राजस्थानी पारिभाषिक शब्दावली
- अंढ़ौ :- दिन का तीसरा पहर, दिवस का तीसरा भाग। \चरवौ (चरौ/चरी) :- ताँबे या पीतल का एक बड़ा जलपात्र चरवो कहलाता है वहीँ पर छोटे ताम्बे और पीतल के पात्र को चरी कहते हैं।
- वीरा/बीरा : भाई।
- ओरणी : बिजाई के समय हल के साथ बीज डालने के लिए ओरनी लगाईं जाती है।
- ओरण : देवी देवता या गोचर के नाम से दी जाने वाली भूमि जिसका उपयोग बाद में सिर्फ गाय चराने के लिए किया जा सकता है, इसमें से लकड़ी भी नहीं काटी जाती है।
- भावज/भोजाई : भाभी, भाई की पत्नी।
- मुगधणा : विनायक स्थापना के पश्चात भोजन पकाने के लिए लाइ जाने वाली लकड़ियां।
- सीरावने/सीरावना/सिरावणों : किसानों का "कलेवा" सुबह का नाश्ता।
- छूचक (चूचक) :- लड़की के पहले प्रसव उपरान्त दिया जाने वाला सामान यथा वस्त्र आदि।
- भंवर/भंवर सा : बड़ा लड़का।
- भवरी- बड़ी लड़की।
- डांगरा- पशु। इसे डांगर भी कहा जाता है। शेखावटी क्षेत्र में इसे ही ढांढा कहते हैं।
- चावर :- जुताई के बाद भूमि को समतल करने के लिए फेरा जाने वाला मोटा पाट।
ढोर- भेड़ बकरी, पशु, जानवर। - बींद- पती/दुल्हा, इसे बोलचाल की भाषा में बीन कहते हैं।
- बींदणी- दुल्हन, बहु को राजस्थानी भाषा में बीनणी /बींदणी कहते हैं।
- बिहांणा :- शादी विवाह का एक मांगलिक गीत जिसे प्रातः काल में गाया जाता है।
- तावडौ :- धुप, तेज धुप। इसे तावडा, तावडियो भी कहा जाता है।
- छोरा-छोरी- लड़का-लड़की
- किराड़िया :- खेतों में भंडारण के लिए बनाए गए स्थान।
- जंकड़ी :-पीर ओलिया की शान में गाये जाने वाला गान।
- चावर :- खेतों की जुताई के उपरान्त मिटटी के बड़े डग्गल को तोड़ने और खेत को समतल करने के लिए लकड़ी का एक मोटा और भारी टुकड़ा, इसे ही चावर कहते हैं।
- लालजी : देवर, पति का छोटा भाई।
- आथ :- किसानी कार्य में उपयोग में आने उपकरण यथा जेली, गंडासी आदि कार्य के लिए सुथार और लुहार आदि से उपकरण बनवाये जाते हैं। वर्ष भर किसान के उपकरणों को सुथार और लुहार के द्वारा सुधारा जाता है और नया भी बनाया जाता है। फसल की कटाई के उपरान्त इनसे अनाज में से कुछ भाग दिया जाता है जिसे आथ कहते हैं।
- लाडो : प्यारी बेटी, बिटिया।
उगाळौ :- पशु पहले घास फूस खा लेते हैं और कुछ समय के बाद उसे पुनः मुंह में लाकर उसे अच्छे से चबाकर खाते हैं जिसे उगाली/उगाळौ कहते हैं।
घट्टी (गट्टी) :- पत्थर की हाथों से चलाये जाने वाली चक्की, हाथ की चक्की।
गेलड़ : जब स्त्री दूसरा विवाह कर लेती है तो पहले पति की संतान जो उसके साथ होती है उसे गेलड कहा जाता है।
टीमक :- शिकार में काम आने वाली कावड, विशेषकर खरगोश के शिकार में काम में ली जाने वाली कावड।
लाडलो : प्रिय, चहेता।
थूली :- गेहूं का मोटा दलीया।
गीगलो : प्रिय बालक, लाडला।
गीगली : प्यारी और लाडली लड़की।
थूथौ :- ऐसा बकरा जिसके कान छोटे हों।
बावनो/बावनयो: ऊंचाई में छोटा, नाटा कद वाला।
अड़ोई : अड़ाई में पशुओं को चरवाहे चराते हैं, चरवाहों को दिया जाने वाला भोजन ही अड़ोई कहलाता है।
पछेरी : बाट जो पांच शेर वजनी होता है।
कसार/कसारी : आटे को भून कर उसमें चीनी/शक्कर मिला कर बनाया जाने वाला व्यंजन।
अंकायत :- दत्तक पुत्र।
अंगीलौ : रस्सी को बनाते समय उसे गूंथने के काम में ली जाने वाली एक लकड़ी का उपकरण।
बावनी : लम्बाई में छोटी स्त्री, नाटी स्त्री।
घनेड़ो : भांजा।
घनेड़ी: भांजी। आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं