अविपत्तिकर चूर्ण परिचय, फायदे, खुराक

अविपत्तिकर चूर्ण परिचय, फायदे, खुराक Avipattikar Churna Benefits Hindi

इस लेख में हम अविपत्तिकर चूर्ण के विषय में विस्तार से जानेंगे, यथा अविपत्तिकर चूर्ण किनसे बनता है (अविपत्तिकर चूर्ण के घटक), अविपत्तिकर चूर्ण के प्रमुख लाभ/फायदे, सेवन विधि इत्यादि। इसके साथ ही हम अविपत्तिकर चूर्ण के घटक के बारे में भी जानेंगे की आयुर्वेद में इनका प्रमुख गुण/कर्म क्या है।

अविपत्तिकर चूर्ण क्या है Avipattikar Churna Parichay Hindi

अविपत्तिकर चूर्ण एक आयुर्वेदिक औषधि है जो पाउडर/चूर्ण रूप में उपयोग में ली जाती है। यह चूर्ण विभिन्न आयुर्वेदिक द्रव्यों से बनाई जाती है जिनका प्रधान गुण पित्त को संतुलित करना होता है। अपच, खट्टी डकारें, उबकाई, जी मिचलाना, गैस, एसिडिटी, पेट दर्द, कब्ज आदि विकारों में यह चूर्ण बहुत गुणकारी होता है। 

अविपत्तिकर चूर्ण एक आयुर्वेदिक औषधि है, जिसे आम तौर पर अम्लपित्त (हार्टबर्न या एसिडिटी), उदर शूल (पेट दर्द), अग्निमांद्य (पाचन कमजोरी), वातनाड़ियों में शूल (गैस और वायु रोगों का शूल), अर्श (पाईल्स या हैमराइड्स), प्रमेह (मधुमेह या डायबिटीज), मूत्राघात (मूत्र नलिकाओं में संकोच), और मूत्राश्मरी (मूत्र में पथरी) जैसी समस्याओं के उपचार में उपयोग किया जाता है।
 
अविपत्तिकर चूर्ण परिचय, फायदे, खुराक Avipattikar Churna Benefits Hindi
 
यह चूर्ण प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बना होता है और अम्लपित्त के कारण उत्पन्न होने वाले दर्द को शांत करने में मदद करता है। इसे विशेष रूप से पाचन शक्ति को बढ़ाने, पेट के रोगों को दूर करने, और मूत्र रोगों को नष्ट करने के लिए उपयोग में लिया जाता है।
 
अम्ल पित्त विकार है जिसका मुख्य कारण शरीर में अत्यधिक अम्ल (एसिडिटी) का उत्पन्न होना है। अधिक अम्ल उत्पन्न होने से पेट की पाचन प्रक्रिया पर दबाव बनता है, जिससे पेट में जलन, दर्द, तीव्र गर्मी महसूस होती है, जिसे हम अम्लपित्त या हार्टबर्न होता है।

कुछ आहार और व्यवहार अम्लपित्त को बढ़ावा देते हैं, जैसे कि तेज मिर्च, अधिक चटपटा बाजार का खाना,  चाट, पकोड़े, कचौरी, समोसे, ज्यादा चाय, मद्य (शराब), मांस, तम्बाकू आदि।

अगर अम्लपित्त बार-बार हो रही है और लम्बे समय तक बनी रह रही है, तो यह आपके पाचन तंत्र में अलसर (अल्सर) के कारण भी हो सकती है। अल्सर एक जीर्ण और विकट विकार होता है।
 

अविपत्तिकर चूर्ण के घटक द्रव्य Ingredients of Avipattikar Churna

  1. कालीमिर्च (Black Pepper) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Piper nigrum
  2. सोंठ (Ginger) - 1 भाग (part) / Botanical name: Zingiber officinale
  3. पिप्पली (Long Pepper) - 1 भाग (part) / Botanical name: Piper longum
  4. आंवला (आमलकी) (Indian Gooseberry) - 1 भाग (part) / Botanical name: Emblica officinalis (or Phyllanthus emblica)
  5. बहेड़ा (विभितकी) (Beleric Myrobalan) - 1 भाग (part) / Botanical name: Terminalia bellirica
  6. हरड (हरीतकी) (Chebulic Myrobalan) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Terminalia chebula
  7. नागरमोथा (Cyperus rotundus) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Cyperus rotundus
  8. वायविडंग (Embelia ribes) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Embelia ribes
  9. विड लवण (Rock Salt) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Not applicable (Rock salt is a natural mineral salt)
  10. इलायची (Cardamom) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Elettaria cardamomum
  11. तेजपत्र (Cinnamon) - 1 भाग (part)/ Botanical name: Cinnamomum verum
  12. लौंग (Cloves) - 10 भाग (parts) / Botanical name: Syzygium aromaticum
  13. निशोथ (Turpeth or Operculina turpethum) - 40 भाग (parts)/ Botanical name: Operculina turpethum
  14. मिश्री (Rock Candy or Crystallized Sugar) - 60 भाग (parts)/ Botanical name: Not applicable (Mishri is crystallized sugar)

अविपत्तिकर चूर्ण बनाने की विधि How To Make Avipattikar Churna Hindi

विधी: 
  • सभी द्रव्यों को अच्छे से साफ़ करें और सुखा लें।
  • धूप देकर इन सभी द्रव्यों को इमाम दस्ते में अच्छे से कूट पीस लें ताकि एक महीन चूर्ण बन जाए।
  • सभी चूर्णों को अच्छे से मिला लें।
  • आपका अविपत्तिकर चूर्ण तैयार है। इसे किसी कांच की शीशी में सहेज लें।

अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन कैसे करें Doeses of Avipattikar Churna

अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन करने का सही तरीका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। नीचे विवरण दिया गया है:

समय: अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन खाना खाने से पहले सुबह और शाम को करना चाहिए। इससे पेट की पाचन शक्ति बढ़ती है और भोजन को अच्छे से पचाने में मदद मिलती है।

मात्रा: चिकित्सक द्वारा सिफारिश की गई मात्रा के अनुसार, आम तौर पर 3 से 6 ग्राम की मात्रा रोजाना ली जाती है।

सेवन : अविपत्तिकर चूर्ण को गरम जल, शहद या दूध के साथ लेना चाहिए। शहद या दूध के साथ लेने से इसका सेवन स्वादिष्ट और सहज हो जाता है।

परामर्श: विपत्तिकर चूर्ण का सेवन करने से पहले वैद्य से परामर्श लेना चाहिए। उम्र, देशकाल, अन्य दवाओं के योग एंव विकार की जटिलता के आधार पर इसकी मात्रा निर्धारित होती है.
 
विशेष : अविपत्तिकर चूर्ण की 4-5 ग्राम मात्रा ठंडे पानी, नारियल पानी या ठंडे दूध के साथ भोजन से थोड़ी देर पहले, सुबह-शाम लिया जा सकता है और रात को सोते समय भी लिया जा सकता है। अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन करते समय तली हुई नमकीन और मसाले वाली चीज़ों का सेवन बंद रखना चाहिए। इससे इसके लाभ का अधिकतर हिस्सा प्राप्त हो सकता है और पेट संबंधी समस्याएं कम होती हैं।
 

अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे या चिकित्सकीय उपयोग Uses of Avipattikar Churna

  • हाइपर एसिडिटी या अम्लपित (Hyperacidity) की समस्या में इसका सेवन लाभदायक होता है। अविपत्तिकर चूर्ण आंत्र के एसिड को न्यूट्रीलाइज़ करता है और पेट में होने वाली जलन और तकलीफ को कम करता है।
  • भूख की कमी और अजीर्ण एवं अपच (Indigestion and Dyspepsia) में अविपत्तिकर चूर्ण के प्रयोग से लाभ मिलता है। यह पाचन तंत्र को सुधारने में मदद करता है और भूख बढ़ाने में सहायक होता है।
  • कब्ज (Constipation) में अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से लाभ मिलता है। यह मल मूत्र विकारों को दूर करने में मदद करता है और पाचन क्रिया को सुधारता है।
  • शरीर में बढ़े हुए पित्त को संतुलित करके पाचन को सुधारने का कार्य करता है। इसके उपयोग से जलन, गैस और अन्य पित्त विकारों में आराम मिलता है।
  • सीने की जलन (Acid Reflux) में अविपत्तिकर चूर्ण उपयुक्त है। यह सीने की जलन को शांत करता है और अधिक डकारों को कम करता है।
  • खट्टी डकारों से राहत मिलती है और मूत्र विकारों में भी लाभदायक है।
  • मूत्र विकारों में भी अविपत्तिकर चूर्ण लाभकारी होता है.
अविपत्तिकर चूर्ण से अम्लपित्त जनित विकार यथा छाती व पेट में जलन, पेट दर्द, पेशाब में जलन व रुकावट, अग्निमांद्य, चरपरी डकारें, उबकाई, मतली आदि समस्याएँ भी दूर होती हैं।
 

अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे / लाभ Avipattikar Churna Benefits

अविपत्तिकर चूर्ण के पाचन सुधारने से लेकर एसिडिटी सम्बन्धी कई लाभ होते हैं जो की विस्तार से निचे दिए गए हैं :-
 

एसिडिटी (अम्लपित्त ) को दूर करने में लाभदायक है अविपत्तिकर चूर्ण Avipattikar Churna beneficial in acidity

अम्लपित्त के लक्षण छाती में जलन, उबाक, वमन, कण्ठ में दाह, नेत्रों में जलन आदि होते हैं। इस विकार में अपचन या जीर्ण रोग होने पर अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन शीतल जल या नारियल के जल के साथ करने का मकसद अमाशय में पित्त की मात्रा को शांत करना है, जिससे आमाशय का पित्त आतों में नहीं जाता है। यह उपाय पित्त के प्रकोप को रोकने और आम नाशक गुणों से भरपूर होता है।
 
अम्ल पित्त : अविपत्तिकर चूर्ण अम्ल पित्त विकार में सबसे अधिक उपयोगी होता है। अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से अम्ल पित्त तथा अम्ल पित्त के कारण से होने वाले उदर शूल, अग्निमांद्य, वातनाड़ियां में उत्पन्न दर्द, अर्श, प्रमेह, मूत्रघात, मूत्राश्मरी का नाश होता है। शीघ्र लाभ के लिए केवल दूध और हल्का भोजन लेना चाहिए। अम्ल पित्त  विकार में छाती में जलन और भारीपन उत्पन्न हो जाता है। अम्ल पित्त के बढ़ जाने पर जी घबराना, मतली का आना और उल्टी जैसा महसूस होने लगता है। वमन अत्यंत खट्टी और कंठ में जलन पैदा करने वाली होती है। 
 
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पित्त संतुलन करने में लाभकारी अविपत्तिकर चूर्ण

निसोत (निसोथ) एक प्रमुख विरेचन औषधि है, जिसका उपयोग विरेचन गुण को प्राप्त करने में किया जाता है और आमाशय में संगृहीत पित्त को शरीर से बाहर निकालने में सहायक होता है। अतः इस चूर्ण के सेवन से आप पित्त को संतुलित कर लेते हैं और पित्त जनित विकारों से छुटकारा पा लेते हैं.

पेट की शुद्धि में सहायक है अविपत्तिकर चूर्ण

वृक्क दाह (प्रोस्टेट ग्लैंड का संशोधन) के कारण आमाशय में पित्त की अधिकता हो सकती है, मल त्याग अवरुद्ध हो सकता है। अमाशय में पित्त की अधिकता से आपको आलस्य होता है और शरीर निस्तेज बन जाता है। इस चूर्ण से आँतों की सफाई होती है और विषाक्त प्रदार्थ शरीर से बाहर निकलते हैं साथ ही मल त्याग भी सुगम बन जाता है।
 

पाचन शक्ति को मजबूत बनाने में अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे

अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन वास्तव में भूख को बढ़ाने वाले (दीपन) और पाचन (पाचन) गुणों के कारण आम को पचाने में मदद करता है और वात, पित्त, और कफ के असंतुलन को संतुलित करता है। उल्लेखनीय है की कम पाचन अग्नि (मंद अग्नि) के कारण अपच होता है और आम का निर्माण होता है जिससे भूख में कमी, अरुचि होने लगती है। आम बढ़ने से वात कफ पित्त का संतुलन बिगड़ जाता है। अविपत्तिकर चूर्ण में दीपन (भूख बढ़ाने वाले) और पाचन गुणों के कारण आम को पचाकर शारीरिक शक्ति में वृद्धि के साथ ही पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाता है।
 

आईबीएस आंत्र विकार में लाभकारी है अविपत्तिकर चूर्ण

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) जिसे ग्रहणी कहते हैं, इस विकार में पाचन अग्नि असंतुलित हो जाती है। इस विकार के कारण दस्त, तनाव और अन्य मानसिक विकार पैदा होते हैं। ऐसी स्थिति में शरीर में आम का निर्माण अधिक होने लगता है। मल अधिक तरल होने लगता है। इस विकार में अविपत्तिकर चूर्ण लाभकारी होता है क्योंकि इसमें दीपन (भूख बढ़ाने वाला), पचन (पाचन) और रेचक (रेचक) गुण होते हैं। यह चूर्ण भोजन को पचाने में बहुत लाभकारी होता है।
 

भूख बढाने के लिए अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे

कम पाचन अग्नि (मंद अग्नि) के कारण भूख में कमी आने लगती है और शरीर को समुचित पोषण नहीं मिल पाता है और इसका प्रधान कारण पाचन तंत्र की कमजोरी होता है। ऐसे में अविपत्तिकर चूर्ण लेने से भोजन का पाचन सुधरता है और अरुचि समाप्त होती है।
 

बवासीर के लिए अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे

बवासीर का मुख्य कारण भी पाचन ही होता है। पाचन की कमजोरी के कारण मल त्याग सुगम नहीं होता है और मल त्याग में अधिक जोर लगाना पड़ता है। मल के शरीर में रहने से विषाक्त प्रदार्थ बढ़ते हैं और गर्मी भी बढती है। बवासीर में अविपत्तिकर चूर्ण विशेष रूप से मल को ढीला करके शरीर से बाहर निकालने में सहायक होता है और गुदा द्वार पर होने वाली सुजन को भी कम करता है।
 

मोटापे के लिए अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे

सुस्त जीवन शैली के कारण मोटापा बढ़ने लगता है। मोटापा में अपच के कारण आम वसा के रूप में जमा होने लगती है। यह स्थिति कभी-कभी कब्ज के कारण भी हो सकती है जो आगे चलकर मेद धातु के असंतुलन का कारण बनती है जिसके परिणामस्वरूप मोटापा होता है। अविपत्तिकर चूर्ण से आप मोटापे को भी कम कर सकते हैं। यह अपने दीपन (भूख बढ़ाने वाला) और पचन (पाचन) गुणों के कारण वसा संचय को कम करने में मदद करता है। यह अपने रेचक (रेचक) गुण के कारण कब्ज को भी दूर करता है।
 

पेशाब की रुकावट दूर करने में सहायक

अविपत्तिकर चूर्ण में पाए जाने वाले डियूरेटिक्स गुण उपयुक्त मात्रा में सेवन करने से पेशाब में रुकावट की समस्या में राहत मिल सकती है। डियूरेटिक्स गुण के कारण पेशाब का उत्पादन बढ़ जाता है और इससे शरीर में मौजूद गंदगी और विषैले पदार्थ भी निकल जाते हैं। इससे पेशाब का आवरण खुलता है और पेशाब निकलने में आसानी होती है।
 

अविपत्तिकर चूर्ण के दुष्परिणाम Side effects of Avipattikar Churna

अविपत्तिकर चूर्ण एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसके कोई ज्ञात दुष्परिणाम नहीं है फिर भी आप इसके सेवन से पूर्व वैद्य की सलाह लेंवे। आँतों में सूजन हो जाने पर इसका सेवन प्रायः नहीं करना चाहिए। निश्चित मात्रा से अधिक मात्रा और वैद्य द्वारा बताए गए समय से अधिक/लम्बे समय तक अविपत्तिकर चूर्ण का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। 

अविपत्तिकर चूर्ण भंडारण और सुरक्षा जानकारी

अविपत्तिकर चूर्ण को उपयुक्त ढंग से भंडारित और सुरक्षित रखने के लिए निम्नलिखित निर्देश अनुसरण करें:-

भंडारण: अविपत्तिकर चूर्ण को शीतल और सूखी जगह पर भंडारित करें। उच्च तापमान और नम जगह से इसे बचाएं, क्योंकि इससे चूर्ण की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
लेबल को पढ़ें: अविपत्तिकर चूर्ण के उपयोग से पहले लेबल ध्यान से पढ़ें। उसमें दिए गए निर्देशों का पालन करें।

अनुशंसित खुराक: चिकित्सक द्वारा सुझाए गए खुराक से अधिक चूर्ण न लें। यदि आप दवा की खुराक में संशय हैं, तो चिकित्सक से परामर्श करें।

बच्चों से दूर रखें: बच्चों की पहुंच से दूर रखें ताकि वे चूर्ण को गलती से न खा लें। बच्चों के लिए दवाईयों के उपयोग पर चिकित्सक की सलाह लें।

ध्यान देने वाली बातें:
  • अविपत्तिकर चूर्ण बिना चिकित्सक की सलाह के न लें।
  • गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली महिलाएं इसे उपयोग न करें।
  • यदि आपको किसी रोग के लिए इलाज कर रहे हैं या किसी अन्य दवा का सेवन कर रहे हैं, तो चिकित्सक से सलाह लें कि क्या अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन सुरक्षित रहेगा या नहीं।

अविपत्तिकर चूर्ण की कीमत

अविपत्तिकर चूर्ण की कीमत विभिन्न कारणों से प्रभावित होती है। यह विभिन्न ब्रांडों और पैकेजिंग में उपलब्ध होता है, जिसके कारण इसकी कीमत में भिन्नता होती है। इसके अलावा, इसकी गुणवत्ता, विशेषताएं, सामग्री का अनुपात, और अन्य चिकित्सीय उपयोग भी इसका मूल्य अधिक या कम करते हैं।
 

विषाक्त प्रदार्थ (टॉक्सिंस) शरीर से बाहर निकाले में सहायक

अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से कब्ज दूर होता है और आँतों की सफाई होती हैं। यह चूर्ण पाचन और डिटॉक्सिफिकेशन (विषाक्त पदार्थों का निकालना) में सहायक होता है। इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर से विषाक्त प्रदार्थों को बाहर निकालते हैं।

आयुर्वेद में डिटॉक्सिफिकेशन एक महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसमें शरीर से विषाक्त प्रदार्थों को निकाला जाता है और डिटॉक्सिफिकेशन से शरीर के अनेक संबंधित रोगों और समस्याओं को दूर करने में सहायता मिलती है। 

अविपत्तिकर चूर्ण के घटक द्रव्यों की जानकारी एंव इनके आयुर्वेदिक ओषधिय गुण

काली मिर्च Piper nigrum

कालीमिर्च, जिसे अंग्रेजी में "Black Pepper" और वैज्ञानिक भाषा में "Piper nigrum" के नाम से जाना जाता है, एक मसाला और औषधीय पौधा है जो भारत में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। यह सूखी हुई कालीमिर्च बीजों के रूप में प्रयोग होता है और इसका स्वाद तीखा और खट्टा होता है।

कालीमिर्च के आयुर्वेदिक गुण और लाभ:
  1. पाचन शक्ति को बढाने में: कालीमिर्च पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है और भोजन को पचाने में सहायक होता है। यह आमाशय के अग्नि को उत्तेजित करता है और पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करता है।
  2. श्वास विकारों को दूर करने में लाभकारी: कालीमिर्च श्वसन नलिकाओं को साफ करने में मदद करता है और श्वासन संबंधी रोगों को कम करने में सहायक होता है।
  3. रक्तशोधक में काली मिर्च के फायदे: कालीमिर्च रक्त में संचित विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है और रक्तशोधक गुण होते हैं।
  4. श्वेत प्रदर दूर करने में: कालीमिर्च सफेद पानी आने से होने वाले श्वेत प्रदर की समस्या को दूर करने में मदद करता है।
  5. भोजन में अरुचि: कालीमिर्च अरुचि या भूख न लगने की समस्या को दूर करने में सहायक होता है और भोजन की अच्छी पाचन शक्ति के लिए उपयुक्त होता है।

सोंठ (Ginger)

सोंठ (Ginger) भारतीय रसोई में अदरक/सौंठ अवश्य ही पाई जाती जिसका आयुर्वेद में भी महत्वपूर्ण स्थान है। अदरक को सुखाकर सौंठ बनाई जाती है जो गुणों में और अधिक उपयोगी होती है। सोंठ की तासीर गर्म होती है।
सौंठ के कुछ महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक गुण और लाभ:
 
पाचन शक्ति को बढाने में: सोंठ पाचन शक्ति को बढ़ाती है और भोजन को पचाने में मदद करती है। यह भूख को जागृत करता है और भोजन को पचाने में भी सहायक होती है।
भोजन में अरुचि: सोंठ अरुचि या भूख न लगने की समस्या को दूर करने में मदद करती है।
एंटी-ऑक्सीडेंट्स: सोंठ में एंटी-ऑक्सीडेंट्स और विटामिन C होते हैं जो शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं।

पिप्पली (Piper longum)

पिप्पली (Piper longum) एक वनस्पतिक पौधे का फल है जिसका बोटैनिकल नाम Piper longum है। यह एक चिकना, लंबा मसाला है जो अपने विशिष्ट स्वाद और आरोग्यवर्धक गुणों के लिए प्रसिद्ध है। पिप्पली भारत, इंडोनेशिया, थाईलैंड, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे दक्षिण एशियाई देशों में अधिकता से पाई जाती है। 
 
पिप्पली का आयुर्वेदिक उपयोग:
  1. पाचन को सुधारने में : पिप्पली को पाचन को सुधारने और भोजन के पचन में मदद करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका नियमित सेवन आपके अपच को कम कर सकता है और भोजन के पचन में सुधार कर सकता है।
  2. श्वास-नासिकीय विकार में : पिप्पली को श्वास-नासिकीय संबंधी विकारों, जैसे कीटाणु संक्रमण, नाक से खून आना, और सांस लेने में परेशानी के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।
  3. सामान्य सर्दी और जुकाम के इलाज में: पिप्पली अनेक श्वासनलीय रोगों, जैसे जुकाम और खाँसी में उपयोगी होती है। इसके ताजगी और वात को नष्ट करने के गुण सर्दी और जुकाम के लक्षणों को कम करते हैं।
  4. अल्सर और अम्लपित्त में मदद: पिप्पली को अल्सर और अम्लपित्त (एसिडिटी) के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। इसके विशेष उपयोग से पाचक अग्नि बढ़ती है और आंत्र के कीले को संतुलित करता है।
  5. उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद: पिप्पली उच्च रक्तचाप को कम करने में भी मदद करती है। इसमें मौजूद खास गुण रक्तवाहिनियों को आराम प्रदान करते हैं जिससे रक्तचाप कम होता है।

आंवला/आमलकी Indian Gooseberry

आंवला, जिसे आमलकी और इंडियन गूसबेरी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला एक प्रमुख औषधीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम Emblica officinalis है। आंवला एक खास फल है, जो सेहत के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। यह भारतीय रसोई में भी उपयोग किया जाता है और इसकी मुरब्बा, चटनी, चूरण, स्वादिष्ट खीर, और शरबत बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।

आंवला के संक्षिप्त फायदे :-
  1. वितामिन सी का भण्डार: आंवला विटामिन सी का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। विटामिन सी के कारण से यह एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है जो रोग प्रतिरोध क्षमता का विकास करता है और शरीर के रोगों के खिलाफ लड़ता है, और इम्यून सिस्टम को सुधारता है।
  2. रक्तशोधक गुण: आंवला रक्तशोधक भी होता है, जिससे रक्त में हेमोग्लोबिन उत्पन्न होता है और शरीर के रक्त को साफ़ करता है।
  3. पाचन शक्ति को सुधारना: आंवला आयुर्वेदिक मेडिसिन में पाचन शक्ति को सुधारने के लिए उपयोगी माना जाता है। इसका नियमित सेवन अपच, गैस, और एसिडिटी की समस्याओं को कम करता है।
  4. कब्ज़ के इलाज में मदद: आंवला पेट संबंधी समस्याओं में भी मदद करता है, जैसे कब्ज़ और पेट साफ करने में सहायक होता है।

बहेड़ा (विभितकी) (Beleric Myrobalan)

बहेड़ा (बहेरा या बिभीतकी) एक पेड़ है जिसका वैज्ञानिक नाम Terminalia bellirica है। यह पेड़ भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में पाया जाता है। बहेड़ा एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जिसे आयुर्वेद, सिद्ध और वनस्पति चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है। इसके फल, बीज, छाल और पत्तियाँ औषधीय उपयोगों के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

बहेड़ा के आयुर्वेदिक लाभ और फायदे:
  • पाचन शक्ति को बढाने में: बहेड़ा पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है और अपच की समस्या को कम करने में सहायक होता है।
  • विषैले पदार्थों को निकालने में: इसका नियमित सेवन विषैले पदार्थों के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
  • श्वास-रोग: बहेड़ा श्वास-रोग, जैसे कि अस्थमा और ब्रोंकाइटिस, के उपचार में उपयोगी होता है।
  • सिरदर्द और चक्कर दूर करना: इसका सेवन सिरदर्द और चक्कर जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करता है।
  • शरीर को ताक़त देना: बहेड़ा शरीर को ताक़त देने और शारीरिक क्षमता को बढ़ाने में मदद कर सकता है।

हरड (हरीतकी) (Chebulic Myrobalan)

हरड (हरीतकी), जिसे चेबुलिक मायरोबैलन (Chebulic Myrobalan) भी कहते हैं, एक औषधीय पौधा है जिसे भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में विशेष महत्व है। इसका वैज्ञानिक नाम Terminalia chebula है। यह पेड़ भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में पाया जाता है।

हरड की तासीर उष्ण होती है, जिसका अर्थ है कि यह गर्मी को बढ़ा सकता है। यह आयुर्वेद में विशेष रूप से वात और कफ दोष को शमन करने के लिए उपयुक्त माना जाता है।

हरड के आयुर्वेदिक लाभ और फायदे:-

  1. पाचन शक्ति: हरड पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है और अपच, गैस, एसिडिटी और जीर्ण-ज्वर जैसी समस्याओं को कम करने में सहायक होता है।
  2. विषैले पदार्थों का नाश: इसका नियमित सेवन विषैले पदार्थों के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
  3. उल्टी रोग: हरड उल्टी के उपचार में उपयोगी होता है।
  4. चर्म रोग: इसका पानी त्वचा के लिए उपयुक्त माना जाता है और त्वचा की सेहत को सुधारने में मदद करता है।
  5. श्वास-रोग: हरड श्वास-रोग, जैसे कि अस्थमा और ब्रोंकाइटिस, के उपचार में उपयोगी होता है।
  6. दस्त: हरड दस्त जैसी समस्याओं के इलाज में भी सहायक होता है।

नागरमोथा (Cyperus rotundus)

नागरमोथा (Cyperus rotundus), जिसे सुंदी या मोथा भी कहते हैं, एक जड़ी-बूटी है जिसका वैज्ञानिक नाम Cyperus rotundus है। यह पौधा भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में पाया जाता है। नागरमोथा भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है और इसका उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज में किया जाता है।

वायविडंग (Embelia ribes)

विडंग (Vidanga), जिसे इंग्लिश में Embelia ribes के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधा है जिसका वैज्ञानिक नाम Embelia ribes Burm.f. है। यह पौधा भारत में पाया जाता है और इसका उपयोग आयुर्वेद में विभिन्न रोगों के इलाज में किया जाता है। विडंग कटु, ईषत् तिक्त, कषाय, उष्ण, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कफवातशामक, दीपन, पाचन, रुचिकारक, कृमिघ्न, कुष्ठघ्न, शिरोविरेचनोपग, व्रणशोधक तथा आमपाचक होता है। 
 
वायविडंग के गुण धर्म
  • रस – तिक्त एवं कटु
  • गुण – तीक्ष्ण , रुक्ष एवं लघु
  • वीर्य – उष्ण
  • विपाक – कटू
इसके प्रयोग से विभिन्न प्रकार के पेट के कृमि (कीड़े) जैसे गोलकृमि, धागाकृमि और टेपवर्म आदि के उपचार किया जाता है। इसके रक्तशोधक गुणों से रक्त की अशुद्धियों को दूर करने के साथ-साथ शरीर से टॉक्सिंस को बाहर निकालने में भी उपयोगी है। यह पाचन को ठीक करता है और अग्निमंध्य (पाचक अग्नि की कमी) की समस्या को दूर करता है। विडंग में एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण भी होते हैं, जो इसे त्वचा विकारों में भी फायदेमंद होते हैं। इसका उपयोग कफ जनित कृमि के उपचार में भी लाभदायक होता है और मधुमेह के इलाज में भी फायदेमंद हो सकता है।

विड लवण (Rock Salt)

विड लवण आयुर्वेद में बहुत गुणकारी माना गया है और हृदय रोग के लिए अत्यंत उत्तम माना जाता है। इसका उपयोग दीपन और पाचन को उत्तेजित करने, त्रिदोषों को शामक करने, शीत वीर्य (ठंडी तासीर) प्रदान करने और पचने में सहायक होने के लिए किया जाता है। इससे हमारे पेट का पाचक रस बढ़ता है और यह शरीर में पूरी तरह से घुलनशील होता है।

विड लवण के विशेष गुणों के कारण इसका उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज में किया जाता है, खासकर हृदय सम्बन्धी समस्याओं के लिए इसका अधिक महत्वपूर्ण रूप से इस्तेमाल किया जाता है। यह एक प्रकार का नमक होता है, जिसका उपयोग विशेष रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। 
 
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इलायची (Cardamom)

छोटी इलायची का वानस्पतिक नाम Elettaria cardamomum (भीषकुसुमश्रेणी) है जो कि Zingiberaceae यानी अदरक के परिवार का पौधा है। इसका अंग्रेज़ी नाम Lesser cardamom और Cardamom fruit है। इसे संस्कृत में एला (Ela) शब्द से संबोधित किया जाता है और काव्यग्रन्थों में भी छोटी इलायची के लिए एला (Ela) शब्द का उपयोग किया जाता है।
इलायची (एला शब्द से संबोधित) वास्तव में पेट में गैस और एसिडिटी में राहत प्रदान कर सकती है। यह एक प्राकृतिक औषधि है जिसमें अनेक गुण होते हैं जो पाचन को सुधारने और पेट की गैस और एसिडिटी को कम करने में मदद करते हैं। भोजन के बाद नियमित रूप से इलायची का सेवन करने से आपको भोजन को पचाने में भी मदद मिलती है। छोटी इलायची (एला) को उल्टी बंद करने में उपयोगी माना जाता है। यह आपकी पाचन शक्ति को मजबूत करती है और पेट की समस्याओं को ठीक करती है, जिससे उल्टी की समस्या में लाभ होता है।

  • तेजपत्र (Cinnamon)
  • लौंग (Cloves)
  • निशोथ (Turpeth or Operculina turpethum) turpethum
  • मिश्री (Rock Candy or Crystallized Sugar) 
 
सन्दर्भ : References:
  1. Ras tantra saar avum sidh prayog sangreh
  2. Ayurveda saar sangrah
  3. भैषज्य रत्नावली।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। अधिक और विस्तृत जानकारी जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं इस ब्लॉग पर रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियों और टिप्स यथा आयुर्वेद, हेल्थ, स्वास्थ्य टिप्स, पतंजलि आयुर्वेद, झंडू, डाबर, बैद्यनाथ, स्किन केयर आदि ओषधियों पर लेख लिखती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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