नवजात शिशु की देखभाल के टिप्स Tips for Newborn Baby Infant Care Hindi

नवजात शिशु की देखभाल के टिप्स Tips for Newborn Baby

शिशु की देखभाल करना जितना आसान लगता है लेकिन शिशु के देखभाल करना बहुत ही व्यस्त कर देने वाला होता है। अस्पताल से शिशु के घर आते ही माँ की लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है शिशु की हर जरुरत को समझना और उसे पूरा करना। यदि आप दूसरी बार माँ बन रही हैं तो आपको इसे समझने में देर नहीं लगेगी की शिशु को संभालना कितना मुश्किल होता है। आजकल के एकल परिवार में तो यह समस्या और अधिक गंभीर हो गयी है। नयी बनी माँ को काफी समय तक रसोई और अन्य कार्यों में अपनों की मदद की दरकार होती है और सही मायनों में इसे काम वाली बाई पूरा नहीं कर सकती है। 
 
नवजात शिशु की देखभाल के टिप्स Tips for Newborn Baby Infant Care Hindi
 
संयुक्त परिवार में माँ की सहायता के लिए कई होते हैं। लेकिन आप सूझ बूझ से और टाइम मैनेजमेंट के द्वारा इसे हैंडल कर सकते हैं। बात करते हैं शिशु के जन्म के बाद दैनिक दिनचर्या की, तो आइये जानते हैं की कैसे शिशु की देखभाल की जा सकती है।

शिशु को प्रयाप्त नींद लेने दें

शिशु के स्वस्थ रहने के लिए उसका प्रयाप्त नींद लेना आवश्यक होता है। नवजात शिशु पंद्रह से अठारह घंटे तक नींद लेता है। शिशु को जगने पर उसे सही समय पर दूध पिलायें और ध्यान रखें की जहाँ आप शिशु को रख रहे हैं उस स्थान पर शोरगुल नहीं हो। अत्यधिक शोरगुल के वातावरण में शिशु चिड़चिड़ा हो जाता है और अक्सर ज्यादा रोने लगता है। कुछ शिशु को रात और दिन का भ्रम होता है इसलिए

यदि शिशु रात को ज्यादा जगता है तो आप रौशनी को कम कर दें और शोरगुल बिलकुल न करें साथ ही शिशु को सुलाने की कोशिश करें। धीरे धीरे शिशु रात में कम जागने लगेगा। सबसे पहले, अपने बिस्तर को पूरी तरह आरामदायक बनाएं और सोने के दौरान कमरे में मंद प्रकाश रखें। यदि आवश्यक हो तो आप मच्छर दानी का भी उपयोग कर सकते हैं और रात को शिशु बिना जगे सोता रहे इसके लिए रात को उसे सुलाने के लिए डायपर बदल दें।

शिशु की उचित साफ़ सफाई

शिशु की नियमित रूप से साफ़ सफाई करें। डायपर को समय पर बदलें। समय समय पर यह देखते रहें की शिशु का डायपर / लंगोट कहीं गीला तो नहीं है। गीले डायपर और बिस्तर पर शिशु को सुलाने से उसे संक्रमण का खतरा बना रहता और शिशु अक्सर चिड़चिड़ा होकर रोने लगता है। डायपर बदलने से सबंधित जानकारी के लिए यहाँ (शिशु के डायपर कब बदलें ) क्लीक करें। शिशु को सप्ताह में दो से तीन बार नहलाएं। (शिशु को कैसे नहलाएं )

शिशु के रोने पर ध्यान दें

सामान्य रूप में शिशु माँ को जो भी बताना चाहता है, जैसे उसे भूख लगी हो, उसने बिस्तर गीला कर दिया हो या उसे कोई अन्य समस्या हो तो शिशु रो कर ही अपनी माँ का ध्यान अपनी और आकर्षित करता है। इसलिए शिशु के रोने को नजरअंजाद नहीं करना चाहिए।
यह भी पढ़ें : शिशु बार बार क्यों रोता है।

शिशु सही से थामे

शिशु का शरीर नाजुक होता है, उसे गर्दन, सर और पीठ पर उचित सहारा देकर ही हाथों में उठायें। इस काम में जल्दबाजी बिलकुल न करें। ( शिशु को कैसे थामें )


शिशु को शांत वातावरण में रखें

शिशु को प्राकृतिक रूप से अधिक नींद की जरुरत होती है इसलिए शिशु को शांत माहौल में रखने की कोशिश करें जिससे शिशु को प्रयाप्त नींद मिल सके।

शिशु को समय पर स्तनपान करवाएं

शिशु को शांत वातावरण में स्तनपान करवाएं। स्तनपान शिशु के सर्वांगीर्ण विकास के लिए अत्यंत ही उपयोगी होता है। शांत वातावरण में शिशु पेट भर कर दूध पी लेता है। शोरगुल में शिशु का ध्यान भंग होने पर वह भूखा रह जाता है और चिड़चिड़ा होकर रोने लग जाता है।
यह भी पढ़ें : शिशु को स्तनपान कैसे करवाएं।


शिशु बार बार रोता है कहीं कृमि की समस्या तो नहीं है

यदि शिशु दूध पीने के बाद नींद नहीं ले पा रहा है तो इसका संभावित कारण हो सकता है की शिशु को कृमि की शिकायत हो। शिशु की मल की जांच करें और देखें की कहीं उसके मल में सफ़ेद रंग के छोटे छोटे कृमि तो नहीं हैं। कृमि का घरेलू इलाज भी कर सकते हैं। इन कृमि के द्वारा शिशु को काटते रहने पर वह अशांत होकर रोने लग जाता है। ( जाने कृमि का घरेलु इलाज )


शिशु की देखभाल के लिए ध्यान दें :-
  • शिशु को साफ़ सुथरे स्थान पर सुलाएं और समय पर डायपर बदलें।
  • शिशु के लिए माँ का दूध अमृत होता है इसलिए सिर्फ माँ का ही दूध पिलायें। शिशु को बोतल का दूध नहीं पिलाना चाहिए (अधिक जाने : माँ का दूध शिशु के लिए है अमृत )
  • माँ की साफ़ सफाई का शिशु को लाभ मिलता है। शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास नहीं होता है इसलिए अस्वछता से शिशु को दूर रखें।
  • शिशु को शोरगुल से दूर रखें और शिशु को भरपूर नींद लेने दें।
  • शिशु को नियंत्रित तापमान रखें। शिशु को टोपी पहनाएं और सूती कपडा उढ़ायें।
  • यदि परिवार के किसी सदस्य को संक्रामक बीमारी हो तो उसे शिशु से दूर रखना चाहिए।
  • शिशु को सदा ही पीठ, गर्दन और सर पर सहारा देकर उठायें क्योंकि शिशु की गर्दन की मांशपेशियां अभी पूर्ण परिपक्व नहीं होती हैं और गर्दन पर सहारे के आभाव में वो एक तरफ को लटक सकती है। जल्दबाजी और लापरवाही से शिशु को स्थायी हानि भी हो सकती है।
  • शिशु को अधिक ठण्ड और गर्मी से बचा कर रखें। कूलर, ऐसी और पंखे की सीधी हवा के संपर्क में शिशु को ना रखें। शिशु को माँ के पास ही सुलाना चाहिए जिससे उसे माँ की गर्मी प्राप्त होती रहे। शिशु के आस पास कोई भी नुकीली वस्तु न रखें।
  • शिशु को सप्ताह में दो से तीन बार नहलवायें और समय पर उसके डायपर बदलें।
  • छह माह की आयु पूर्ण होने तक शिशु को दूध के अतिरिक्त कोई पेय पदार्थ नहीं देना चाहिए।
  • शिशु को स्तनपान के बाद कुछ देर तक सीधे छाती से लगाकर रखें जिससे उसकी डकार निकल जाए और उसे दूध की उलटी न हो ( जाने कैसे शिशु को डकार दिलवाएं )
  • समय पर शिशु के नाख़ून काटते रहें, इनमे मेल जमा हो जाता है। माँ को भी चाहिए की शिशु को हाथ लगाने से पहले अपने हाथ अच्छे से धो ले और परिवार के अन्य सदस्यों को भी इस विषय में बताएं। इससे शिशु को संक्रामक रोग नहीं होते हैं।
  • शिशु के शरीर की साफ़ सफाई करने के उपरांत नियित रूप से शिशु की हलके हाथों से मालिश करें। यह शिशु के लिए लाभदायक होती है।
  • शिशु की जाँच के लिए नियमित रूप से डॉक्टर के राय लें और समय पर शिशु का टीकाकरण पूर्ण करें।
  • यदि शिशु स्वांस लेने में कोई कठिनाई हो रही हो तो शीघ्र चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
  • शिशु की देखभाल के लिए आप स्तनपान के दौरान स्मोक और अल्कोहोल का सेवन बंद कर दें।
  • अन्य कार्यों के दौरान शिशु को कभी भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। किसी अटेंडेंट को सदा शिशु के पास रखें।
  • गर्भनाल हट जाने के बाद आप शिशु टमी टाइम भी भी दें, लगातार पीठ के बल लेटने पर शिशु चिड़चिड़ा हो जाता है। इसलके लिए आप शिशु को छाती पर लगाएं, गोद में जांघ के ऊपर पेट के बल लेटाएं। दूध पिलाने के बाद शिशु को उल्टा नहीं लेटाएं।
  • शिशु से बात करें, मधुर ध्वनि निकालें और शिशु को बिजी रखें। शिशु को चुप करने के लिए आप उससे प्यार करें। ध्यान नहीं दिए जाने पर शिशु को भी गुस्सा आता है और वह अकारण जोर जोर से रोने लग पड़ता है।
  • शिशु को सुलाते वक़्त उसके सर के निचे विशेष रूप से बने शिशु तकिये का इस्तेमाल करें जिससे उसकी गर्दन फिसले नहीं।
  • शिशु को हमेशा कॉटन क्लॉथ से ही कवर करें। भारी भरकम कपड़ों से परहेज किया जाना चाहिए।
  • शिशु को सब प्यार करना चाहते हैं लेकिन यह शिशु के लिए हानिकारक होता है। मेहमानों की संख्या को सिमित करे और दूसरे बड़े बच्चों से नवजात शिशु को दूर रखें। ऐसा करके आप शिशु को विभिन्न संक्रामक रोगों से बचा सकते हैं।
  • शिशु को काजल, इत्र अधिक सुगन्धित प्रदार्थ नहीं लगाने चाहिए। यह सुनिश्चित करें की शिशु के आस पास कोई धूम्रपान न करें।
यह भी पढ़ें :
  1. शिशु को स्तनपान क्यों है जरुरी।
  2. शिशु को डकार कैसे दिलवाएं।
  3. शिशु की दूध की उलटी कैसे रोकें।
  4. नवजात शिशु को कैसे होल्ड करें।
  5. शिशु के डायपर कैसे बदलें।
  6. शिशु को कैसे नहलवायें।
  7. नवजात शिशु को कृमि की समस्या को कैसे दूर करें।
  8. बोतल की दूध में स्तनपान के लाभ।
 

शिशु को डॉक्टर के पास कब ले जाएँ 

यदि शिशु बहुत ज्याद सोता रहता है और आहार लेने के लिए जगता नहीं है, दूध पीने में भी सुस्ती दिखाता है, और उसकी अन्य हरकतों में बहुत ज्यादा सुस्ती रहती है तो यह किसी गंभीर समस्या का सूचक हो सकता है। शिशु की इन असामान्य हरकतों पर गौर करते हुए आपको शीघ्र डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इस सबंध में यह उचित रहेगा की कोई भी असामान्य बात नोटिस होने पर चिकित्सक की राय अवश्य लेवे। 
 

नवजात शिशु की देखभाल

बार-बार अपने हाथ धोएँ।

मानसून का मौसम संक्रमणों के लिए अनुकूल होता है, इसलिए अपने हाथों को बार-बार धोना बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसा करने से आप अपने बच्चे को बीमारियों से बचाने में मदद कर सकते हैं।

अगर आप अस्वस्थ हैं तो दूर रहें।

यदि आप बीमार हैं, तो अपने बच्चे से दूर रहना महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आप अपने बच्चे को अपनी बीमारी को संक्रमित कर सकते हैं।

नवजात की देखभाल में यह भी रखें ध्यान

  1. नवजात को जन्म के तुरंत बाद न नहलाएं। जन्म के तुरंत बाद नवजात की त्वचा बहुत नाजुक होती है, इसलिए उसे नहलाना नुकसानदायक हो सकता है। नवजात को जन्म के 24 घंटे बाद ही नहलाना चाहिए।
  2. जन्म के तुरंत बाद नवजात का वजन लें। जन्म के तुरंत बाद नवजात का वजन लेना जरूरी है। इससे यह पता चलता है कि बच्चा स्वस्थ है या नहीं।
  3. जन्म के एक घंटे के भीतर मां का दूध पिलाएं। मां का दूध शिशु के लिए सबसे अच्छा पोषण है। जन्म के एक घंटे के भीतर मां का दूध पिलाने से शिशु को संक्रमण से बचाने में मदद मिलती है।
  4. छह माह तक शिशु के स्तनपान कराएं। छह माह तक शिशु को केवल मां का दूध पिलाना चाहिए। इससे शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास सही तरीके से होता है।
  5. नियमित रूप से सम्पूर्ण टीकाकरण कराएं। नवजात शिशु को संक्रमण से बचाने के लिए नियमित रूप से सम्पूर्ण टीकाकरण कराना जरूरी है।
  6. शिशु को सर्दी से बचाएं। नवजात शिशु की इम्यूनिटी कमजोर होती है, इसलिए उसे सर्दी से बचाना जरूरी है। शिशु को गर्म कपड़े पहनाएं और उसे सर्दी से दूर रखें।
  7. शिशु का कमरा प्रदूषण रहित हो। शिशु के कमरे में धूल और धुआं नहीं होना चाहिए। इससे शिशु को सांस लेने में परेशानी हो सकती है।
  8. जच्चा-बच्चा घर से बाहर कम ही निकलें। नवजात शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, इसलिए उसे संक्रमण से बचाने के लिए जच्चा-बच्चा घर से बाहर कम ही निकलें।
  9. छोटे बच्चों को नवजात शिशु से दूर रखें। छोटे बच्चे अक्सर बीमार रहते हैं, इसलिए उन्हें नवजात शिशु से दूर रखना चाहिए।
  10. स्तनपान कराते समय मां मास्क जरूर पहनें। स्तनपान कराते समय मां को मास्क पहनना चाहिए, इससे शिशु को संक्रमण से बचाने में मदद मिलती है।
  11. शिशु को छूने से पहले अपने हाथों को धोएं। शिशु को छूने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से धोएं, इससे शिशु को संक्रमण से बचाने में मदद मिलती है।
  12. शिशु के कपड़े और बिस्तर गीला न रहे। शिशु के कपड़े और बिस्तर हमेशा सूखे रहने चाहिए, इससे शिशु को संक्रमण से बचाने में मदद मिलती है।
  13. शिशु की तबियत खराब दिखे तो तुरंत चिकित्सक को दिखाएं। अगर शिशु को कोई स्वास्थ्य समस्या हो तो तुरंत चिकित्सक को दिखाएं।
  14. नवजात की नाभि सूखी एवं साफ़ रखें। नवजात की नाभि को हमेशा सूखा और साफ़ रखें।
  15. संक्रमण से बचाएं,मां-शिशु की स्वच्छता का ख्याल रखें। नवजात शिशु को संक्रमण से बचाने के लिए मां-शिशु की स्वच्छता का ख्याल रखना बहुत जरूरी है।
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