द्राक्षावलेह क्या है फायदे उपयोग विधि Drakshavleh Ke Fayade Uses Benefits Hindi

द्राक्षावलेह क्या है : Drakshavleh Kya Hota Hai (What is Drakshavleha)

द्राक्षावलेह क्या है फायदे उपयोग विधि Drakshavleh Ke Fayade Uses Benefits Hindi


द्राक्षावलेह एक आयुर्वेदिक "अवलेह" आधारित ओषधि है। अवलेह से आशय है ऐसी ओषधि जो पेस्ट की भाँती हो और जिसे चाट कर उपयोग में लिया जाता है, जैसे की चव्यनप्राश भी एक अवलेह ही होता है। द्राक्षावलेह का प्रधान घटक द्राक्ष या दाख (बड़ी काली किसमिश) होती है। इसे अन्य निर्धारित हर्ब की निर्धारित मात्रा के साथ मिलाकर बनाया जाता है।

द्राक्षावलेह के घटक Drakshavleha Ghatak Composition of Drakshavleha Ayurvedic Medicine.

Drakshavleh Ke Ghatak Dravya रसतंत्रसार एंव सिद्धप्रयोगसंग्रह खंड प्रथम के मुताबिक़ द्राक्षावलेह में निम्न घटक होते हैं।
  • जायफल/जातीफल Myristica fragrans
  • जावित्री Mace
  • छोटी इलायची Small cardamom
  • वंशलोचन Banshlochan
  • लौंग क्लोवस (Cloves), जंजिबर रैड हेड (Zanzibar red head)
  • दालचीनी True Cinnamon
  • तेजपत्र Cinnamomum tamala Nees (Buch.-Ham) & Eberm. (सिनैमोमम् तमाला) Syn-Cinnamomum albiflorum Nees
  • नागकेशर Mesua ferrea, Cobras Saffron,
  • कमल गट्टा (छिलका व् जीभी निकाली हुयी गिरी) Lotus Seeds

द्राक्षावलेह के फायदे Drakshavleh Ke Fayade Hindi (Benefits of Drakshavleh Hind)

  • द्राक्षावलेह के सेवन से अम्लपित्त (एसिडिटी) में लाभ मिलता है।
  • रक्तपित्त विकार (हेमोरेजिक हिजीज) में द्राक्षावलेह के सेवन से शीघ्र लाभ मिलता है। (Bleeding, also called hemorrhage, is the name used to describe blood loss. It can refer to blood loss inside the body, called internal bleeding, or to blood loss outside of the body, called external bleeding. Blood loss can occur in almost any area of the body. ) 
  • रक्तपित्त विकार पित्त की गर्मी के बढ़ जाने से होता है। मुंह, नाक, गुदा, आदि स्थानों के अतिरिक्त लिंग/योनि से रक्त का स्राव रक्तपित्त हो सकता है।
  • दाह रोग में भी द्राक्षावलेह के सेवन से लाभ मिलता है। दाह के रोगी को शरीर में जलन महसूस होती है। भावप्रकाश में दाह के सात प्रकार बताये गए हैं। दाह के विकार में अत्यधिक प्यास का लगना, शरीर में जलन का रहना, जी का घबराना आदि लक्षण प्रमुख हैं।
  • पाण्डु विकार में भी इस ओषधि के सेवन से लाभ मिलता है। पाण्डु विकार से आशय की रक्त का विकारग्रस्त हो जाना और चमड़ी का रंग पीला पड़ जाना। यह कफज, वातज, पित्तज और सन्निपातज चार प्रकार का होता है। पाण्डु रोग में रोगी को शरीर में कम्पन और दर्द, शूल, भ्रम, तंद्रा, आलस्य, खाँसी, श्वास, अरुचि और अंगों में सूजन आदि लक्षण होते हैं।
  • कामला Jaundice (पीलिया) रोग में भी द्राक्षावलेह का सेवन गुणकारी बताया गया है। यह विकार पित्त के बढ़ जाने से होता है और इसका प्रधान कारण प्रकुपित पित्त रक्त तथा मांस धातु है।शाखा आश्रित कामला (Obstructive Jaundice), कोष्ठ कामला (Hepatic Jaundice) कोष्ठशाखा आश्रित कामला (Hemolytic Jaundice) इसके भेद हैं।
  • क्षय, भ्रम, शोथ, सिरदर्द, बुद्धकोष्ठ, अतिसार, अरुचि, मंदाग्नि, रक्तार्श आदि विकारों में भी द्राक्षावलेह का सेवन लाभकारी बताया गया है।
  • खून की कमी, श्वास, और कास में लाभकारी होता है।
  • द्राक्षावलेह एक रसायन है अर्थात इसके सेवन से शरीर को बल मिलता है, शरीर में विभिन्न विटामिन्स और खनिज की कमी को दूर करता है। इसके अतिरिक्त खून की कमी को दूर करने में भी लाभदाई होता है। सम्पूर्ण शरीर में ऊर्जा का संचार करता है।
  • कफ्फ खांसी, जुकाम स्वसन तंत्र के विकारों को दूर करने के लिए भी यह लाभदाई होता है।
  • शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है।
  • पित्त को संतुलित कर भूख को जाग्रत करने में लाभदाई है एंव पाचन तंत्र विकारों में भी लाभदाई है।
  • पांडू रोग (खून की कमी) को दूर करने में लाभकारी।
  • जौंडिस विकार में प्रभावी होता है।
  • अम्लपित्त (Acidity), रक्तपित्त, दाह (जलन) को दूर करने में लाभकारी।
  • क्षय और भ्रम (याददास्त की कमी) मानसिक कमजोरी में लाभकारी।
  • अम्लपित्त में अत्यंत ही उपयोगी।
  • भोजन में अरुचि और मन्दाग्नि को दूर करता है।
  • रक्तार्श (खूनी बवासीर) की दाह (जलन) में लाभकारी।
  • यकृत और लीवर के विकारों में लाभकारी।
  • जो व्यक्ति नियमित रूप से एलकोहोल लेने के आदि बन चुके हैं उनके लिए लीवर की कमजोरी को दूर करने के लिए यह श्रेष्ठ ओषधि है।
  • छाती में किसी भी प्रकार की जलन को दूर करने के लिए उत्तम है।

How To Make Drakshavleha द्राक्षावलेह कैसे बनाएं / द्राक्षावलेह बनाने की विधि

द्राक्षावलेह को आप बड़ी ही आसानी से घर पर बना सकते हैं। इसे बनाने के लिए आप विशेष रूप से ध्यान रखें की स्वछता का पूर्ण ध्यान रखा जाय और इसे बनाने के लिए जो भी सामग्री आप बाजार से लेकर आते हैं वह गुणवत्ता की हो और उसमें कोई मिलावट नहीं हो इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखें। किसी विश्वास पात्र पंसारी से ही आप इन्हे खरीदें। यदि आपको इनकी परख नहीं है तो किसी वैद्य या जानकार व्यक्ति से राय अवश्य प्राप्त कर लेंवे। सामग्रियों के सबंध में उल्लेखनीय है की यहाँ आपको शास्त्र के मुताबिक ही सामग्री बताई गयी है।

द्राक्षावलेह बनाने के लिए सबसे पहले आप निम्न सामग्री लें।
  • मुन्नका दाख 1 किलो ग्राम
  • गाय का घी 200 ग्राम
  • मिश्री या शक्कर 2 किलोग्राम
  • जायफल 15 ग्राम
  • जावित्री 15 ग्राम
  • इलाइची 15 ग्राम
  • वंशलोचन 15 ग्राम
  • लौंग 15 ग्राम
  • दालचीनी। 15 ग्राम
  • तेजपत्ता 15 ग्राम
  • नागकेशर 15 ग्राम
  • कमलगट्टे की मिंगी 15 ग्राम
  • केशर 3 ग्राम उचित मात्रा में सामग्री लेकर निम्न चरणों का पालन करें।
द्राक्षा को अच्छे से साफ़ कर लें (धोकर साफ़ कर लें ) बाहर की समस्त अशुद्धियों को दूर कर लें।
द्राक्षा को पानी में तीन से चार घंटों घंटे तक भिगोएं। पानी इतना ही डालें जिसमे दाख मुनक्का डूब जाएँ। ज्यादा पानी नहीं डालें।
तीन से चार घंटे के उपरान्त मुनक्का के फूल जाने पर छलनी से पानी को अलग कर लें। अब इस पानी को अलग बर्तन में रख लें क्योंकि आगे चीनी की चासनी बनाने के लिए हम इसी पानी का उपयोग करेंगे।
इसके उपरान्त हाथों से इसके बीजों को अलग कर लें।
बीजों को अलग करने के उपरान्त अब इसको मिक्सी में अच्छे से पीस कर एक पेस्ट तैयार कर लें।
एक बड़ी कड़ाही में २०० ग्राम शुद्ध देसी गाय का घी गर्म करें और धीमी आंच पर मुनक्का के पेस्ट को सेक लें, पका लें। पेस्ट को निचे चिपकने नहीं दे। पेस्ट के गाढ़े होने के उपरान्त जब यह घी छोड़ने लगे तो समझें की मुनक्का अच्छे से घी में पक गई है। अब इसे आंच से उतार कर ठंडा कर लें।
दूसरी कड़ाही में चीनी के साथ मुनक्का को भिगोने में कार्य में लिए गए पानी चासनी बना लें। चासनी के तैयार हो जाने पर इसमें द्राक्ष के पके हुए पेस्ट को मिला दें। थोड़ा गाढ़ा हो जाने के उपरान्त इसे आंच से उतार लें और ठंडा होने के उपरान्त सभी घटक चूर्ण को मिला दें।
अच्छे से मिलने के उपरांत कांच के डिब्बे में भंडारण करें। विभिन्न द्राक्षावलेह के निर्माता के सबंध में जानकारी

साधना द्राक्षावलेह Sadhna Drakshavleha
निर्माता :
साधना आयुर्वेदा Sadhana Ayurvedics, E-109, Road No.1 M.I.A., Madri, Udaipur-313001, (Rajasthan )
वेबसाइट :- https://www.sadhanaayurvedics.com/index.php?route=product/product&product_id=1

डाबर द्राक्षावलेह Dabur Drakshavelaha
निर्माता - डाबर
वेबसाइट :- https://www.dabur.com/daburmediclub/products/avaleha-pak/drakshavaleha-saffron.html

वैद्यनाथ द्राक्षावलेह Vaidynath Drakshvleha
250 GM MRP : 194.00
Website- https://www.baidyanath.co.in/drakshavaleha-details.aspx

Therapeutic uses: Useful in Anemia,constipation,catarrh. This herbal jam is ideal for those taking regular alcohol. It protects and supports normal liver functions.
Ingredients: Raisins (Dry grapes), Long pepper, sugar, licorice, Ginger, Amla, Dugdha, kesar, lavang, jatiphala,ela, tejapatra,tavak,kamal gatha
Reference: R.T.S & S.P.S

द्राक्षावलेह के घटक के विषय में अधिक जानें Ingredients of Drakshavleha Hindi

द्राक्षा Vitis vinifera Linn के फायदे द्राक्षावलेह में मुख्य रूप से दाख/द्राक्ष का उपयोग होता है जो स्वतंत्र रूप से बहुत ही लाभकारी होती है। यह दो प्रकार की होती है सफ़ेद और काली, इनमें से सफ़ेद अधिक मीठी होती है लेकिन काली दाख के उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में अधिकता से किया जाता है। काली दाख की गणना उत्तम फलों में की जाती है ।काली दाख में ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) पाया जाता है जो सेहत के अधिक लाभकारी होती है। यह काली द्राक्ष अधिक लाभकारी होती है और विभिन्न पोषक तत्वों से भरपूर होती है यथा केल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, सोडियम, जिंक आदि । काली द्राक्ष में शर्करा और कार्बोहाइडरेड प्रचुर मात्र में मिलते हैं। अंगूर का वानस्पतिक नाम Vitis vinifera Linn। (वाइटिस वाइनिफेरा) है और यह Vitaceae (वाइटेसी) कुल से सबंधित है। द्राक्ष की तासीर हलकी गर्म होती है ।

दाख के सेवन से आपका मौखिक स्वास्थ्य दुरुस्त रहता है, मसूड़ों में होने वाले विकारों से सुरक्षा मिलती है। एक शोध के मुताबिक़ दाख में एंटीमाइक्रोबियल यौगिक जैसे ओलीनोलिक एसिड, ओलीनोलिक एल्डिहाइड, लिनोलिक एसिड और लिनोलेनिक एसिड पाए जाते हैं जो मसूड़ों की बीमारियों में रोकथाम करते हैं। दाख के सेवन से याददास्त बढती है। कमजोर शरीर / भोजन में पोषक तत्वों के अभाव के कारण याददास्त में कमजोरी आने लगती है। 
  • दांतों में होने वाली केविटी की रोकथाम मैं भी इसके सेवन से लाभ मिलता है। (1)
  • काली किशमिश / दाख के सेवन से अनीमिया रोग में लाभ मिलता है। (2)
  • हृदय के लिए द्राक्ष बहुत ही लाभकारी होती है, हृदय घाट के जोखिम को कम करने में सहायक होती है (3)
  • एक शोध के मुताबिक दाख के सेवन से कैंसर जैसी भयंकर बिमारी की रोकथाम में मदद मिलती है। (4)
  • भोजन के उपरान्त छाती में जलन जैसे विकारों में भी दाख के सेवन से लाभ मिलता है। (5)
  • दाख के सेवन से शरीर में सामान्य दुर्बलता दूर होती है। (6)
  • वजन नियंत्रण में भी दाख के सेवन से लाभ मिलता है (7)
  • यौन दुर्बलता को दूर करने में भी दाख के सेवन से लाभ मिलता है (8)
  • शरीर में होने वाले विभिन्न संक्रमण को दूर करने में भी दाख के सेवन से लाभ मिलता है।(9)
  • बुखार को दूर करने में भी दाख का सेवन बहुत ही लाभदाई होता है। (10)
  • द्राक्ष यह पित्तशामक और रक्तवर्धक होती है।
  • द्राक्ष बलगम को पतला करके शरीर से बाहर निकालने में उपयोगी होती है।
  • द्राक्ष में बीटा कैरोटीन पाया जाता है जो आँखों के लिए बहुत ही उपयोगी होता है।
  • फेफड़ों के लिए मुनक्का बहुत ही लाभदाई होता है यह फेफड़ों से विषाक्त प्रदार्थों को बाहर निकालने में उपयोगी होता है।
  • मुनक्का आयरन का अच्छा स्त्रोत है यह खून की कमी को दूर करता है।
  • मुनक्का में प्रयाप्त मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंटस होते हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करने में सहयोगी होते हैं और कई गंभीर बीमारियों से हमारी रक्षा करते हैं।
  • मुनक्का के सेवन से शरीर में वायु दोष दूर होता है।
  • मुनक्का में ओलेनोलिक एसिड पाया जाता है जिससे दांतों सबंधी विकार दूर होते हैं।
  • मुनक्का सेल्सियम का एक अच्छा स्त्रोत है इसलिए कमजोर हड्डियों या हड्डियों से जुड़े विकार यथा गठिया, ऑस्टियोपोरोसिस के लिए मुनक्का एक अच्छा केल्सियम का स्त्रोत है। गठिया जैसे विकारों के लिए मुनक्का बहुत ही लाभकारी होता है।
  • जिन लोगों को एसिडिटी रहती हो उनके लिए मुनक्का बहुत ही लाभकारी होता है, रात भर मुनक्का को भिगो कर सुबह इसके पानी को पीने से एसिडिटी में लाभ मिलता है।

नाग केशर (Nagkeshar) Mesua ferrea Linn.

(मेसुआ फेरिआ) नागेसर का अंग्रेजी में नाम Mesua ferrea Linn. (मेसुआ फेरिआ) है और यह Clusiaceae (क्लूसिऐसी) से सबंधीत पादप होता है। नागकेशर को कई नामों से जाना जाता है यथा नागकेसर, नागेसर, पीला नागकेशर, नागचम्पा, नागपुष्प, पुष्परेचन, पिंजर, कांचन, फणिकेसर, स्वरघातन आदि। नागकेशर प्रधान रूप सेदक्षिणी भारत, पूर्व बंगाल, और पूर्वी हिमालय में अधिकता से पाया जाता है। इस पौधे के जो फूल लगते हैं वे पीले रंग के होते हैं जिनका उपयोग आयुर्वेद में किया जाता है। इसके पुष्प की सुगंध अत्यंत ही तेज होती है। नागकेशर स्वाद में कसैला, तीखा, तासीर में गर्म, लघु, रूक्ष, कफ-पित्तशामक, आमपाचक, व्रणरोपक तथा सन्धानकारक होता है। वात जनित विकारों के उपचार के लिए नागकेशर का उपयोग लाभदाई होता है यथा विभिन्न दर्द निवारक दवाओं (हड्डियों और जोड़ों ) के लिए नागकेशर का तेल लाभकारी होता है। इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए यदि कोई ठंडी प्रकृति का व्यक्ति है उसके लिए यह अत्यंत ही लाभकारी होती है।

नागकेशर के प्रमुख लाभ Benefits of Nagkeshar

  • नागकेशर के तेल से जोड़ों का दर्द दूर होता है, गठिया रोग में इसके तेल की मालिश करने पर लाभ मिलता है।
  • शीतपित्त विकारों के उपचार के लिए नागकेशर उत्तम औशधि है।
  • सरदर्द और गले के विकारों में नागेशर लाभकारी होती है।
  • खांसी जुकाम और सर्दी आदि विकारों में इसके सेवन से लाभ मिलता है।
  • गर्भधारण करने के लिए प्राचीन समय से ही नागकेसर का उपयोग होता है।

तेजपत्र (तेजपत्ता) क्या है और इसके लाभ Benefits of Bay Leaf Tejpatra in Hindi

तेजपत्र तडके में उपयोग करने के लिए रसोई में रखा जाता है जिसका पत्ता सफेदे के वृक्ष के पत्ते के समान होता है, शायद ही ऐसी कोई रसोई हो जिसमे तेजपत्र को नहीं रखा जाता है क्योंकि यह सभी खड़े मसालों में से बहुधा उपयोग में लाया जाता है। तेजपत्ते का वैज्ञानिक नाम लॉरस नोबिलिस Cinnamomum tamala Nees (Buch.-Ham) & Eberm. (laurus nobilis) है और यह Lauraceae कुल से सम्बंधित है। इसे अंग्रेजी में Bay leaf (Laurus nobilis) के नाम से जाना जाता है। यह पूरे यूरोपीय, एशियाई उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और एशियाई देशों में पाया जाता है और इसकी व्यावसायिक खेती भी की जाती है। 
 
तेजपत्र में tannins, flavones, flavonoids, alkaloids, eugenol, linalool, methyl chavicol, and anthocyanins पाए जाते हैं जिनके कारण यह एंटीऑक्सिडेंट, जीवाणुरोधी, एंटीवायरल, इम्युनोस्टिमिमुलेंट, एंटीकोलिनर्जिक, ऐंटिफंगल, कीटरोधी, रोगरोधी, एंटीमुटाजेनिक, एनाल्जेसिक, एंटीफ्लेमेट्री होता है। तेजपत्र स्वभाव में हल्का, तीखा, कड़वा, मधुर, होता है। इसकी तासीर गर्म होती है और यह पाचन तंत्र को दुरुस्त करने वाला होता है। तेजपत्र से मस्तिस्क की गदिविधियाँ तेज होती हैं। भारत में तेजपत्र सिक्किम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में अधिकता से पाया जाता है। इसका पेड़ सदा ही हरा रहता है। तेजपत्र की तासीर गर्म होती है। तेजपत्र में पानी, 5.44 ग्राम, ऊर्जा-313 कैलोरी, प्रोटीन-7.61 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट-74.97 ग्राम, फैट-8.36 ग्राम, फाइबर- 26.3 ग्राम, कैल्शियम 834 मिलीग्राम, आयरन-43.00 मिलीग्राम, विटामिन-सी-46.5 मिलीग्राम होता है (अधिक जाने)

तेजपत्र के लाभ/फ़ायदे Benefits of Tejpatra in Hindi

  • तेज पत्र एंटी-इंफ्लैमटोरी, एंटीफंगल, एंटीबैक्टिरीयल गुणों से भरपूर होता है।
  • तेजपत्र बेलीफ के सेवन से डायबिटीज (टाइप २) के रोगियों में लाभ मिल सकता है।
  • स्वसन विकारों में भी तेजपत्र के सेवन से लाभ मिलता है, इसमें सुजन को कम करने में लाभ मिलता है और फेफड़ों की सुजन भी दूर होती है।
  • एक शोध के मुताबिक़ तेजपत्ते के सेवन से कैंसर जैसे विकार में भी रोकथाम की जा सकती है।
  • तेजपत्र में सुजन रोधी गुण होते हैं जिसके कारण इसके सेवन से जलन और सुजन को कम किया जा सकता है।
  • तेजपत्र में एंटी फंगल प्रोपर्टीज होती हैं, जिससे त्वचा के संक्रमण का खतरा कम होता है।
  • किडनी के विकारों में भी तेजपत्र के सेवन से लाभ मिलता है।
  • तेजपत्र के सेवन से कमर दर्द में लाभ मिलता है क्योंकि यह वातजनित दर्दों को दूर करता है।
  • तेजपत्र के चूर्ण के सेवन से पेट के कृमि दूर होते हैं।
  • मानसिक उन्माद को दूर करने के लिए भी तेजपत्र का चूर्ण लाभदाई होता है।

लवंग (लौंग ) Lavang (Syzgium aromaticum)

लवंग या लौंग भी हमारी रसोई में उपलब्ध होती है और इसे खड़े मसालों के अलावा चाय आदि में प्रयोग किया जाता है। लवंग का अंग्रेजी में नाम क्लोवस (Cloves), जंजिबर रैड हेड (Zanzibar red head), क्लोव ट्री (Clove tree), Clove (क्लोव) होता है और लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum (Linn.) Merr & L. M. Perry (सिजीयम एरोमैटिकम) Syn-Eugenia caryophyllata Thunb., Caryophyllus aromaticus Linn. है। भारत में तमिलनाडु और केरल में लौंग बहुतयात से पैदा किया जाता है। लौंग के भी शीत रोगों में महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। गले का बैठना, गले की खरांस, कफ्फ खांसी आदि विकारों में लौंग का उपयोग हितकर होता है। शीत रोगों के अलावा लौंग के सेवन से भूख की वृद्धि, पाचन को दुरुस्त करना, पेट के कीड़ों को समाप्त करना आदि लाभ भी प्राप्त होते हैं। लौंग की तासीर बहुत गर्म होती है इसलिए इसका सेवन अधिक नहीं किया जाना चाहिए। लौंग के अन्य लाभ निम्न हैं।
  • लौंग के तेल से दांत के कीड़ों को दूर किया जाता है और साथ ही मसूड़ों की सूजन को कम करने में सहायक होता है।
  • लौंग के चूर्ण को पानी के साथ लेने से कफ्फ बाहर निकलता है और फेफड़ों में कफ के जमा होने के कारण आने वाली खांसी में आराम मिलता है।
  • लौंग के चूर्ण की गोली को मुंह में रखने से सांसों के बदबू दूर होती है और गले की खरांस भी ठीक होती है।
  • कुक्कर खांसी में भी लौंग के सेवन से लाभ मिलता है।
  • छाती से सबंधित रोगों में भी लौंग का सेवन लाभदायी होता है।

दालचीनी Dalchini (Cinnamomum zeylanicum)

दालचीनी (Cinnamomum verum, या C. zeylanicum) एक छोटा सदाबहार पेड़ है, जो कि 10–15 मी (32.8–49.2 फीट) ऊंचा होता है, यह लौरेसिई (Lauraceae) परिवार का है। यह श्रीलंका एवं दक्षिण भारत में बहुतायत में मिलता है। इसकी छाल मसाले की तरह प्रयोग होती है। इसमें एक अलग ही सुगन्ध होती है, जो कि इसे गरम मसालों की श्रेणी में रखती है। दाल चीनी को अक्सर हम खड़े मसालों में उपयोग में लाते हैं। दालचीनी के कई औषधीय गुण भी होते हैं। दाल चीनी एक वृक्ष की छाल होती है जो तीखी महक छोड़ती है। दाल चीनी को अंग्रेजी में True Cinnamonसीलोन सिनामोन (Ceylon Cinnamon) के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो दाल चीनी के कई लाभ होते हैं लेकिन खांसी और कफ्फ को शांत करने, सर्दी जुकाम के लिए यह उत्तम मानी जाती है।

द्राक्षावलेह का सेवन Doses of Drakshavleha

यद्यपि यह एक आयुर्वेदिक ओषधि है फिर भी आप इसके सेवन से पूर्व वैद्य की सलाह अवश्य प्राप्त कर लें और निर्धारित मात्रा में बताये गए पथ्य से इसका सेवन करें।

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