा प्रेम और विरह का भाव जाग जाता है, तो उसका समर्पण सम्पूर्ण और निश्छल हो जाता है। ऐसी अवस्था में साधक अपने जीवन की हर सांस, हर भावना और हर कार्य को अपने ईष्ट के नाम कर देता है। प्रतीक्षा और अधूरी आशा का यह मार्ग कभी-कभी पीड़ादायक अवश्य होता है, लेकिन यही विरह साधक को भीतर से परिष्कृत करता है। जब मन में आराध्य के बिना जीवन अधूरा लगे, और उसके मिलन की चाह में हर क्षण बेचैनी बनी रहे, तो यह विरह-भाव ही साधना की सबसे ऊँची अवस्था बन जाता है। यह प्रेम, यह तड़प, साधक को अपने भीतर झाँकने, स्वयं को समझने और अपने दोषों को स्वीकार करने की शक्ति देती है।
यह भजन भी देखिये
|
Author - Saroj Jangir
इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें। |
