अविपत्तिकर चूर्ण परिचय, फायदे, खुराक Avipattikar Churna Benefits Hindi
अविपत्तिकर चूर्ण क्या है Avipattikar Churna Parichay Hindi
कुछ आहार और व्यवहार अम्लपित्त को बढ़ावा देते हैं, जैसे कि तेज मिर्च, अधिक चटपटा बाजार का खाना, चाट, पकोड़े, कचौरी, समोसे, ज्यादा चाय, मद्य (शराब), मांस, तम्बाकू आदि।
अगर अम्लपित्त बार-बार हो रही है और लम्बे समय तक बनी रह रही है, तो यह आपके पाचन तंत्र में अलसर (अल्सर) के कारण भी हो सकती है। अल्सर एक जीर्ण और विकट विकार होता है।
अविपत्तिकर चूर्ण के घटक द्रव्य Ingredients of Avipattikar Churna
- कालीमिर्च (Black Pepper) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Piper nigrum
- सोंठ (Ginger) - 1 भाग (part) / Botanical name: Zingiber officinale
- पिप्पली (Long Pepper) - 1 भाग (part) / Botanical name: Piper longum
- आंवला (आमलकी) (Indian Gooseberry) - 1 भाग (part) / Botanical name: Emblica officinalis (or Phyllanthus emblica)
- बहेड़ा (विभितकी) (Beleric Myrobalan) - 1 भाग (part) / Botanical name: Terminalia bellirica
- हरड (हरीतकी) (Chebulic Myrobalan) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Terminalia chebula
- नागरमोथा (Cyperus rotundus) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Cyperus rotundus
- वायविडंग (Embelia ribes) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Embelia ribes
- विड लवण (Rock Salt) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Not applicable (Rock salt is a natural mineral salt)
- इलायची (Cardamom) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Elettaria cardamomum
- तेजपत्र (Cinnamon) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Cinnamomum verum
- लौंग (Cloves) - 10 भाग (parts) / Botanical name: Syzygium aromaticum
- निशोथ (Turpeth or Operculina turpethum) - 40 भाग (parts)/ Botanical name: Operculina turpethum
- मिश्री (Rock Candy or Crystallized Sugar) - 60 भाग (parts)/ Botanical name: Not applicable (Mishri is crystallized sugar)
अविपत्तिकर चूर्ण बनाने की विधि How To Make Avipattikar Churna Hindi
- सभी द्रव्यों को अच्छे से साफ़ करें और सुखा लें।
- धूप देकर इन सभी द्रव्यों को इमाम दस्ते में अच्छे से कूट पीस लें ताकि एक महीन चूर्ण बन जाए।
- सभी चूर्णों को अच्छे से मिला लें।
- आपका अविपत्तिकर चूर्ण तैयार है। इसे किसी कांच की शीशी में सहेज लें।
अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन कैसे करें Doeses of Avipattikar Churna
समय: अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन खाना खाने से पहले सुबह और शाम को करना चाहिए। इससे पेट की पाचन शक्ति बढ़ती है और भोजन को अच्छे से पचाने में मदद मिलती है।
मात्रा: चिकित्सक द्वारा सिफारिश की गई मात्रा के अनुसार, आम तौर पर 3 से 6 ग्राम की मात्रा रोजाना ली जाती है।
सेवन : अविपत्तिकर चूर्ण को गरम जल, शहद या दूध के साथ लेना चाहिए। शहद या दूध के साथ लेने से इसका सेवन स्वादिष्ट और सहज हो जाता है।
परामर्श: विपत्तिकर चूर्ण का सेवन करने से पहले वैद्य से परामर्श लेना चाहिए। उम्र, देशकाल, अन्य दवाओं के योग एंव विकार की जटिलता के आधार पर इसकी मात्रा निर्धारित होती है.
अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे या चिकित्सकीय उपयोग Uses of Avipattikar Churna
- हाइपर एसिडिटी या अम्लपित (Hyperacidity) की समस्या में इसका सेवन लाभदायक होता है। अविपत्तिकर चूर्ण आंत्र के एसिड को न्यूट्रीलाइज़ करता है और पेट में होने वाली जलन और तकलीफ को कम करता है।
- भूख की कमी और अजीर्ण एवं अपच (Indigestion and Dyspepsia) में अविपत्तिकर चूर्ण के प्रयोग से लाभ मिलता है। यह पाचन तंत्र को सुधारने में मदद करता है और भूख बढ़ाने में सहायक होता है।
- कब्ज (Constipation) में अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से लाभ मिलता है। यह मल मूत्र विकारों को दूर करने में मदद करता है और पाचन क्रिया को सुधारता है।
- शरीर में बढ़े हुए पित्त को संतुलित करके पाचन को सुधारने का कार्य करता है। इसके उपयोग से जलन, गैस और अन्य पित्त विकारों में आराम मिलता है।
- सीने की जलन (Acid Reflux) में अविपत्तिकर चूर्ण उपयुक्त है। यह सीने की जलन को शांत करता है और अधिक डकारों को कम करता है।
- खट्टी डकारों से राहत मिलती है और मूत्र विकारों में भी लाभदायक है।
- मूत्र विकारों में भी अविपत्तिकर चूर्ण लाभकारी होता है.
अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे / लाभ Avipattikar Churna Benefits
एसिडिटी (अम्लपित्त ) को दूर करने में लाभदायक है अविपत्तिकर चूर्ण Avipattikar Churna beneficial in acidity
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पित्त संतुलन करने में लाभकारी अविपत्तिकर चूर्ण
निसोत (निसोथ) एक प्रमुख विरेचन औषधि है, जिसका उपयोग विरेचन गुण को प्राप्त करने में किया जाता है और आमाशय में संगृहीत पित्त को शरीर से बाहर निकालने में सहायक होता है। अतः इस चूर्ण के सेवन से आप पित्त को संतुलित कर लेते हैं और पित्त जनित विकारों से छुटकारा पा लेते हैं.
पेट की शुद्धि में सहायक है अविपत्तिकर चूर्ण
पाचन शक्ति को मजबूत बनाने में अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे
आईबीएस आंत्र विकार में लाभकारी है अविपत्तिकर चूर्ण
इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) जिसे ग्रहणी कहते हैं, इस विकार में पाचन अग्नि असंतुलित हो जाती है। इस विकार के कारण दस्त, तनाव और अन्य मानसिक विकार पैदा होते हैं। ऐसी स्थिति में शरीर में आम का निर्माण अधिक होने लगता है। मल अधिक तरल होने लगता है। इस विकार में अविपत्तिकर चूर्ण लाभकारी होता है क्योंकि इसमें दीपन (भूख बढ़ाने वाला), पचन (पाचन) और रेचक (रेचक) गुण होते हैं। यह चूर्ण भोजन को पचाने में बहुत लाभकारी होता है।
भूख बढाने के लिए अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे
कम पाचन अग्नि (मंद अग्नि) के कारण भूख में कमी आने लगती है और शरीर को समुचित पोषण नहीं मिल पाता है और इसका प्रधान कारण पाचन तंत्र की कमजोरी होता है। ऐसे में अविपत्तिकर चूर्ण लेने से भोजन का पाचन सुधरता है और अरुचि समाप्त होती है।
बवासीर के लिए अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे
बवासीर का मुख्य कारण भी पाचन ही होता है। पाचन की कमजोरी के कारण मल त्याग सुगम नहीं होता है और मल त्याग में अधिक जोर लगाना पड़ता है। मल के शरीर में रहने से विषाक्त प्रदार्थ बढ़ते हैं और गर्मी भी बढती है। बवासीर में अविपत्तिकर चूर्ण विशेष रूप से मल को ढीला करके शरीर से बाहर निकालने में सहायक होता है और गुदा द्वार पर होने वाली सुजन को भी कम करता है।
मोटापे के लिए अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे
सुस्त जीवन शैली के कारण मोटापा बढ़ने लगता है। मोटापा में अपच के कारण आम वसा के रूप में जमा होने लगती है। यह स्थिति कभी-कभी कब्ज के कारण भी हो सकती है जो आगे चलकर मेद धातु के असंतुलन का कारण बनती है जिसके परिणामस्वरूप मोटापा होता है। अविपत्तिकर चूर्ण से आप मोटापे को भी कम कर सकते हैं। यह अपने दीपन (भूख बढ़ाने वाला) और पचन (पाचन) गुणों के कारण वसा संचय को कम करने में मदद करता है। यह अपने रेचक (रेचक) गुण के कारण कब्ज को भी दूर करता है।
पेशाब की रुकावट दूर करने में सहायक
अविपत्तिकर चूर्ण में पाए जाने वाले डियूरेटिक्स गुण उपयुक्त मात्रा में सेवन करने से पेशाब में रुकावट की समस्या में राहत मिल सकती है। डियूरेटिक्स गुण के कारण पेशाब का उत्पादन बढ़ जाता है और इससे शरीर में मौजूद गंदगी और विषैले पदार्थ भी निकल जाते हैं। इससे पेशाब का आवरण खुलता है और पेशाब निकलने में आसानी होती है।
अविपत्तिकर चूर्ण के दुष्परिणाम Side effects of Avipattikar Churna
अविपत्तिकर चूर्ण एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसके कोई ज्ञात दुष्परिणाम नहीं है फिर भी आप इसके सेवन से पूर्व वैद्य की सलाह लेंवे। आँतों में सूजन हो जाने पर इसका सेवन प्रायः नहीं करना चाहिए। निश्चित मात्रा से अधिक मात्रा और वैद्य द्वारा बताए गए समय से अधिक/लम्बे समय तक अविपत्तिकर चूर्ण का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
अविपत्तिकर चूर्ण भंडारण और सुरक्षा जानकारी
भंडारण: अविपत्तिकर चूर्ण को शीतल और सूखी जगह पर भंडारित करें। उच्च तापमान और नम जगह से इसे बचाएं, क्योंकि इससे चूर्ण की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
लेबल को पढ़ें: अविपत्तिकर चूर्ण के उपयोग से पहले लेबल ध्यान से पढ़ें। उसमें दिए गए निर्देशों का पालन करें।
अनुशंसित खुराक: चिकित्सक द्वारा सुझाए गए खुराक से अधिक चूर्ण न लें। यदि आप दवा की खुराक में संशय हैं, तो चिकित्सक से परामर्श करें।
बच्चों से दूर रखें: बच्चों की पहुंच से दूर रखें ताकि वे चूर्ण को गलती से न खा लें। बच्चों के लिए दवाईयों के उपयोग पर चिकित्सक की सलाह लें।
ध्यान देने वाली बातें:
- अविपत्तिकर चूर्ण बिना चिकित्सक की सलाह के न लें।
- गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली महिलाएं इसे उपयोग न करें।
- यदि आपको किसी रोग के लिए इलाज कर रहे हैं या किसी अन्य दवा का सेवन कर रहे हैं, तो चिकित्सक से सलाह लें कि क्या अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन सुरक्षित रहेगा या नहीं।
अविपत्तिकर चूर्ण की कीमत
अविपत्तिकर चूर्ण की कीमत विभिन्न कारणों से प्रभावित होती है। यह विभिन्न ब्रांडों और पैकेजिंग में उपलब्ध होता है, जिसके कारण इसकी कीमत में भिन्नता होती है। इसके अलावा, इसकी गुणवत्ता, विशेषताएं, सामग्री का अनुपात, और अन्य चिकित्सीय उपयोग भी इसका मूल्य अधिक या कम करते हैं।
विषाक्त प्रदार्थ (टॉक्सिंस) शरीर से बाहर निकाले में सहायक
अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से कब्ज दूर होता है और आँतों की सफाई होती हैं। यह चूर्ण पाचन और डिटॉक्सिफिकेशन (विषाक्त पदार्थों का निकालना) में सहायक होता है। इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर से विषाक्त प्रदार्थों को बाहर निकालते हैं।
आयुर्वेद में डिटॉक्सिफिकेशन एक महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसमें शरीर से विषाक्त प्रदार्थों को निकाला जाता है और डिटॉक्सिफिकेशन से शरीर के अनेक संबंधित रोगों और समस्याओं को दूर करने में सहायता मिलती है।
अविपत्तिकर चूर्ण के घटक द्रव्यों की जानकारी एंव इनके आयुर्वेदिक ओषधिय गुण
काली मिर्च Piper nigrum
कालीमिर्च, जिसे अंग्रेजी में "Black Pepper" और वैज्ञानिक भाषा में "Piper nigrum" के नाम से जाना जाता है, एक मसाला और औषधीय पौधा है जो भारत में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। यह सूखी हुई कालीमिर्च बीजों के रूप में प्रयोग होता है और इसका स्वाद तीखा और खट्टा होता है।
कालीमिर्च के आयुर्वेदिक गुण और लाभ:
- पाचन शक्ति को बढाने में: कालीमिर्च पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है और भोजन को पचाने में सहायक होता है। यह आमाशय के अग्नि को उत्तेजित करता है और पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करता है।
- श्वास विकारों को दूर करने में लाभकारी: कालीमिर्च श्वसन नलिकाओं को साफ करने में मदद करता है और श्वासन संबंधी रोगों को कम करने में सहायक होता है।
- रक्तशोधक में काली मिर्च के फायदे: कालीमिर्च रक्त में संचित विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है और रक्तशोधक गुण होते हैं।
- श्वेत प्रदर दूर करने में: कालीमिर्च सफेद पानी आने से होने वाले श्वेत प्रदर की समस्या को दूर करने में मदद करता है।
- भोजन में अरुचि: कालीमिर्च अरुचि या भूख न लगने की समस्या को दूर करने में सहायक होता है और भोजन की अच्छी पाचन शक्ति के लिए उपयुक्त होता है।
सोंठ (Ginger)
सौंठ के कुछ महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक गुण और लाभ:
पाचन शक्ति को बढाने में: सोंठ पाचन शक्ति को बढ़ाती है और भोजन को पचाने में मदद करती है। यह भूख को जागृत करता है और भोजन को पचाने में भी सहायक होती है।
भोजन में अरुचि: सोंठ अरुचि या भूख न लगने की समस्या को दूर करने में मदद करती है।
एंटी-ऑक्सीडेंट्स: सोंठ में एंटी-ऑक्सीडेंट्स और विटामिन C होते हैं जो शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं।
पिप्पली (Piper longum)
- पाचन को सुधारने में : पिप्पली को पाचन को सुधारने और भोजन के पचन में मदद करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका नियमित सेवन आपके अपच को कम कर सकता है और भोजन के पचन में सुधार कर सकता है।
- श्वास-नासिकीय विकार में : पिप्पली को श्वास-नासिकीय संबंधी विकारों, जैसे कीटाणु संक्रमण, नाक से खून आना, और सांस लेने में परेशानी के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।
- सामान्य सर्दी और जुकाम के इलाज में: पिप्पली अनेक श्वासनलीय रोगों, जैसे जुकाम और खाँसी में उपयोगी होती है। इसके ताजगी और वात को नष्ट करने के गुण सर्दी और जुकाम के लक्षणों को कम करते हैं।
- अल्सर और अम्लपित्त में मदद: पिप्पली को अल्सर और अम्लपित्त (एसिडिटी) के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। इसके विशेष उपयोग से पाचक अग्नि बढ़ती है और आंत्र के कीले को संतुलित करता है।
- उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद: पिप्पली उच्च रक्तचाप को कम करने में भी मदद करती है। इसमें मौजूद खास गुण रक्तवाहिनियों को आराम प्रदान करते हैं जिससे रक्तचाप कम होता है।
आंवला/आमलकी Indian Gooseberry
आंवला, जिसे आमलकी और इंडियन गूसबेरी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला एक प्रमुख औषधीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम Emblica officinalis है। आंवला एक खास फल है, जो सेहत के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। यह भारतीय रसोई में भी उपयोग किया जाता है और इसकी मुरब्बा, चटनी, चूरण, स्वादिष्ट खीर, और शरबत बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
आंवला के संक्षिप्त फायदे :-
- वितामिन सी का भण्डार: आंवला विटामिन सी का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। विटामिन सी के कारण से यह एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है जो रोग प्रतिरोध क्षमता का विकास करता है और शरीर के रोगों के खिलाफ लड़ता है, और इम्यून सिस्टम को सुधारता है।
- रक्तशोधक गुण: आंवला रक्तशोधक भी होता है, जिससे रक्त में हेमोग्लोबिन उत्पन्न होता है और शरीर के रक्त को साफ़ करता है।
- पाचन शक्ति को सुधारना: आंवला आयुर्वेदिक मेडिसिन में पाचन शक्ति को सुधारने के लिए उपयोगी माना जाता है। इसका नियमित सेवन अपच, गैस, और एसिडिटी की समस्याओं को कम करता है।
- कब्ज़ के इलाज में मदद: आंवला पेट संबंधी समस्याओं में भी मदद करता है, जैसे कब्ज़ और पेट साफ करने में सहायक होता है।
बहेड़ा (विभितकी) (Beleric Myrobalan)
बहेड़ा (बहेरा या बिभीतकी) एक पेड़ है जिसका वैज्ञानिक नाम Terminalia bellirica है। यह पेड़ भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में पाया जाता है। बहेड़ा एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जिसे आयुर्वेद, सिद्ध और वनस्पति चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है। इसके फल, बीज, छाल और पत्तियाँ औषधीय उपयोगों के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
बहेड़ा के आयुर्वेदिक लाभ और फायदे:
- पाचन शक्ति को बढाने में: बहेड़ा पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है और अपच की समस्या को कम करने में सहायक होता है।
- विषैले पदार्थों को निकालने में: इसका नियमित सेवन विषैले पदार्थों के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
- श्वास-रोग: बहेड़ा श्वास-रोग, जैसे कि अस्थमा और ब्रोंकाइटिस, के उपचार में उपयोगी होता है।
- सिरदर्द और चक्कर दूर करना: इसका सेवन सिरदर्द और चक्कर जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करता है।
- शरीर को ताक़त देना: बहेड़ा शरीर को ताक़त देने और शारीरिक क्षमता को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
हरड (हरीतकी) (Chebulic Myrobalan)
हरड (हरीतकी), जिसे चेबुलिक मायरोबैलन (Chebulic Myrobalan) भी कहते हैं, एक औषधीय पौधा है जिसे भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में विशेष महत्व है। इसका वैज्ञानिक नाम Terminalia chebula है। यह पेड़ भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में पाया जाता है।
हरड की तासीर उष्ण होती है, जिसका अर्थ है कि यह गर्मी को बढ़ा सकता है। यह आयुर्वेद में विशेष रूप से वात और कफ दोष को शमन करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।
हरड के आयुर्वेदिक लाभ और फायदे:-
- पाचन शक्ति: हरड पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है और अपच, गैस, एसिडिटी और जीर्ण-ज्वर जैसी समस्याओं को कम करने में सहायक होता है।
- विषैले पदार्थों का नाश: इसका नियमित सेवन विषैले पदार्थों के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
- उल्टी रोग: हरड उल्टी के उपचार में उपयोगी होता है।
- चर्म रोग: इसका पानी त्वचा के लिए उपयुक्त माना जाता है और त्वचा की सेहत को सुधारने में मदद करता है।
- श्वास-रोग: हरड श्वास-रोग, जैसे कि अस्थमा और ब्रोंकाइटिस, के उपचार में उपयोगी होता है।
- दस्त: हरड दस्त जैसी समस्याओं के इलाज में भी सहायक होता है।
नागरमोथा (Cyperus rotundus)
नागरमोथा (Cyperus rotundus), जिसे सुंदी या मोथा भी कहते हैं, एक जड़ी-बूटी है जिसका वैज्ञानिक नाम Cyperus rotundus है। यह पौधा भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में पाया जाता है। नागरमोथा भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है और इसका उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज में किया जाता है।
वायविडंग (Embelia ribes)
- रस – तिक्त एवं कटु
- गुण – तीक्ष्ण , रुक्ष एवं लघु
- वीर्य – उष्ण
- विपाक – कटू
विड लवण (Rock Salt)
विड लवण के विशेष गुणों के कारण इसका उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज में किया जाता है, खासकर हृदय सम्बन्धी समस्याओं के लिए इसका अधिक महत्वपूर्ण रूप से इस्तेमाल किया जाता है। यह एक प्रकार का नमक होता है, जिसका उपयोग विशेष रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है।
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इलायची (Cardamom)
- तेजपत्र (Cinnamon)
- लौंग (Cloves)
- निशोथ (Turpeth or Operculina turpethum) turpethum
- मिश्री (Rock Candy or Crystallized Sugar)
- Ras tantra saar avum sidh prayog sangreh
- Ayurveda saar sangrah
- भैषज्य रत्नावली।
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं इस ब्लॉग पर रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियों और टिप्स यथा आयुर्वेद, हेल्थ, स्वास्थ्य टिप्स, पतंजलि आयुर्वेद, झंडू, डाबर, बैद्यनाथ, स्किन केयर आदि ओषधियों पर लेख लिखती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |