पतंजलि दिव्य चूर्ण के फायदे और घटक Patanjali Divya Churn Benefits Doses, Price

पतंजलि दिव्य चूर्ण क्या है What is Patanjali Divya Churna

पतंजलि दिव्य चूर्ण भोजन के उपरान्त लिया जाने वाला आयुर्वेदिक चूर्ण है को कब्ज, गैस,अपच, अफारा, कमजोर पाचन, पित्त दोष आदि के लिए उपयोग में लिया जाता है। इस चूर्ण में सनाय, छोटी हरड, सौंफ, सौंठ, गुलाब फूल, काला दाना और सेंधा नमक का उपयोग इसे कब्जहर बनाता है। सनाय विरेचक होता है वहीँ सौंफ और सौंठ विरेचक और मूत्रवर्धक होते हैं। जहाँ यह चूर्ण आँतों में जमा पुराने मल को दूर करता है वहीँ पर भूख में वृद्धि भी करता है। पतंजली दिव्य चूर्ण विरेचक और दस्तावर है। कब्ज के अतिरिक्त यह बवासीर में भी लाभकारी होता है क्योंकि यह मल को ढीला करता है। संक्षिप्त में यह चूर्ण विरेचक है और साथ ही पाचन तंत्र में सुधार करता है।

पतंजलि दिव्य चूर्ण के फायदे और घटक Patanjali Divya Churn Benefits Doses, Price

पतंजलि दिव्य चूर्ण के घटक Composition of Patanjali Divya Churna

पतंजलि दिव्य चूर्ण में निम्न आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर घटक द्रव्यों (हर्ब) का उपयोग किया जाता है। इनके विषय में आप लेख के निचे इनके गुण/कर्म पढ़ सकते हैं।
  • सोनामुखी/सनाय-Cassia angustifoliea
  • हरीतकी छोटी-Terminalia chebula
  • सौंफ-Foeniculum vulgare
  • सोंठ-Zingiber officinale
  • गुलाब फूल-Rose flower
  • सेंधा नमक-Rock salt
  • काला दाना-Ipomoea nil (कृष्ण बीज)/ब्लू मोर्निंग ग्लोरी
  • पतंजलि दिव्य चूर्ण के लाभ/फ़ायदे Benefits of Patanjali Divy Churna Hindi
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पतंजलि दिव्य चूर्ण के निम्न लाभ होते हैं जो की प्रधान रूप से कब्ज को दूर कर पाचन क्रिया को दुरुस्त करने से सबंधित हैं।
  • पुराने कब्ज को दूर करता है और मल को ढीला कर मल त्याग क्रिया को सहज बनाता है।
  • इस चूर्ण से कब्ज, गैस, पेट का फूलना, पेट में मरोड़ चलना आदि विकारों में लाभ मिलता है।
  • पतंजलि दिव्य चूर्ण के सेवन से पित्त नियंत्रित होता है जिससे भूख में वृद्धि होती है।
  • यह पोषक भी है यानी की यह शारीर को पोषण भी देता है।
  • मल को ढीला करके बवासीर में लाभ पंहुचाता है।
  • इस चूर्ण के सेवन से भूख जाग्रत होती है।
पतंजलिआयुर्वेद का दिव्य चूर्ण के विषय में कथन Patanjali Divya Churna According to Patanajali Ayurveda

Divya Churna is a time-tested medicine for constipation and indigestion. It is made from a combination of natural extracts that have the capacity to purge your system of toxins. DivyaChurna also has laxative properties that induce peristaltic movements thus making evacuation of bowels pain-free. It improves digestion, increases appetite and reduces gas formation and discomfort. Don't let constipation and heartburn hold you back from enjoying life. Take Divya Churna to experience the soothing touch of Ayurvedic therapy.

पतंजली दिव्य चूर्ण की कीमत Price of Patanjali Divya Churna

पतंजली दिव्य चूर्ण के 100 gram का मूल्य रुपये 50/- है। यहाँ उल्लेखनीय है की बाजार में उपलब्ध अन्य चूर्णों की तुलना में यह काफी किफायती है।

पतंजलि दिव्य चूर्ण सेवन विधि Patanjali Divy Churna Doses

सामान्य रूप से इसे रात्री भोजन के उपरान्त लिया जाता है। इस हेतु निश्चित मात्र और सेवन विधि के लिए वैद्य से सलाह प्राप्त करें।

पतंजलि आयुर्वेदा को कहाँ से खरीदें How To Buy Patajnali Divya Churna

पतंजलि दिव्य चूर्ण आपको प्रमुख आयुर्वेदिक दवा स्टोर्स पर उपलब्ध है और इसे आप पतंजली चिकित्सालय से भी खरीद सकते हैं। इसे ऑनलाइन खरीदने के लिए आप निचे दिए गए पतंजलि आयुर्वेद की अधिकृत वेबसाइट को विजिट करें।

https://www.patanjaliayurved.net/product/ayurvedic-medicine/churna/divya-churna/36

पतंजलि दिव्य चूर्ण के घटक के गुण कर्म के विषय में संक्षिप्त विवरण Brief Information About the composition of "Pantanjali Divy Churna" Hindi

सोनामुखी/सनाय : सनाय का वानस्पतिक नाम : Senna Alexandrina Mill. (सेना अलेक्सन्ड्रिना) Syn-Cassia angustifolia Vahl, Cassia senna Linn. और सनाय का कुल Caesalpiniaceae (सेजैलपिनिएसी) तथा इसका अंग्रेजी में नाम Indian Senna (इण्डियन सेना) है। संस्कृत में सनाय को मार्कण्डिका, भूमिवल्ली, मार्कण्डी, स्वर्णपत्री, मृदुरेचनी आदि नामों से जाना जाता है। यह एक झाड़ीनुमा पादप होता है जिसकी पत्तियों को प्रधान रूप से आयुर्वेद में प्रयोग किया जाता है। इस पादप की पत्तियां कुछ पीली होती हैं और हलकी सुगन्धित भी होती हैं तथा सनाय की पत्तियाँ दिखने में मेहंदी के समान होती हैं। सनाय में पाए जाने वाले सेन्नोसाइड्स (Sennosides) से प्रधान रूप से विरेचक के लिए महत्वपूर्ण होता है। ओषधिय गुण कर्म में सनाय कटु, मधुर, तिक्त, कषाय, उष्ण, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण तथा वातकफशामक होती है। वैद्य के द्वारा बताई गई मात्रा में ही इसका उपयोग किया जाना चाहिए अन्यथा इसके अधिक प्रयोग से शरीर में पोटेशियम का स्तर कम होने का खतरा होता है। सनाय का स्वाद कैसेला और स्वभाव में गर्म होता है। सनाय मलबद्ध, मंदाग्नि, लीवर (जिगर), पेट के रोग, बद्धगुद, अजीर्ण, आदि विकारों में श्रेयकर होती है। सनाय से पंचसकार चूर्ण, सारिवाद्यासव आदि महत्वपूर्ण ओषधियों का निर्माण किया जाता है।

सनाय के प्रमुख लाभ /फायदे

  1. सनाय विरेचक होता है। यह पेट की सफाई करती है, कब्ज दूर करती है और पित्त को नियंत्रित करने में सहायक होती है।
  2. सनाय रोगाणुनाशक और शरीर की प्राकृतिक रूप से सफाई करने वाली ओषधि होती है।
  3. सनाय से गले के संक्रमण/ गले की खरांश दूर होती है।
  4. सनाय ज्वर नाशक होती है।
  5. सनाय किसी भी संक्रमण को रोकने में एक कारगर ओषधि होती है।
  6. सनाय की पत्तियों को गुलाब की पत्तियों का चूर्ण, सोंठ या सूखी अदरक, सैंधा नमक, किशमिश को मिलाकर महीन चूर्ण बना कर शहद के साथ चाटने से कब्ज दूर होता है और मल ढीला पड़ता है।
  7. सनाय की पत्तियों के चूर्ण को मिश्री के साथ रात को भोजन के उपरान्त सेवन से पेट में कब्ज दूर होता है और गैस/आफरा आदि विकार शांत होते हैं।
  8. सनाय की पत्तियों के चूर्ण से शरीर में जोड़ों का दर्द शांत होता है।
  9. पित्तज विकारों को शांत करने के लिए इसका उपयोग मिश्री के साथ श्रेयकर होता है।
  10. सनाय चूर्ण को सौंठ के साथ सेवन करने से वातज विकार शांत होते हैं।
  11. सनाय श्वास, कास, खुजली, गठिया, हाथ-पैरों में झनझनाहट व शूल में लाभदायक होता है।
  12. सनाय को शहद के साथ लेने से शरीर की शक्ति बढती है।
  13. सनाय चूर्ण को लौंग चूर्ण के साथ लेने से दमा में लाभ मिलता है।
  14. सनाय के सेवन से अग्निमांद्यता (अपच) में फायदा होता है।
  15. सनाय का काढ़ा बनाकर पीने से दस्तावर में लाभ मिलता है।
  16. पेट के कीड़े दूर करने में सनाय बहुत ही कारगर ओषधि होती है।
  17. यह अग्नि को प्रदीप्त करती है।
  18. यह चरम रोग नाशक होती है।
  19. अनार के रस के साथ सनाय चूर्ण के सेवन से कफ्फ दूर होता है।

हरीतकी छोटी-Terminalia chebula

हरड़ यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरीतकी। कदाचिद् कुप्यते माता, नोदरस्था हरीतकी ॥
हरड को हरीतकी भी के नाम से भी जाना जाता है। हरीतिकी के पेड़ से प्राप्‍त सूखे फल है जिन्‍हें हरड़ कहा जाता है। हरीतकी (Haritaki) का वानस्पतिक या वैज्ञानिक नाम टर्मिनालिया केबुला (Terminalia chebula) है। इसके अन्य नाम हैं हरड, कदुक्‍कई, कराकाकाया, कदुक्‍का पोडी, हर्रा और आयुर्वेद में इसे कायस्था, प्राणदा, अमृता, मेध्या, विजया आदि नामों से भी जाना जाता है। 
 
आयुर्वेद में इसे अत्यंत ही लाभकारी माना जाता है। पेट से सबंधित व्याधियों जैसे की अपच, पाचन शक्ति का दुर्बल होना, बवासीर होना दस्त आदि में इसका उपयोग असरदायक होता है। हरड विटामिन C का एक अच्छा स्रोत होता है। चरक सहिता में हरड के गुणों के बारे में उल्लेख मिलता है।
हरड़ के निम्न लाभ होते हैं-
  • वैद्य इसे इतना अधिक सम्मान देते हैं की हरड को अमृतोपम औषधि माना जाता है। चरक संहिता के अनुसार हरड़ त्रिदोष हर व अनुलोमक है यह संग्रहणी शूल, अतिसार (डायरिया) बवासीर तथा गुल्म का नाश करती है एवं पाचन अग्निदीपन में सहायक होती है। भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार हरड़ बवासीर, सभी प्रकार के उदर रोगों, कृमियों, संग्रहणी, विबंध, गुल्म आदि रोगों मेंलाभकारी होती है।
  • हरड़ विरेचक होती है, मल त्याग को आसान करती है।
  • हरड कृमि नाशक होती है। हरड/हरड़ कषाय प्रधान है, विरेचक तथा बलवर्धक होती है।
  • हरड कफ, मधुमेह, बवासीर (अर्श), कुष्ठ, सूजन, पेट का रोग, कृमिरोग, स्वरभंग, ग्रहणी विकारों में लाभदाई होती है।
  • नेत्र विकारों के लिए यह उत्तम ओषधि होती है।
  • हरड का चूर्ण कफ्फ को दूर करता है।
  • हरड का चूर्ण भूख में वृद्धि करता है।
  • यह पोषक भी होती है और शारीर की थकान और कमजोरी को दूर करती है।
  • हरड से एलर्जी दूर होती है इसके लिए हरड चूर्ण का क्वाथ बनाकर लेने ले लाभ मिलता है।
  • मुंह के छाले/मुखपाक होने पर हरड के चूर्ण (महीन) को पेस्ट बनाकर छालों पर लगाने से लाभ मिलता है।
  • पाचन तंत्र को पुष्ट करती है।
  • हरड त्रिदोष नाशक होती है।
  • हरड का चूर्ण शरीर की सुजन को दूर करता है।
  • हरड चूर्ण को डाल चीनी के साथ क्वाथ बना कर पीने से उलटी में लाभ मिलता है।

सोंठ (Zingiber officinale Roscoe, Zingiberacae)

अदरक ( जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale ) को पूर्णतया पकने के बाद इसे सुखाकर सोंठ बनायी जाती है। ताजा अदरक को सुखाकर सौंठ बनायी जाती है जिसका पाउडर करके उपयोग में लिया जाता है। अदरक मूल रूप से इलायची और हल्दी के परिवार का ही सदस्य है। अदरक संस्कृत के एक शब्द " सृन्ग्वेरम" से आया है जिसका शाब्दिक अर्थ सींगों वाली जड़ है (Sanskrit word srngaveram, meaning “horn root,”) ऐसा माना जाता रहा है की अदरक का उपयोग आयुर्वेद और चीनी चिकित्सा पद्धति में 5000 साल से अधिक समय तक एक टॉनिक रूट के रूप में किया जाता रहा है। सौंठ का स्वाद तीखा होता है और यह महकदार होती है। अदरक गुण सौंठ के रूप में अधिक बढ़ जाते हैं। अदरक जिंजीबरेसी कुल का पौधा है। अदरक का उपयोग सामान्य रूप से हमारे रसोई में मसाले के रूप में किया जाता है। चाय और सब्जी में इसका उपयोग सर्दियों ज्यादा किया जाता है। अदरक के यदि औषधीय गुणों की बात की जाय तो यह शरीर से गैस को कम करने में सहायता करता है, इसीलिए सौंठ का पानी पिने से गठिया आदि रोगों में लाभ मिलता है।

सामान्य रूप से सौंठ का उपयोग करने से सर्दी खांसी में आराम मिलता है। अन्य ओषधियों के साथ इसका उपयोग करने से कई अन्य बिमारियों में भी लाभ मिलता है। नवीनतम शोध के अनुसार अदरक में एंटीऑक्सीडेंट्स के गुण पाए जाते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थ को बाहर निकालने में हमारी मदद करते हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में कैंसर जैसे रोग से भी लड़ने में सहयोगी हो सकते हैं। पाचन तंत्र के विकार, जोड़ों के दर्द, पसलियों के दर्द, मांपेशियों में दर्द, सर्दी झुकाम आदि में सौंठ का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है। सौंठ के पानी के सेवन से वजन नियंत्रण होता है और साथ ही यूरिन इन्फेक्शन में भी राहत मिलती है। सौंठ से हाइपरटेंशन दूर होती है और हृदय सबंधी विकारों में भी लाभदायी होती है। करक्यूमिन और कैप्साइसिन जैसे एंटीऑक्सिडेंट के कारन सौंठ अधिक उपयोगी होता है। सौंठ गुण धर्म में उष्णवीर्य, कटु, तीक्ष्ण, अग्निदीपक, रुचिवर्द्धक पाचक, कब्जनिवारक तथा हृदय के लिए हितकारी होती है। सौंठ वातविकार, उदरवात, संधिशूल (जोड़ों का दर्द), सूजन आदि आदि विकारों में हितकारी होती है। सौंठ की तासीर कुछ गर्म होती है इसलिए विशेष रूप से सर्दियों में इसका सेवन लाभकारी होता है
सौंठ के प्रमुख फायदे :
  1. सर्दी जुकाम में सौंठ का उपयोग बहुत ही लाभकारी होता है। सर्दियों में अक्सर नाक बहना, छींके आना आदि विकारों में सौंठ का उपयोग करने से तुरंत लाभ मिलता है। शोध के अनुसार बुखार, मलेरिया के बुखार आदि में सौंठ चूर्ण का उपयोग लाभ देता है (1)
  2. सौंठ / अदरक में लिपिड लेवल को कम करने की क्षमता पाई गई है जिससे यह वजन कम करने में भी सहयोगी होती है। एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में भी सौंठ को पाया गया है। अदरक में लसिका स्तर को रोकने के बिना या बिलीरुबिन सांद्रता को प्रभावित किए बिना शरीर के वजन को कम करने की एक शानदार क्षमता है, जिससे पेरोक्सिसोमल कटैलस लेवल और एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। (2)
  3. सौंठ के सेवन से पेट में पैदा होने वाली जलन को भी दूर करने में मदद मिलती है। पेट में गैस का बनाना, अफारा, कब्ज, अजीर्ण, खट्टी डकारों जैसे विकारों को दूर करने में भी सौंठ बहुत ही लाभकारी होती है। (3) मतली और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों में भी अदरक का चूर्ण लाभ पहुचाता है।
  4. कई शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है की अदरक में एंटी ट्यूमर के गुण होते हैं और साथ ही यह एक प्रबल एंटीओक्सिडेंट भी होता है।
  5. Premenstrual syndrome (PMS) मतली आना और सर में दर्द रहने जैसे विकारों में भी सौंठ का उपयोग लाभ पंहुचाता है। माइग्रेन में भी सौंठ का उपयोग हितकर सिद्ध हुआ है (4)
  6. सौंठ का उपयोग छाती के दर्द में भी हितकर होता है। सौंठ जैसे मसाले एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं, और वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि वे ऊतक क्षति और रक्त शर्करा के उच्च स्तर और परिसंचारी लिपिड के कारण सूजन के प्रबल अवरोधक भी हैं। अदरक (Zingiber officinale Roscoe, Zingiberacae) एक औषधीय पौधा है जिसका व्यापक रूप से प्राचीन काल से ही चीनी, आयुर्वेदिक और तिब्बत-यूनानी हर्बल दवाओं में उपयोग किया जाता रहा है और यह गठिया, मोच शामिल हैं आदि विकारों में भी उपयोग में लिया जाता रहा है। अदरक में विभिन्न औषधीय गुण हैं। अदरक एक ऐसा यौगिक जो रक्त वाहिकाओं को आराम देन, रक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करने और शरीर दर्द से राहत देने के लिए उपयोगी है। (5)
  7. सौंठ में एंटीइन्फ्लामेंटरीप्रॉपर्टीज होती हैं जो शरीर के विभिन्न भागों की सुजन को कम करती हैं और सुजन के कारण उत्पन्न दर्दों को दूर करती हैं। गठिया जैसे विकारों में भी सोंठ बहुत उपयोगी होती है। (6)
  8. चयापचय संबंधी विकारों में भी अदरक बहुत ही उपयोगी होती है। (७)
  9. क्रोनिक सरदर्द, माइग्रेन जैसे विकारों में भी सोंठ का उपयोग लाभकारी रहता है। शोध के अनुसार अदरक / सौंठ का सेवन करने से माइग्रेन जैसे विकारों में बहुत ही लाभ पंहुचता है। (८)
  10. सौंठ में एंटी ओक्सिडेंट होते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थों / मुक्त कणों को बाहर निकालने में मदद करता है। सौंठ के सेवन से फेफड़े, यकृत, स्तन, पेट, कोलोरेक्टम, गर्भाशय ग्रीवा और प्रोस्टेट कैंसर आदि विकारों की रोकथाम की जा सकती है। (9)
  11. पाचन सबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी सौंठ बहुत ही लाभकारी होती है। अजीर्ण, खट्टी डकारें, मतली आना आदि विकारों में भी सौंठ लाभकारी होती है। क्रोनिक कब्ज को दूर करने के लिए भी सौंठ का उपयोग हितकारी होता है। (10)
  12. अदरक से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए भी यह बेहतर होती है।अदरक में प्रयाप्त एंटी ओक्सिदेंट्स, एंटी इन्फ्लामेंटरी प्रोपर्टीज होती हैं।
  13. अदरक में अपक्षयी विकारों (गठिया ), पाचन स्वास्थ्य (अपच, कब्ज और अल्सर), हृदय संबंधी विकार (एथेरोस्क्लेरोसिस और उच्च रक्तचाप), उल्टी, मधुमेह मेलेटस और कैंसर सहित कई बीमारियों के इलाज की अद्भुद क्षमता है। (11)
  14. अदरक में पाए जाने वाले एंटी इन्फ्लामेंटरी गुणों के कारण यह दांत दर्द में भी बहुत ही उपयोगी हो सकती है। (12)

गुलाब फूल

गुलाब का फूल जितना देखने में अच्छा होता है, सुगन्धित होता है उतने ही इसके ओषधिय लाभ होते हैं। गुलाब बहुवर्षीय, झाड़ीदार, कंटीला, पुष्पीय सुगंधित पादप होता है। गुलाब का वानास्पतिक नाम Rosa centifolia Linn.(रोजा सेन्टिफोलिया) Syn-Rosa gallica var. Centifolia Regel और यह Rosaceae (रोजेसी) कुल का पादप होता है। संस्कृत में गुलाब को तरुणी, देवतरुणी, शतपत्री, कर्णिका आदि नामों से जाना जाता है। गुलाब त्रिदोष नाशक गुलाब मधुर, कड़वा, तीखा, शीतल, लघु, चिकना होता है। गुलाब दीपन यानी की भूख जाग्रत करने वाला, वर्ण्य और रसायन (शरीर को ताकत देने वाला ) होता है। आयुर्वेदिक के अनुसार गुलाब के रस का स्वाद तीखा, चिकना, कषैला और मीठा होता है। गुलाब की सौ से अधिक प्रजातियाँ होती हैं जिनमें से अधिकांशतः एशियाई हैं। गुलाब की पत्तियों में भरपूर एंटीओक्सिदेंट्स और विटामिन c होता है। औषधीय रूप में गुलाब के जड़, पत्ते और फूल का उपयोग किया जाता है।
गुलाब के निम्न लाभ / फायदे होते हैं।
  • गुलाब मुखपाक रोगों में लाभदाई होता है। यह मुंह की बदबू / मुंह के छालों के प्रभावों को दूर करता है।
  • गुलाब शरीर में ठंडक उत्पन्न करता है। यह गर्मी से पैदा उन्माद को भी प्रभावी रूप से कम करता है।
  • आखों के लिए गुलाब अत्यंत ही लाभकारी होता है।
  • गुलाब खाना पचाने में सहायक होता है।
  • गुलाब त्रिदोष नाशक होता है, यह वात पित्त और कफ्फ को नियंत्रित करता है।
  • रक्त पित्त, नाक कान से खून बहने पर यह लाभकारी होता है।
  • गुलाब को फेफड़ों की बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है, टीबी में भी इसका उपयोग श्रेयकर होता है।
  • गुलाब के चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से कब्ज, पेट का फूलना, गैस आफरा आदि विकारों में लाभ मिलता है।
  • यकृत विकारों में गुलाब का उपयोग किया जाता है।
  • ज्वर / पित्त ज्वर में गुलाब का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है। बुखार में गुलकंद का सेवन करने से लाभ मिलता है।
  • पारंपरिक रूप से लाल गुलाब को पीस कर बिच्छु के काटने के स्थान पर लगाने से सुजन कम होती है और विष का प्रभाव भी कम होता है।
  • अधिक प्यास का लगना, गर्मी के उन्माद और कब्ज को दूर करने के लिए गुलाब चूर्ण का सेवन किया जाता है।
  • गुलाब के पत्तों के शर्बत के सेवन से मस्तिष्क को बल मिलता है और त्वचा में निखार आता है।
  • गुलकंद के सेवन से शरीर की दाह, हाथ पैरों की जलन, शांत होती है।
  • गुलाब के लाल पत्ते मुंह में रखकर चबाने से जहां एक और मुंह की बदबू दूर होती है वहीँ पायरिया जैसे विकारों में भी लाभ मिलता है।
  • गुलाब के पत्तों को मिश्री के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ मिलता है।
  • गर्मी में आखों की जलन हो जाने पर गुलाब जल से लाभ मिलता है।
  • गुलाब के पत्तों को पीस कर होठों पर लगाने से होठों का कालापन दूर हटता है।
  • गुलकंद के सेवन से बेहतर नींद आती है और मानसिक तनाव दूर होता है।
  • गुलाब के सेवन, गुलाब को आस पास रखने पर आपका मानसिकउत्साह बढता है। (1)
  • गुलाब में विटामिन C होता है जो संक्रमण के खतरे को कम करता है (2)
  • गुलाब प्राकृतिक रूप से आपकी त्वचा को मॉइस्चराइज करने में सहायक होता है।

सेंधा नमक-Rock salt

सेंधा नमक (एप्सम सॉल्ट-epsom salt) को सैन्धव नमक, लाहौरी नमक या हैलाईट (Halite) आदि नामों से जाना जाता है। यह रंगहीन या सफ़ेद होता है। पूर्व में यह नमक सिंध से आया करता था तभी से इसे सेंधा नमक कहा जाने लगा है। हालांकि काला नमक भी एक तरह से सेंधा नमक ही होता है। सेंधा नमक को रासायनिक रूप से मैग्नीशियम सल्फेट से जाना जाता है। सेंधा नमक को सबसे शुद्ध माना जाता है। इसमें मैग्नीशियम के अतिरिक्त लोहा, कैल्शियम, पोटैशियम, जिंक आदि खनिज पाए जाते हैं।
सेंधा नमक के निम्न लाभ होते हैं-
  • सेंधा नमक प्राचीन समय से हाजमे के लिए अच्छा माना जाता रहा है। इसके सेवन से कब्ज दूर होता है और पाचन सुधरता है। यह भोजन को पचाने में मदद करता है।
  • सेंधा नमक के सेवन से तनाव दूर होता है।

काला दाना (कृष्ण बीज)

काला दाना को कृष्ण बीज और ब्लू मोर्निंग ग्लोरी भी कहा जाता है। इस हर्ब के बीजों को ही काला दाना कहा जाता है। काला दाना या कृष्णबीज का वानास्पतिक नाम Ipomoea nil (L.) Roth (आइपोमिया निल) Syn-Ipomoea hederacea Jacq. है और यह कुल Convolvulaceae (कान्वाल्वुलेसी) से सबंधित पादप है। काला दाना को अंग्रेजी में अंग्रेजी में Blue Morning glory (ब्लू मार्निंग ग्लोरी) के नाम से जाना जाता है। इसके बीज स्वाद में इषद और कसाय होते हैं। यह प्रकृति में कडवा होता है।

काला दाना के गुण धर्म : यह विरेचक होता है और साथ ही कृमि नाशक होता है। साथ ही यह रक्त को शुद्ध करने वाला और सुजन को कम करने वाला भी होता है। काला दाना ज्वर नाशक और मूत्र विकारों में लाभ दाई होता है। इसके बीजों को पेट सबंधी विकारों यथा कब्ज, अपच, जीर्ण कब्ज आफरा, गैस आदि विकारों में उपयोग में लिया जाता है और साथ ही इसके बीजों का उपयोग स्वांस सबंधी विकारों में भी लाभदाई माना जाता है। 

पतंजलि के अनुसार दिव्य चूर्ण का परिचय

दिव्य चूर्ण कब्ज को दूर करने में सहायक होता है, आंतों से अपशिष्ट पदार्थों को निकालने में मदद करता है और शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करता है। यह मल को आंतों की आंतरिक परत में फिर से जमा होने से रोकने के लिए आंतों को उत्तेजित करता है। यह पाउडर पेट का दर्द, पेट फूलना, भूख न लगना, बेचैनी, मिचली, पेट की परेशानी, और अन्य कई बीमारियों को दूर करने में लाभदायक है।


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विशेष : यह लेख पतंजलि दिव्य चूर्ण के बारे में आपको जानकारी देता है लेकिन इसके सेवन से पूर्व आपको वैद्य की सलाह अवश्य ही प्राप्त कर लेनी चाहिए। इसक चूर्ण का सेवन इस लेख के आधार पर नहीं करें। यह लेख आपको एक जानकारी देता है लेकिन किसी रोग/विकार के ठीक होने का दावा नहीं करता है और नाही किसी चिकित्सा की सलाह देता है।

1 टिप्पणी

  1. Shandar jankari... ☺☺