वासावलेह के फायदे घटक उपयोग Vasavleha Ke Fayade Benefits of Vasavleha

वासावलेह क्या होता है Vaasavleh Kya Hota Hai What is Vasavleha

वासावलेह एक आयुर्वेदिक औशधि है जिसे वासा (अडूसा/अल्डूसा-Justicia Adhatoda-Malabar nut, adulsa, adhatoda Malayalam- ആടലോടകംTamil-ஆடாதொடை), गुजराती અરડૂસી तेलुगु-వాసకం}से एंव अन्य घटक द्रव्यों से तैयार किया जाता है। अवलेह से आशय ऐसी औशधि से है जिसका चाटकर किया जाता है, जैसे चव्यनप्राश भी अवलेह की श्रेणी में ही आता है। इसे आप एक तरह की चटनी की भाँती समझ सकते हैं जिसमे सबंधित जड़ी बूटियों और चूर्ण को पकाया जाता है और गाढ़ा कर लिया जाता है। ऐसे अवलेह की सेल्फ लाइफ भी अधिक होती है लेकिन वर्तमान में ज्यादातर अवलेह जो बाजार में मिलते हैं उनमे संरक्षण के लिए सोडियम बेंजाईट को मिलाया जाता है, ताकि उसकी संरक्षण की लाइफ को बढ़ाया जा सके। 

वासावलेह के फायदे घटक उपयोग Vasavleha Ke Fayade Benefits of Vasavleha

वासावलेह को कई निर्माताओं के द्वारा बनाया जाता है जिसमे कई अन्य घटक भी मिलाये जाते हैं। इस लेख में आपको रसतंत्रसार ग्रन्थ के मुताबिक़ वासावलेह का परिचय और अन्य निर्माताओं के वासावलेह और उनके घटक के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे। इस लेख का उद्देश्य आपको "वासावलेह" क्या है यह जानकारी उपलब्ध करवाना है, कृपया यदि आपको कोई विकार/रोग है तो वैद्य की सलाह में उपरान्त ही वासावलेह का सेवन करें।

वासावलेह का उपयोग : Vasavleh Ke Upyog Hindi Usage of Vasavleha

वासावलेह का उपयोग क्षय, खांसी, रक्त्कास, श्वास विकार, पार्श्वशूल, हृदयशूल, गले में दर्द, तृष्णा, रक्तपित्त और ज्वर को दूर करने के लिए किया जाता है। वासावलेह पुरानी खांसी, दमे और टीबी जैसे रोगों में अत्यंत लाभकारी होती है। गले में आई सूजन को भी यह अवलेह नियंत्रित करता है। पुरानी खांसी और काली खाँसी में यह ओषधि गुणकारी होती है। विशेष है की कफ़ज रोगों में इस दवा का उपयोग लाभकारी होता है और कई बार इसका उपयोग पेट में दर्द को भी कम करने के लिए किया जाता है।

वासावलेह के सेवन से अस्थमा, ब्रोन्कियल अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, विभिन्न ईटियोलॉजी की खांसी, कफ, रक्तस्राव विकार, ज्वर आदि विकारों में भी लाभ मिलता है। इस ओषधि का मूल रूप से उपयोग दमे के निदान के लिए किया जाता। यद्यपि यह ओषधि आपको बगैर डॉक्टर की प्रिस्क्रिप्शन के मिल जाती है फिर भी आप इसके सेवन से पूर्व उचित मार्गदर्शन किसी वैद्य से अवश्य ही प्राप्त कर लें।

विशेष है की जहाँ एलोपेथी की दवाएं छाती में जमा कफ को सुखाने का कार्य करती हैं वहीँ या ओषधि कफ को ढीला करके शरीर से बाहर निकालने में कारगर है। यह ओषधि उष्णवीर्य होती है इसलिए इसके सेवन से पूर्व यह वैद्य की सलाह लेवें की कहीं आपके शरीर में पहले से तो गर्मी बढ़ी हुयी नहीं है।

वासावलेह के फायदे/लाभ : Vasavleha Ke Fayade Hindi :Benefits of Vasavleha

  • वासावलेह के सेवन से पुरानी खाँसी /जीर्ण खाँसी में लाभ मिलता है।
  • वासावलेह के सेवन से छाती में जमा पुराना कफ ढीला होकर बाहर निकल आता है। यह कफ को अंदर जमा होने से भी रोकता है।
  • निरंतर या कभी कभी रुक रूककर आने वाली खाँसी में इसके सेवन से लाभ मिलता है।
  • स्वांस के फूलने, स्वांस लेने में कठिनाई होने, छाती में कफ के जमा होने पर इसका सेवन किया जाता है।
  • ब्रोंकईटिस, अस्थमा आदि विकारों में वासावले का उपयोग किया जाता है।
  • पार्श्वशूल और हृदय दर्द में भी वासावलेह एक उपयोगी ओषधि होती है।
  • सामान्य सर्दी झुकाम, खाँसी में यह ओषधि का सेवन किया जाता है।
  • क्षय विकार को दूर करने और फेफड़ों को बल देने के लिए यह एक श्रेष्ठ ओषधि है।
  • ज्वर कर कास में भी इसका उपयोग लाभकारी माना जाता है।
  • खांसी और ठंड को कम करता है, Dyspnoea, Hoarseness, साथ ही निगलने में कठिनाई को दूर करता है।
  • यह अवलेह गले में खराश, छींक आना, ठंड लगना, सर्दी, खांसी, ब्रोंकाइटिस, गंध और स्वाद के विकार में राहत प्रदान करने का कार्य करता है।

वासावलेह के घटक द्रव्यों के विषय में Ingredients of Vasavleh Vasavleh Ghatak Hindi

अडूसा (Adusa) -Justicia Adhatoda-Malabar Nut
वासावलेह का मुख्य घटक वासा होता है जिसे सामान्य बोल चाल की भाषा में अल्डुसा /अडूसा के नाम से जाना जाता है। अडूसा का उपयोग आयुर्वेद चिकित्‍सा, होम्‍योपैथी और यूनानी चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। अडूसा को ग्रामीण इलाकों में अक्सर खेतों की मेड़ों में और सुनसान जगह पर देखा जा सकता है जो स्वतः ही उग आता है। इसका झाड़ीदार द्विबीजपत्री पौधा होता है जो यह एकेन्थेसिया कुल से सबंध रखता है। अडूसा के पत्ते अमरुद की भाँती होते हैं। अडूसा का स्वाद कड़वा और कसैला होता है। अडूसा जहाँ कफ को दूर करता है वहीँ यह वात और पित्त के लिए भी गुणकारी होता है।

शवसन तंत्र में इसका उपयोग प्रधान रूप से किया जाता है। इसके पत्तों का रस घरेलू रूप में किया जाता है जो कफ को पतला करके शरीर से बाहर निकालने का कार्य करता है। अडूसा स्वाँस की नलिकाओं को फैला देता है जिससे दमे के रोगियों का स्वांस फूलना कम हो जाता है। अडूसा जहा एक और कफ को दूर करता है वहीँ इसके पुष्प ठन्डे प्रकृति के होते हैं। इसके दो से तीन पत्तों को मुंह में रखने से मुख पाक में राहत मिलती है और मसूड़ों के दर्द में भी आराम मिलता है। ब्रोंकाइटिस में वासा का उपयोग भी लाभकारी होता है।

अडूसा के फ़ायदे Adusa Ke Fayade Benefits of Adusa
  • अडूसा कफ को दूर करता है। अडूसा का फूल रक्त की गर्मी को दूर करने में असरदार होता है।
  • अडूसा गले की सूजन को दूर कर स्वर में सुधार करता है।
  • रक्त विकार में भी अडूसा उत्तम होता है।
  • सुखी खाँसी, काली खाँसी, कुक्क़र खाँसी में अडूसा लाभदायी है।
  • क्षय रोग /टीबी रोग में अडूसा लाभकारी होता है। यह स्वांस नलिकाओं को फैला देता है जिससे स्वांस घुटती नहीं है।
  • दमा रोग में अडूसा लाभकारी होता है।
  • स्वरभंग में अडूसा का उपयोग किया जाता है।
  • सर्दी झुकाम खाँसी आदि में इसके उपयोग से लाभ मिलता है।

पिप्पली : Piper longum

पीपली / पीपल पीपलामूल या बड़ी पेपर को Piper longum (पाइपर लोंगम)के नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत में इसे कई नाम दिए गए हैं यथा पिप्पली, मागधी, कृष्णा, वैदही, चपला, कणा, ऊषण, शौण्डी, कोला, तीक्ष्णतण्डुला, चञ्चला, कोल्या, उष्णा, तिक्त, तण्डुला, मगधा, ऊषणा आदि। बारिस की ऋतू में इसके पुष्प लगते हैं और शरद ऋतु में इसके फल लगते हैं। इसके फल बाहर से खुरदुरे होते हैं और स्वाद में तीखे होते हैं। आयुर्वेद में इसको अनेकों रोगों के उपचार हेतु प्रयोग में लिया जाता है। अनिंद्रा, चोट दर्द, दांत दर्द, मोटापा कम करने के लिए, पेट की समस्याओं के लिए इसका उपयोग होता है। पिप्पली की तासीर गर्म होती है, इसलिए गर्मियों में इसका उपयोग ज्यादा नहीं करना चाहिए।

पिप्पल के मुख्य फायदे
  • पिप्पली पाचन में सुधार करती है और भूख को जाग्रत करती है।
  • पिप्पली लीवर को स्वस्थ रखने में मदद करती है।
  • पिप्पली चूर्ण के सेवन से सर दर्द में लाभ मिलता है।
  • नमक और हल्दी के साथ पिप्पली के चूर्ण से दांतों के दर्द में लाभ मिलता है।
  • पिप्पली चूर्ण को शहद के साथ लेने पर मोटापे में लाभ मिलता है, माटापा दूर होता है।
  • सर्दी झुकाम आदि विकारों में भी पिप्पली चूर्ण का लाभ मिलता है।
  • पिप्पली की तासीर गर्म होती है और यह कफ्फ को दूर करता है।
  • वात जनित विकारों में पिप्पली के चूर्ण से लाभ मिलता है।
  • दमा और सांस फूलना जैसे विकारों में भी पिप्पली चूर्ण के सेवन से लाभ मिलता है।
भरड़ (बहेड़ा) विभीतक Terminalia bellirica बहेड़ा एक ऊँचा पेड़ होता है और इसके फल को भरड/बहेड़ा कहा जाता है। बहेड़े के पेड़ की छाल को भी औषधीय रूप में उपयोग लिया जाता है। यह पहाड़ों में अत्यधिक रूप से पाए जाते हैं। इस पेड़ के पत्ते बरगद के पेड़ के जैसे होते हैं। इसे हिन्दी में बहेड़ा, संस्कृत में विभीतक के नाम से जाना जाता है। भरड पेट से सम्बंधित रोगों के उपचार के लिए प्रमुखता से उपयोग में लिया जाता है। यह पित्त को स्थिर और नियमित करता है। कब्ज को दूर करने में ये गुणकारी है। यह कफ को भी शांत करता है। भरड एंटी ओक्सिडेंट से भरपूर होता। अमाशय को शक्तिशाली बनाता है और पित्त से सबंदित दोषों को दूर करता है। क्षय रोग में भी इसका उपयोग किया जाता है। भरड में कई तरह के जैविक योगिक होते हैं जैसे की ग्‍लूकोसाइड, टैनिन, गैलिक एसिड, इथाइल गैलेट आदि जो की बहुत लाभदायी होते हैं। बहेड़ा रस में मधुर, कषैला, गुण में हल्का, खुश्क, प्रकृति में गर्म, विपाक में मधुर होता है और त्रिदोष नाशक होता है। बहेड़ा आँतों को शक्ति देने वाला है। स्वांस जनित विकारों में भी बहेड़ा का उपयोग लाभकारी होता है। हरड़ की छाल और भरड़ के चूर्ण के सेवन से दमा खाँसी में लाभ मिलता है।

साधना वासावलेह Vasavleh by Sadhna Ayurveda

साधना के द्वारा उपलब्ध वासावलेह को रसतंत्रसार एंव सिद्धप्रयोग संग्रह में बताये गए घटक के मुताबिक़ बनाया जाता है। इसमें निम्न घटक होते हैं -

  • अडूसा-Justicia Adhatoda-Malabar nut
  • पिपल Pipper Longum
  • बहेड़ा - Terminalia bellerica
  • हल्दी - Curcuma longa L.
  • घृत - Cow Ghee
  • शक़्कर - Sugar
अधिक जानकारी के लिए साधना आयुर्वेदा की वेबसाइट पर विजिट करें। (Visit The Site)
वैद्यनाथ वासावलेह Baidyanath Vasavleha
बैद्यनाथ वासावलेह में निम्न घटक द्रव्य होते हैं।
  • वसाका की जड़ Wasa Root
  • पीपल Pippal Piper longum
  • घी Ghrit
  • मिश्री Mishri
यह सब तरह की खांसी ,श्वास, रक्तपित्त आदि रोगों में उपयोगी है। पुरानी कफज खांसी कीये बड़ी ही उपयोगी दवा है। संदर्भ: आयुर्वेद सार संग्रह
बैद्यनाथ वासावलेह की कीमत : 100 GM एमआरपी : ₹71.00
अधिक जानकारी के लिए Baidynaath वेबसाइट पर विजिट करें। (Visit The Site)

डाबर वासावलेह Dabur Vasavleha
डाबर के वासावलेह के निम्न घटक होते हैं।

Ayurvedic/Medicinal Herbs :
Justicia Adhatoda (अल्डुसा /अडूसा), Badi Elaichi & Glycyrrhiza Glabra herbs can be used to treat Bronchitis.
Achyranthes Aspera , Albizia Lebbeck & Piper Longum herbs can be used to treat Asthma.
Cyperus Rotundus , Neem , Alstonia Scholaris & Amla herbs can be used to treat Fever. Dabur Vasavaleha 250gm Price: ₹ 130.00
अधिक जानकारी के लिए डाबर वेबसाइट पर विजिट करें। (Visit The Site)

झंडू वासावलेह Jhandu Vasavleha
  • Vasa-Svarasa
  • Sarkara-Saccharum Officinarum
  • Haritaki-Terminalia Chebula Fruit
  • Pippali-Piper Longum
  • Madhu-Honey
  • Suksmaila-Elettaria Cardamomum
  • Tvak-Cinnamomum Zeylanicum
  • Tvakpatra / Tejapatra-Cinnamomum Tamala
  • Nagakesara-Mesua Ferrea
  • Goghrta-Clarified Cow’s Butt-
  • Jal- Water

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Source सन्दर्भ :
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The author of this blog, Saroj Jangir (Admin), is a distinguished expert in the field of Ayurvedic Granths. She has a diploma in Naturopathy and Yogic Sciences. This blog post, penned by me, shares insights based on ancient Ayurvedic texts such as Charak Samhita, Bhav Prakash Nighantu, and Ras Tantra Sar Samhita. Drawing from an in-depth study and knowledge of these scriptures, Saroj Jangir has presented Ayurvedic Knowledge and lifestyle recommendations in a simple and effective manner. Her aim is to guide readers towards a healthy life and to highlight the significance of natural remedies in Ayurveda.
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1 टिप्पणी

  1. Thanks for giving such detailed information about Vasavaleha. It's a widely used medicine in ayurveda for improving the respiratory health and immunity as well.