पतंजलि पंचकोल चूर्ण के फायदे और घटक Patanjali Panchkol Churna Benefits Composition Usages

What is Patanjali Panchkol Churna पतंजलि पंचकोल चूर्ण क्या है ?

पंचकोल चूर्ण अत्यंत ही लाभकारी आयुर्वेदिक ओषधि है जो त्रिदोष नाशक होती है। यह पांच घटकद्रव्यों से मिलकर बनाया जाता है जो समान मात्रा में उपयोग में लिए जाते हैं और इसी कारण से इसे पंचकोल चूर्ण कहा जाता है। पंचकोल चूर्ण दीपन, पाचन रुचिकर होता है। 

पतंजलि पंचकोल चूर्ण के फायदे और घटक Patanjali Panchkol Churna Benefits Composition Usages

पतंजली पंचकोल चूर्ण की तासीर : पतंजलि पंचकोल चूर्ण की तासीर अत्यंत ही गर्म होती है। विशेष है की इस चूर्ण का सेवन करने से पूर्व आपको वैद्य की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यदि आपके शरीर की तासीर पहले से ही गर्म है तो इसके पथ्य / सेवन विधि में परिवर्तन संभव है।

Composition of Patanjali Panchkol Churna पतंजली पंचकोल चूर्ण के घटक

  • पिप्पली (पिप्पल)
  • पिप्पली मूल
  • चव्य
  • चित्रक (चीता)
  • सौंठ

पतंजली पंचकोल चूर्ण के लाभ/फायदे Benefits of Patanjali Panchkol Churna

  • पंचकोल चूर्ण भूख जाग्रत करने वाला, और पाचन तंत्र को सुधारने वाला होता है। उदर रोगों के लिए भी पंचकोल लाभकारी ओषधि है।
  • पंचकोल चूर्ण के सेवन से आफरा, गैस और कब्ज में सुधार होता है।
  • कफ्फ को दूर कर स्वांस सबंधी विकारों में लाभदायक।
  • पंचकोल त्रिदोष नाशक होता है।
  • पंचकोल चूर्ण लीवर के लिए भी लाभदाई होता है।
  • प्लीहावृद्धि, गुल्म, शूल, कफजन्य विकारों में भी पंचकोल लाभदाई होता है।

पतंजली पंचकोल चूर्ण का सेवन कैसे करे Doses of Panjali Panchkol Churna

यद्यपि यह एक आयुर्वेदिक चूर्ण है, फिर भी इसके सेवन से पूर्व इसकी मात्रा और सेवन विधि के लिए वैद्य से संपर्क करें। पतंजली आयुर्वेद स्टोर्स/चिकित्सालय में आपको इससे सबंधित जानकारी निशुल्क मिलती है।
पतंजली पंचकोल चूर्ण का मूल्य Price of Patanjali Panchkol Churna पतंजली पंचकोल चूर्ण के 50 Gram का मूल्य रूपए Rs 37 है। नवीनतम जानकारी के लिए आप पतंजली आयुर्वेद की अधिकृत वेबसाईट पर विजिट करें।

पतंजली पंचकोल चूर्ण को आप पतंजली आयुर्वेद के स्टोर्स/पतंजली चिकित्सालय से वैद्य की सलाह के उपरान्त खरीद सकते हैं। इसे ऑनलाइन क्रय करने के लिए आप पतंजलि आयुर्वेद की अधिकृत वेबसाइट पर विजिट करें जिसका लिंक निचे दिया गया है।
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पिप्पली : पीपली / पीपलामूल या बड़ी पेपर को Piper longum(पाइपर लोंगम)के नाम से भी जाना जाता है। पिप्पली / पिप्पल का वानस्पतिक नाम पाइपर लांगम (Piper longum Linn.) है और यह पाइपरेसी (Piperaceae) कुल से सबंधित है। संस्कृत में इसे कई नाम दिए गए हैं यथा पिप्पली, मागधी, कृष्णा, वैदही, चपला, कणा, ऊषण, शौण्डी, कोला, तीक्ष्णतण्डुला, चञ्चला, कोल्या, उष्णा, तिक्त, तण्डुला, मगधा, ऊषणा आदि। पिप्पल या पिप्पली की एक लता होती है जिसके बरसात की ऋतू में इसके पुष्प लगते हैं और शरद ऋतु में इसके फल लगते हैं। पिप्पल लता और इसके फल सुगन्धित होते हैं। इसके फल बाहर से खुरदुरे होते हैं और स्वाद में तीखे होते हैं। आयुर्वेद में इसको अनेकों रोगों के उपचार हेतु प्रयोग में लिया जाता है। अनिंद्रा, चोट दर्द, दांत दर्द, मोटापा कम करने के लिए, पेट की समस्याओं के लिए इसका उपयोग होता है। पिप्पली की तासीर गर्म होती है, इसलिए गर्मियों में इसका उपयोग ज्यादा नहीं करना चाहिए।

पिप्पल के मुख्य फायदे
  • पिप्पली पाचन में सुधार करती है और भूख को जाग्रत करती है।
  • पिप्पली लीवर को स्वस्थ रखने में मदद करती है।
  • पिप्पली चूर्ण के सेवन से सर दर्द में लाभ मिलता है।
  • नमक और हल्दी के साथ पिप्पली के चूर्ण से दांतों के दर्द में लाभ मिलता है।
  • पिप्पली चूर्ण को शहद के साथ लेने पर मोटापे में लाभ मिलता है, माटापा दूर होता है।
  • सर्दी झुकाम आदि विकारों में भी पिप्पली चूर्ण का लाभ मिलता है।
  • पिप्पली की तासीर गर्म होती है और यह कफ्फ को दूर करता है।
  • वात जनित विकारों में पिप्पली के चूर्ण से लाभ मिलता है।
  • दमा और सांस फूलना जैसे विकारों में भी पिप्पली चूर्ण के सेवन से लाभ मिलता है।
  • पिप्पली मूल, पिप्पला मूल पिप्पली की जड़ होती है, अतः इनके गुण भी समान ही होते हैं। पिप्पली की तुलना में पीपला जड गर्म, रुक्ष और पित्त कारक होती है।

चव्य Piper retrofractum Vahl (पाइपर रेट्रोप्रैंक्टम)

चव्य जिसे हम चाब, चाभ, चब आदि नामों से जानते हैं, यह एक लता पादप होती है जिसकी लता/तना मोटा होता है और पत्ते चौड़े पान के समान होते हैं। चव्य का वानस्पतिक नाम Piper retrofractum Vahl (पाइपर रेट्रोप्रैंक्टम) Syn-Piper chaba Hunter है और यह Piperaceae (पाइपरेसी) कुल से सम्बन्ध रखता है। चव्य गुण कर्म और प्रभाव में चव्य कटु, उष्ण; लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण होती है। चव्य उत्तेजक, वातानुलोमक, कृमिरोधी और कफ्फ दूर करने वाली होती है। चव्य की जड का उपयोग अधिकतर किया जाता है जिसका क्वाथ बनाया जाता है। इसकी जड़ों का क्वाथ पाचन को सुधारता है और कब्ज को दूर करता है। सर्दी खाँसी, साँसों के विकार, कब्ज, मूत्र विकार, पेट का फूलना, आफारा, गैस, बदहजमी जैसे विकारों में भी लाभ मिलता है। 

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चित्रक क्या है : चित्रक का वानस्पतिक नाम (plumbago zeylanica) -(प्लम्बेगो जेलेनिका) होता है। यह एक झाड़ीदार हर्ब होती है जिसके पत्ते ज्यादा लम्बे नहीं होते हैं और इसके फूल सफ़ेद, लाल और नीले होते हैं। यह हर्ब घास की तरह स्वंय उग जाती है और जहाँ खेती नहीं की जाती है, पायी जाती है। आयुर्वेदा में चित्रक के बारे में विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। चित्रक कटु, अग्निवर्धक, पाचन, हलका, रूखा, गर्म तथा गृहणी की शक्ति को बढ़ाने वाला होता है। इसे हिंदी में अनेकों नामों से जाना जाता है यथा चीत, चीता, चित्रक, चित्ता, चितरक, चितउर आदि। चित्रक का गुण लघु -रुक्ष , तीक्ष्ण, रस -कटु वीर्य -उष्ण विपाक-कटु होता है। चित्रक की मुख्यतया तीन प्रजाति होती हैं सफ़ेद, नील और लाल चित्रक। चित्रक के सेवन से कब्ज, गैस, अजीर्ण, आफरा, कच्चा मल, सर दर्द, दाँतों के रोग, गले की खरांस, मोटापा, बवासीर, प्रसव, गठिया रोगों में चित्रक से बनी ओषधियों से लाभ प्राप्त होता है। यह त्रिदोष नाशक होता है। पाचन को बढ़ाने, भूख को जाग्रत करने पेट के कीड़े समाप्त करने के लिए इसका उपयोग अन्य ओषधियों के मेल से किया जाता है। प्रधान रूप से इसकी मूल का उपयोग किया जाता है। आमवात, संधिषूल में चित्रक से सिद्ध तैल के प्रयोग मालिश के रूप में करने से लाभ प्राप्त होता है । इसके अतिरिक्त चित्रक का प्रयोग यकृत विकार, पाण्डु, सफेद दाग आदि रोग में लाभप्रद है। चित्रक की तासीर गर्म होती है। वैद्य के परामर्श के अतिरिक्त इसका सेवन हानिकारक हो सकता है।

चित्रक के लाभ : चित्रक को कई अन्य हर्ब के साथ मिलाकर आयुर्वेदि दवा बनायी जाती हैं। चित्रक के गुणों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।
  • बवासीर रोग में चित्रक के लाभ लेने के लिए इसकी छाल के चूर्ण को छाछ के साथ लेने से लाभ मिलता है।
  • सफेद चित्रक के 2 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से नाक से खून आने (नकसीर) में लाभ मिलता। है इसके चूर्ण का लेप करने से गठिया रोग में आराम मिलता है।
  • यह संग्रहणी, कोढ़, सूजन, बवासीर, कृमि (आंतों के कीडे़), खांसी और गैस को समाप्त करता है।
  • इसके जड़ का चूर्ण सिरका व दूध के साथ मिला कर लेप करने से चर्म रोगों में लाभ मिलता है।
  • यह त्रिदोष नाशक होता है और वात, कफ और पित्त को शांत करता है।
  • चित्रक के सेवन से खाँसी, कष्टसाध्य क्षय रोग, बैक्टीरिया और गांठों के रोगों में आराम मिलता है । वैद्य की सलाह से चित्रकादि लेह को सुबह और शाम सेवन करने से खाँसी, दम फूलना, हृदय रोग में लाभ होता है।
  • यह आमपाचन है तथा आंतों से मल को निकालकर बाद में स्तम्भन करता है।
  • इसकी जड़ की छाल का काढ़ा प्रतिदिन प्रयोग करने से मधुमेह रोग में लाभ मिलता है।
  • चित्रक के सेवन से स्तनों की शुद्धि होती है और रक्तशोधक होता है।
  • नीले चित्रक की जड़ के चूर्ण को नाक से लेने से सिर दर्द में लाभ होता है।
  • यह कफ नाशक होता है और शरीर में जमा कफ को बाहर निकलता है इसके अतिरिक्त यह ज्वर समाप्त करता है।
  • नीले चित्रक की जड़ तथा बीज के चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को दाँतों पर मलें। ऐसा करने से पायरिया रोग में लांघ मिलता है और दांतों का क्षय नहीं होता है।
  • चित्रक, अजमोदा, हल्दी, आंवला, यवक्षार को बराबर मात्रा में चूर्ण बना कर इसे चाटने से गले की खरांस दूर होती है।
  • पाचन को सुधारने के लिए सैन्धव लवण, हरीतकी, पिप्पली तथा चित्रक को सामान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। चुटकी भर चूर्ण को चाटने से भूख बढ़ती है और भोजन पचने में भी सहायता मिलती है।
  • चित्रक के क्वाथ से पुराने कब्ज में सुधार होता है।
  • प्रसव के दौरान 10 ग्राम चित्रक (chitraka) की जड़ के चूर्ण में दो चम्मच मधु मिलाकरचाटने से प्रसव पीड़ा कम होती है।
  • वात रोगों को समाप्त करने के लिए चित्रक की जड़, इन्द्रजौ, कुटकी, अतीस और हरड़ की समान मात्रा लेकर इसका चूर्ण बना लें। सुबह और शाम ३ ग्राम चूर्ण के सेवन से सभी वातजनित व्याधियां शांत होती हैं।
  • इसके मूल का चूर्ण एक दो ग्राम दिन में तीन बार प्रयोग करने से दस्त और अतिसार में लाभ मिलता है।
  • इसकी जड़ का चूर्ण घी, शहद, दूध या पानी के साथ प्रतिदिन सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
  • यह गैस की समस्या , पेट में आने वाली आंव और पेट को साफ करने में उत्तम होती है।
  • चित्रक की कितनी मात्रा लेनी चाहिए : सामान्य रूप में इसकी ३ ग्राम की मात्रा ली जा सकती है। इस विषय पर वैद्य से सलाह लेवे।

क्या चित्रक की अधिक मात्रा हानिकारक होती है

हाँ, चित्रक को वैद्य की सलाह के उपरांत ही लिया जाना चाहिए। इसका अधिक मात्रा में सेवन हानिकारक होता है।

सोंठ (Zingiber officinale Roscoe, Zingiberacae)

अदरक ( जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale ) को पूर्णतया पकने के बाद इसे सुखाकर सोंठ बनायी जाती है। ताजा अदरक को सुखाकर सौंठ बनायी जाती है जिसका पाउडर करके उपयोग में लिया जाता है। अदरक मूल रूप से इलायची और हल्दी के परिवार का ही सदस्य है। अदरक संस्कृत के एक शब्द " सृन्ग्वेरम" से आया है जिसका शाब्दिक अर्थ सींगों वाली जड़ है (Sanskrit word srngaveram, meaning “horn root,”) ऐसा माना जाता रहा है की अदरक का उपयोग आयुर्वेद और चीनी चिकित्सा पद्धति में 5000 साल से अधिक समय तक एक टॉनिक रूट के रूप में किया जाता रहा है। सौंठ का स्वाद तीखा होता है और यह महकदार होती है। अदरक गुण सौंठ के रूप में अधिक बढ़ जाते हैं। अदरक जिंजीबरेसी कुल का पौधा है। अदरक का उपयोग सामान्य रूप से हमारे रसोई में मसाले के रूप में किया जाता है। चाय और सब्जी में इसका उपयोग सर्दियों ज्यादा किया जाता है। अदरक के यदि औषधीय गुणों की बात की जाय तो यह शरीर से गैस को कम करने में सहायता करता है, इसीलिए सौंठ का पानी पिने से गठिया आदि रोगों में लाभ मिलता है।

सामान्य रूप से सौंठ का उपयोग करने से सर्दी खांसी में आराम मिलता है। अन्य ओषधियों के साथ इसका उपयोग करने से कई अन्य बिमारियों में भी लाभ मिलता है। नवीनतम शोध के अनुसार अदरक में एंटीऑक्सीडेंट्स के गुण पाए जाते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थ को बाहर निकालने में हमारी मदद करते हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में कैंसर जैसे रोग से भी लड़ने में सहयोगी हो सकते हैं। पाचन तंत्र के विकार, जोड़ों के दर्द, पसलियों के दर्द, मांपेशियों में दर्द, सर्दी झुकाम आदि में सौंठ का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है। सौंठ के पानी के सेवन से वजन नियंत्रण होता है और साथ ही यूरिन इन्फेक्शन में भी राहत मिलती है। सौंठ से हाइपरटेंशन दूर होती है और हृदय सबंधी विकारों में भी लाभदायी होती है। करक्यूमिन और कैप्साइसिन जैसे एंटीऑक्सिडेंट के कारन सौंठ अधिक उपयोगी होता है। सौंठ गुण धर्म में उष्णवीर्य, कटु, तीक्ष्ण, अग्निदीपक, रुचिवर्द्धक पाचक, कब्जनिवारक तथा हृदय के लिए हितकारी होती है। सौंठ वातविकार, उदरवात, संधिशूल (जोड़ों का दर्द), सूजन आदि आदि विकारों में हितकारी होती है। सौंठ की तासीर कुछ गर्म होती है इसलिए विशेष रूप से सर्दियों में इसका सेवन लाभकारी होता है

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सौंठ के प्रमुख फायदे :
  • सर्दी जुकाम में सौंठ का उपयोग बहुत ही लाभकारी होता है। सर्दियों में अक्सर नाक बहना, छींके आना आदि विकारों में सौंठ का उपयोग करने से तुरंत लाभ मिलता है। शोध के अनुसार बुखार, मलेरिया के बुखार आदि में सौंठ चूर्ण का उपयोग लाभ देता है (1)
  • सौंठ / अदरक में लिपिड लेवल को कम करने की क्षमता पाई गई है जिससे यह वजन कम करने में भी सहयोगी होती है। एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में भी सौंठ को पाया गया है। अदरक में लसिका स्तर को रोकने के बिना या बिलीरुबिन सांद्रता को प्रभावित किए बिना शरीर के वजन को कम करने की एक शानदार क्षमता है, जिससे पेरोक्सिसोमल कटैलस लेवल और एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। (2)
  • सौंठ के सेवन से पेट में पैदा होने वाली जलन को भी दूर करने में मदद मिलती है। पेट में गैस का बनाना, अफारा, कब्ज, अजीर्ण, खट्टी डकारों जैसे विकारों को दूर करने में भी सौंठ बहुत ही लाभकारी होती है। (3) मतली और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों में भी अदरक का चूर्ण लाभ पहुचाता है।
  • कई शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है की अदरक में एंटी ट्यूमर के गुण होते हैं और साथ ही यह एक प्रबल एंटीओक्सिडेंट भी होता है।
  • Premenstrual syndrome (PMS) मतली आना और सर में दर्द रहने जैसे विकारों में भी सौंठ का उपयोग लाभ पंहुचाता है। माइग्रेन में भी सौंठ का उपयोग हितकर सिद्ध हुआ है (4)
  • सौंठ का उपयोग छाती के दर्द में भी हितकर होता है। सौंठ जैसे मसाले एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं, और वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि वे ऊतक क्षति और रक्त शर्करा के उच्च स्तर और परिसंचारी लिपिड के कारण सूजन के प्रबल अवरोधक भी हैं। अदरक (Zingiber officinale Roscoe, Zingiberacae) एक औषधीय पौधा है जिसका व्यापक रूप से प्राचीन काल से ही चीनी, आयुर्वेदिक और तिब्बत-यूनानी हर्बल दवाओं में उपयोग किया जाता रहा है और यह गठिया, मोच शामिल हैं आदि विकारों में भी उपयोग में लिया जाता रहा है। अदरक में विभिन्न औषधीय गुण हैं। अदरक एक ऐसा यौगिक जो रक्त वाहिकाओं को आराम देन, रक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करने और शरीर दर्द से राहत देने के लिए उपयोगी है। (5)
  • सौंठ में एंटीइन्फ्लामेंटरीप्रॉपर्टीज होती हैं जो शरीर के विभिन्न भागों की सुजन को कम करती हैं और सुजन के कारण उत्पन्न दर्दों को दूर करती हैं। गठिया जैसे विकारों में भी सोंठ बहुत उपयोगी होती है। (6)
  • चयापचय संबंधी विकारों में भी अदरक बहुत ही उपयोगी होती है। (७)
  • क्रोनिक सरदर्द, माइग्रेन जैसे विकारों में भी सोंठ का उपयोग लाभकारी रहता है। शोध के अनुसार अदरक / सौंठ का सेवन करने से माइग्रेन जैसे विकारों में बहुत ही लाभ पंहुचता है। (८)
  • सौंठ में एंटी ओक्सिडेंट होते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थों / मुक्त कणों को बाहर निकालने में मदद करता है। सौंठ के सेवन से फेफड़े, यकृत, स्तन, पेट, कोलोरेक्टम, गर्भाशय ग्रीवा और प्रोस्टेट कैंसर आदि विकारों की रोकथाम की जा सकती है। (9)
  • पाचन सबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी सौंठ बहुत ही लाभकारी होती है। अजीर्ण, खट्टी डकारें, मतली आना आदि विकारों में भी सौंठ लाभकारी होती है। क्रोनिक कब्ज को दूर करने के लिए भी सौंठ का उपयोग हितकारी होता है। (10)
  • अदरक से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए भी यह बेहतर होती है।अदरक में प्रयाप्त एंटी ओक्सिदेंट्स, एंटी इन्फ्लामेंटरी प्रोपर्टीज होती हैं।
  • अदरक में अपक्षयी विकारों (गठिया ), पाचन स्वास्थ्य (अपच, कब्ज और अल्सर), हृदय संबंधी विकार (एथेरोस्क्लेरोसिस और उच्च रक्तचाप), उल्टी, मधुमेह मेलेटस और कैंसर सहित कई बीमारियों के इलाज की अद्भुद क्षमता है। (11)
  • अदरक में पाए जाने वाले एंटी इन्फ्लामेंटरी गुणों के कारण यह दांत दर्द में भी बहुत ही उपयोगी हो सकती है। (12)
सन्दर्भ : शा. ध. (शार्गंधर), यो. त. (योग तरंगिनी) भै. र. (भैषज्य रत्नावली), भारत भैषज्य रत्नाकर-3879
 
The author of this blog, Saroj Jangir (Admin), is a distinguished expert in the field of Ayurvedic Granths. She has a diploma in Naturopathy and Yogic Sciences. This blog post, penned by me, shares insights based on ancient Ayurvedic texts such as Charak Samhita, Bhav Prakash Nighantu, and Ras Tantra Sar Samhita. Drawing from an in-depth study and knowledge of these scriptures, Saroj Jangir has presented Ayurvedic Knowledge and lifestyle recommendations in a simple and effective manner. Her aim is to guide readers towards a healthy life and to highlight the significance of natural remedies in Ayurveda.
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